हाँ मोदी जी – अब ये भी बता दीजिए...
#नोटबंदी #नोटबंदीपरसवाल–2
मोदीजी हम वेबदुनिया के मार्फत फिर एक बार आपसे कुछ सवाल पूछ रहे हैं। आप तो रेडियो पर लोगों से मन की बात कर लेते हैं। पर अभी जो #कालेधन के नाम पर #नोटबंदी हुई है उसको लेकर आम जनता के मन में कई सवाल हैं। वो कहाँ जाकर पूछें? किससे पूछें? टेलीविजन कैमरे की बाइट्स और पैनल चर्चा के शोर में भी हमारे सवाल खो जाते हैं। इसीलिए पहली किश्त में हमने नोटबंदी के बाद कहा था कि मोदी जी अब ये भी कर दीजिए । अब कुछ दिन और बीत गए हैं। जितने मुँह उतनी बातें। हर कोई डरा रहा है। एक सिद्धांत आता है, कोई बात आती है फिर तुरंत उसका प्रतिसिद्धांत या विरोधाभासी बात आ जाती है। देश का वो नागरिक जो आपके साथ खड़ा होना भी चाहता है तो कई सवालों के पेंच में उलझ कर रह जाता है। सच क्या है? जानना ज़रूरी है।
पहले कुछ बातें जो भावानाओं के नहीं तथ्यों के आधार पर सत्य हैं –
1. आठ नवंबर 2016 की मध्यरात्रि से भारत में 500 और हजार के नोट बंद करने की घोषणा हुई।
2. कहा गया कि ये नोट 8 नवंबर 2016 की रात 12 बजे से काग़ज का टुकड़ा रह जाएँगे।
3. कुछ आवश्यक सेवाओं के लिए ही इनका उपयोग 14 नवंबर 2106 तक हो पाएगा।
4. भाषण पूरा होने के पहले ही एटीएम मशीनों के बाहर कतारें लग गईं।
5. 8 नवंबर की रात और उसके बाद कई दिनों तक लोगों ने जमकर सोना ख़रीदा
6. सरकार ने घोषणा की कि 1000 का नोट बंद हो जाएगा। 500 का नया नोट आएगा और 2000 रुपए का नोट जारी होगा।
7. 9 नवंबर को सभी बैंक और एटीएम बंद। एटीएम 10 नवंबर को भी बंद रहे।
8. 10 नवंबर को खुले केवल बैंक।
9. पहले 24 घंटे में लगभग सभी ने इस नोटबंदी का स्वागत ही किया। जय-जयकार के नारे लगे। लोगों का लगा कि कुछ तकलीफ तो होगी पर इस देश को कालेधन से मुक्ति मिलेगी। आतंकवाद की कमर टूटेगी। नकली नोट ख़त्म हो जाएँगे।
10. 48 घंटे बाद कतारें लंबी हुईं और धैर्य टूटने लगा।
11. पता लगा कि एटीएम अभी नए नोट उपलब्ध करवाने में सक्षम नहीं हैं। इसमें तीन हफ्ते तक का समय लगेगा।
12. एटीएम की कतारों में लोगों की मौत की ख़बरें भी आने लगीं।
13. कुछ नई घोषणाएँ भी हुईं, नोट बदलने की सीमा 4500 हुई फिर वापस 2000 कर दी।
14. किसानों के लिए आहरण (पैसे निकालने) की सीमा 25000 और शादी वालों के लिए ढाई लाख कर दी गई।
15. जो विपक्ष इस मुद्दे पर राजनीति कर रहा था वो एकदम से मुखर हो गया और आम आदमी द्वारा अपना ही पैसा ना निकाल पाने के दर्द को आवाज़ देने और उसे भुनाने में लग गया।
16. अब 1000 का नोट नहीं आएगा।
17. 22 हजार 500 एटीएम ही अब तक दुरुस्त हो पाए हैं। कुल 2 लाख 25 हजार एटीएम हैं देश में।
18. एटीएम की कतारों में लाठीचार्ज और मारपीट भी हुई है।
