मुख्य बिन्दु
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मेडिक्लेम पॉलिसी लेते समय शर्तों को सावधानी से पढ़ें
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नासमझी में पड़ सकते हैं बड़ी मुसीबत में
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शराब से जुड़े मामलों में नहीं मिलता क्लेम
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अस्पताल जाने से पहले पॉलिसी के शर्तें जरूर देखें
मेडीक्लेम या एक्सीडेंटल पॉलिसी लेते समय दस्तावेजों और उसकी शर्तों को सावधानी से पढ़ना जरूरी होता है। अन्यथा कई बार ऐसा होता है कि पॉलिसी होने के चलते लोग अपने परिजनों या स्वयं को बड़े अस्पतालों में भर्ती तो करवा देते हैं, लेकिन जब क्लेम कंपनी या टीपीए के पास जाता है तो उसे रिजेक्ट कर दिया जाता। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को बड़ा झटका लगता है क्योंकि तब तक अस्पताल का बिल भी काफी हो जाता है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश यहां तक इंदौर में भी शराब से जुड़े ऐसे कई मामले आए हैं, जिनके चलते व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था और बाद में टीपीए या कंपनी ने क्लेम यह कह कर खारिज कर दिया कि यह शराब से जुड़ा मामला है, जो कि पॉलिसी में कवर नहीं होता।
आपको बता दें कि इंदौर में शराब पीने के बाद कई लोगों की तबीयत बिगड़ गई थी, जिन्हें बाद में अस्पताल में भर्ती कराया गया था और क्लेम सबमिट करने पर खारिज कर दिया गया। ऐसे में आवश्यक है कि जब भी आप कोई पॉलिसी लें उसकी शर्तों को ध्यान से पढ़ें या फिर अपने एजेंट से अच्छी तरह से समझ लें।
इस संबंध में ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी, इंदौर में डिप्टी मार्केटिंग मैनेजर अनिल गौड़ वेबदुनिया से बातचीत में बताते हैं कि हेल्थ इंश्योरेंस के मामले में शर्तें काफी जटिल होती हैं। कई मामले ऐसे होते हैं जो निर्धारित अवधि के बाद ही पॉलिसी में कवर होते हैं।
जहां तक शराब से होने वाली शारीरिक समस्या की बात है तो पॉलिसी में इसका उल्लेख रहता है। यदि व्यक्ति के शरीर में तय मात्रा से अधिक शराब की बात सिद्ध होती है तो कंपनी द्वारा क्लेम रिजेक्ट कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में मेडिक्लेम भुगतान योग्य नहीं होता।
एक्सीडेंट के मामलों में गौड़ कहते हैं कि एमएलसी में यदि अल्कोहल की मात्रा पाई जाती है तो व्यक्ति चाहे गाड़ी चला रहा हो या फिर पीछे बैठा हो, क्लेम नहीं मिल पाता। यह पूछे जाने पर कि यदि शराब पीकर व्यक्ति सड़क किनारे खड़ा है और उसे कोई वाहन टक्कर मार देता है तो ऐसी स्थिति में क्या व्यक्ति को क्लेम मिलता है? गौड़ कहते हैं कि ऐसे मामलों में कॉज ऑफ एक्सीडेंट को देखा जाता है। इस तरह के मामले कई बार कोर्ट पहुंचते हैं। हालांकि इस तरह के मामलों में भी परेशानी तो आती है। कंपनी क्लेम रिजेक्ट कर सकती है। कोर्ट में मामला जाने पर आई विटनेस की भूमिका बहुत बड़ी होती है।
इंदौर में ट्रैफिक डीएसपी उमाकांत चौधरी ने वेबदुनिया को बताया कि यदि किसी व्यक्ति शराब की मात्रा 30 एमएल से ज्यादा है तो उसे नशे में माना जाना जाएगा। ऐसे व्यक्ति पर नियमानुसार कार्रवाई की जाती है। मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 185 (संशोधन) के तहत अदालत द्वारा 10 से 15 हजार का जुर्माना और जेल दोनों की सजा हो सकती है।