शुक्रवार को कंधार में फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दिकी की गोलीबारी के दौरान मौत हो गई। पुलित्जर अवार्ड से सम्मानित भारत के दानिश की मौत की चर्चा पूरी दुनिया हो रही है। सोशल मीडिया पर भी उन्हें लेकर चर्चा है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर कौन हैं दानिश सिद्दिकी और क्या रहा है उनका पत्रकारिता का सफर।
फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी का जन्म साल 1980 में महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में हुआ था। दानिश सिद्दीकी के पिता का नाम प्रो. अख्तर सिद्दीकी है। प्रो. अख्तर सिद्दीकी जामिया मिलिया इस्लामिया से रिटायर्ड हैं। इसके अलावा अख्तर सिद्दीकी राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के निदेशक भी रह चुके हैं।
दानिश सिद्दीकी ने अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली के कैंब्रिज स्कूल से पूरी की। इसके बाद दानिश ने जामिया मिलिया इस्लामिया से पहले अर्थशास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और फिर मास्टर्स इन मॉस कॉम की शिक्षा हासिल की। वे मुंबई में रहते थे।
वह 2010 में ही बतौर इंटर्न रॉयटर से जुड़े और रिपोर्टिंग करते थे। बाद में वह फोटो पत्रकारिता करने लगे। उन्हें वर्ष 2018 में फोटोग्राफी के लिए पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया था।
दानिश ने अपने करियर के दौरान साल 2015 में नेपाल में आए भूकंप, साल 2016-17 में मोसुल की लड़ाई, रोहिंग्या नरसंहार से पैदा हुए शरणार्थी संकट और हांगकांग को कवर किया। इसके अलावा साल 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के दौरान भी दानिश सिद्दीकी की तस्वीरें खासी चर्चा में रही। दिल्ली दंगों के दौरान जामिया के पास गोपाल शर्मा नाम के शख्स की फायरिंग करते हुए तस्वीर दानिश सिद्दीकी ने ही ली थी। यह तस्वीर उस समय दिल्ली दंगों की सबसे चर्चित तस्वीर में से एक थी। अपनी मेहनत के दम पर दानिश सिद्दीकी भारत में रॉयटर्स पिक्चर्स टीम के हेड भी बने।
दानिश के परिवार में उनकी पत्नी और दो बच्चे हैं। पत्नी जर्मनी की रहने वाली है। दानिश सिद्दीकी का छह साल का एक लड़का और तीन साल की एक लड़की है।
साल 2018 में रोहिंग्या शरणार्थी समस्या पर फोटोग्राफी करने के लिए रॉयटर्स की टीम को पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस टीम में दानिश सिद्दीकी भी थे।
16 जुलाई 2021 को कंधार में जब दानिश सिद्दीकी अपना काम कर रहे थे तभी उनकी हत्या कर दी गई।
पत्रकारों की हत्या के मामले
एक अध्ययन के मुताबिक बीते पांच सालों में भारत में पत्रकारों पर 200 से अधिक गंभीर हमले हुए हैं। गेटिंग अवे विद मर्डर नाम के इस अध्ययन के मुताबिक, 2014 से 2019 के बीच 40 पत्रकारों की मौत हुई, जिनमें से 21 पत्रकारों की हत्या उनकी पत्रकारिता की वजह से हुई।
2010 से लेकर अब तक 30 से अधिक पत्रकारों की मौत के मामले में सिर्फ तीन को दोषी ठहराया गया है। 2011 में पत्रकार जे डे, 2012 में पत्रकार राजेश मिश्रा और 2014 में पत्रकार तरुण आचार्य की हत्या के मामले में हैं। इसी तरह गौरी लंकेश और श्रीनगर के शुजात बुखारी भी अपनी पत्रकारिता के लिए मारे गए थे।