नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र और गूगल से पूछा है कि क्या निजता के अधिकार में अप्रासंगिक सूचना इंटरनेट से हटाना शामिल है।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, गूगल, गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और इकानून सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड से एक प्रवासी भारतीय की उस अर्जी पर जवाब मांगा है जिसमें उसने मांग की थी कि उसे उसकी पत्नी की संलिप्तता वाले एक आपराधिक मामले से संबंधित सूचना से अलग किया जाए जिसमें वह एक पक्ष नहीं था।
याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए राहत की मांग की थी कि यह उसके रोजगार के अवसरों को प्रभावित करेगा, क्योंकि कंपनियां अकसर संभावित कर्मचारियों के बारे में इंटरनेट पर सर्च करती हैं और चूंकि उनका नाम डालने पर आपराधिक मामला सामने आता है, यह ऐसा प्रभाव दे सकता है कि वह उसमें शामिल था।
इस याचिका ने सवाल खड़ा किया है कि क्या गूगल जैसे डेटा नियंत्रक या बिचौलियों को वह सूचना हटाने की जरूरत है, जो अप्रासंगिक हो या अब प्रासंगिक नहीं हो यदि उन्हें ऐसा सूचना हटाने का अनुरोध प्राप्त होता है।
याचिकाकर्ता ने अधिवक्ताओं रोहित मदन और आकाश वाजपेयी के माध्यम से दायर अपनी अर्जी में कहा कि जब उनका नाम इंटरनेट पर सर्च करने पर उसकी पत्नी और उसकी मां की संलिप्तता वाला आपराधिक मामला सामने आता है।
अर्जी में कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर 4 (इकानून) से संपर्क करने का प्रयास किया और उससे 25 जनवरी 2016 की तिथि वाले पत्र के माध्यम से उपरोक्त फैसला हटाने का अनुरोध किया, क्योंकि याचिकाकर्ता चाहता है कि यह आदेश प्रतिवादी नंबर 4 की वेबसाइट से हटा दिया जाए।
उसने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर 2 और 3 (गूगल और गूगल इंडिया) से भी संपर्क किया था और सर्च परिणाम से संबंधित यूनीफॉर्म रिसोर्स लोकेटर (यूआरएल) हटाने के लिए एक ई-मेल भेजा था। (भाषा)