ये सब मोटे और महत्वपूर्ण तथ्य हैं #नोटबंदी से जुड़े हुए। इन तथ्यों के साथ हम ये मान लेते हैं कि लंबे समय में ये देश के भले के लिए है। जिसने पाई-पाई पैसा जोड़ा है, कोई काला धन जमा नहीं किया है वो आज तात्कालिक परेशानी के चलते चिल्लाएगा, रोएगा-पीटेगा, गुस्सा करेगा लेकिन मन समझा लेगा। चलो आगे तो फायदा होगा। जिनके पास काला धन है, वो तो इन अच्छे लोगों को ढाल बनाकर रोते रहेंगे, बुरा करने की कोशिश करेंगे। षड्यंत्र रचेंगे। ये काली भेड़ें पकड़ में ना आ जाएँ इसलिए ये सब पर काला रंग छिड़कने की कोशिश करेंगे। पर ठीक है साहब हम तो अच्छा सोचें, सकारात्मक सोचें। सोचें कि –
1. जैसे सैनिक सीमा पर बलिदान देते हैं वैसे हम बैंकों और एटीएम की कतारों में अपना बलिदान दे रहे हैं। कुछ तो शहीद भी हो गए।
2. गाँव-देहात और दूर-दराज में जहाँ कई किलोमीटर सफर करने पर एक बैंक मिलता है, उनको भी समझाएँगे। उनका दर्द और तकलीफ भी इस देश के लिए बलिदान ही है।
3. मानवीय क्रंदन और पीड़ा की कई कहानियाँ दिल पिघलाएँगी, रुलाएँगी पर ये भी उसी दर्द के खाते में जाएगा जो इस देश को ‘बेहतरी’ की ओर बढ़ाने के लिए ज़रूरी है।
4. लंबे समय में सबकुछ सचमुच ठीक हो जाएगा।
5. तकलीफ की कहानियाँ कहने वाले दरअसल इस बड़े उद्देश्य को समझ नहीं पा रहे और वो इसमें बाधा पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं।
ये सब हम मान लेते हैं। ये केवल भरोसे की बात है। तथ्य तो हम पहले रख ही चुके हैं। तमाम किन्तु परंतु के बीच ये तो सभी को मानना होगा कि ऐसा कोई भी कदम उठाने के लिए बहुत ही प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। चाहे देश को लाभ पहुँचाने का ही महान और पवित्र उद्देश्य सामने क्यों ना हो। भले ही इसमें ख़ुद का स्वार्थ भी नज़र आता हो तो भी ऐसा कदम उठाने के लिए बहुत साहस चाहिए, इसमें कोई शक नहीं।
पर अब कुछ सवाल जो इस योजना से सीधे जुड़े हैं –
1. क्या सचमुच ये पूरी योजना बहुत गोपनीय थी और कुछ चुनिंदा लोगों तक इसकी सूचना नहीं थी?
2. अगर ये बहुत ही सुविचारित है और सब पहलुओं पर अच्छे से विचार किया गया था तो बार-बार निर्णय बदले क्यों जा रहे हैं?
3. मान लिया कि गोपनीयता बहुत ज़रूरी थी पर जब केवल 2 लाख 25 हजार एटीएम इस देश में हैं तो वो जल्दी ही ने नोटों के लिए तैयार हो जाएँ इसके लिए तो कोई वैकल्पिक योजना होनी थी? आपने क्यों कहा कि 10 नवंबर से सब एटीएम चालू हो जाएँगे?
4. क्या 86 प्रतिशत मुद्रा को अचानक चलन से बाहर करने से पहले और अधिक नियोजन और संभावित मुश्किलों से बचने के उपाय करना इसे लागू करने वाली टीम की जिम्मेदारी नहीं थी? मुसीबत तो होती पर उसे कम किया जा सकता था?
5. आप बार-बार कह रहे हो कि रिजर्व बैंक के पास पर्याप्त नकदी है। तो फिर पहले 10 दिनों में हर रोज़ बैंकों का दम क्यों फूल गया। रोज समय से पहले कैश ख़त्म हुआ। कई तो बैंक ही बंद रहे।
6. क्या बैंकों ने अपने ख़ास ग्राहकों को सीधे नोट बदलवाने या आहरण का फायदा नहीं पहुँचाया?
7. योजना बनाते समय शादी और फसल की बुवाई के बारे में क्या बिलकुल भी विचार नहीं किया गया? क्यों? इतनी देरी से आपने किसानों और शादी वालों के लिए घोषणा की।
8. जब आप शादी के लिए आम आदमी को ढाई लाख रुपए देने की बात करते हैं तो क्या आपको रेड्डी परिवार की 500 करोड़ की शादी नहीं दिखाई देती? क्या ऐसी शादियाँ और ऐसे तथाकथित कारोबारी व्यवस्था को मुँह चिढ़ा कर ऐसे ही अट्टहास करते रहेंगे?
9. क्या भाड़े पर लोग रखकर पैसे निकालने के बारे में नहीं सोचा गया? अब आप स्याही लगवा रहे हो?
10. क्या कुछ बड़े लोगों ने अपने बोरों में भरे पैसों का सचमुच कुछ इंतज़ाम कर लिया? क्या वो फिर बच जाएँगे?
11. जब #नोटबंदी से सबकी हालत ख़राब हो गई तो फिर उत्तरप्रदेश के गाजीपुर में आपकी चुनावी सभा कैसे हो गई? पैसा कहाँ से आया?
ये और ऐसे कई सवाल ना केवल सोशल मीडिया पर बल्कि कतार में लगे और कतार में लगने का इंतज़ार कर रहे भारतीयों के ज़ेहन में घूम रहे हैं। ये ही वो सवाल हैं जो आपको मिलने वाली सलामी को भी कमज़ोर कर रहे हैं। ये लोगों के मन की बातें हैं।
कुछ और सवाल भी सुन ही लीजिए –
1. क्या सचमुच इस देश को 70 सालों से लूटने वाले सभी गुनाहगारों का हिसाब होगा?
2. क्या इस देश के बैंकिंग सिस्टम को पूरी तरह से बदलने और नया करने का काम भी तेज़ी से हो पाएगा?
3. क्या गुनाहगारों को ढ़ूँढने, पकड़ने और सजा देने वाली संस्थाएँ इस आंदोलन को उतनी ही तत्परता से आगे बढ़ाएँगी?
4. समाज को दिखता है कि किसने व्यवस्था को मुँह चिढ़ाकर पैसा बनाया है.... जाँच करने और सजा देने वालों को क्यों नहीं?
5. क्या बैंक अब भी ग़रीब और आम आदमी को 50 चक्कर खिलवाएँगी और धनपति को घर जाकर अरबों रुपए दे आएँगी या ये दृश्य बदलेगा?
6. जिनकी सालों से रखी बोरियाँ और उनमें रखा पैसा आपके इस एक कदम से सड़ गया है, वो अधिक ख़ूनी दरिन्दे बनकर देश की जनता को नहीं लूटेंगे?
7. सरकारी ठेकों में भ्रष्टाचार नहीं होगा?
सवाल तो और भी बहुत हैं। हम ये भी मानते हैं कि हम आपसे कुछ ज़्यादा ही उम्मीद कर रहे हैं। आख़िर एक आदमी कितना करेगा। क्या ये केवल आप ही की जिम्मेदारी है? पर क्या करें भरोसा भी आप ही ने दिया है। कुछ लोग कहते हैं कि आप भी “वैसे” ही हो। आप भी ये सब राजनीतिक लाभ के लिए ही कर रहे हो। आप अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और कुछ लोगों को फायदा पहुँचाने के लिए ये कर रहे हो। पर हमारा मन ये ही कहता है कि नहीं ये सब सच नहीं हो सकता, नहीं होना चाहिए। इस देश को बदलने के लिए कहीं से तो शुरुआत करनी ही थी। कोई तो बड़ा कदम उठाना ही था। एक झटका। बस मन ये भरोसा चाहता है कि ये परेशानी और ये बलिदान जरूरी था, सचमुच इस देश के लिए। ... ये उस मन के सवाल हैं जो बरसों से इस सोने की चिड़िया को फिर सुनहरा होते देखना चाहता था .... जवाब देंगे ना मोदीजी? (वेबदुनिया न्यूज)