Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

हकलाते हैं तो संस्कृत सीखें-डॉ. नंदकुमार

हमें फॉलो करें हकलाते हैं तो संस्कृत सीखें-डॉ. नंदकुमार
webdunia

वृजेन्द्रसिंह झाला

संस्कृत भारती के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. पी. नंदकुमार का मानना है स्पीच थैरपी के लिए संस्कृत सबसे उपयुक्त भाषा है। जो व्यक्ति धाराप्रवाह बोल नहीं पाते, अटकते हैं या फिर हकलाते हैं उन्हें संस्कृत सीखना चाहिए। जो बच्चे स्पष्ट बोलने में असमर्थ हैं, वे संस्कृत श्लोक एवं मंत्रों के सतत अभ्यास से बोलना शुरू कर सकते हैं।
 

वेबदुनिया से विशेष बातचीत में नंदकुमार ने कहा कि वर्तमान में उत्तम उच्चारण के लिए अमेरिका में फिल्म कलाकार संस्कृत का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। संस्कृत संभाषण से हकलाना भी खत्म हो जाता है। संस्कृत में हर अक्षर का कैसे उच्चारण करना है, इसका अलग शास्त्र है। मंत्र, श्लोक आदि के उच्चारण से मन, बुद्धि पवित्र होते हैं और मनुष्य आरोग्य को प्राप्त होता है। अर्थात वाणी की शुद्धता, उच्चारण की शुद्धता से मनुष्य शुद्ध बोलता है, यही शुद्ध वाणी मन और शरीर को शुद्ध करती है और आरोग्य भी देती है। 
 
संस्कृत भारत में लोकप्रिय क्यों नहीं है? इस प्रश्न पर नंदकुमार कहते हैं कि वर्तमान में संस्कृत का परिचय उतना नहीं है। यह विचार भी प्रचलित है कि यह पुरानी भाषा है, इसी के चलते संस्कृत व्यवहार में कम है। यही कारण है कि संस्कृत आम आदमी के बीच लोकप्रिय नहीं हो पा रही है। हालांकि हम देखेंगे तो भारत की सभी भाषाओं में संस्कृत के शब्दों का प्रचुर मात्रा में उपयोग होता है।
 
ऐसा नहीं लगता कि संस्कृत भाषा एक वर्ग विशेष तक ही सीमित होकर रह गई है, डॉ. नंदकुमार कहते हैं कि यह असत्य है। मिथ्या प्रचार है। एक हजार वर्ष पहले भारत ही नहीं बल्कि विदेशियों के अध्ययन का आधार भी संस्कृत भाषा ही थी। मध्यप्रदेश के ही तत्कालीन धार राज्य (धारा नगरी) का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि राजा भोज की नगरी में तो लकड़हारा भी संस्कृत बोलता था। एक राजा को व्याकरण की शुद्धता का परिचय एक आम आदमी देता था।
किन्तु, विभिन्न कारणों से ऐसी धारण बन गई कि इस भाषा का उपयोग केवल धार्मिक प्रसंगों में ही किया जाता है। इस कारण इसका उपयोग भी सीमित होता गया। विदेशियों के आक्रमण, शासन परिवर्तन, क्षेत्रीय भाषाओं का विकास, रोजगार से दूरी आदि ऐसे अनेक कारण रहे कि यह भाषा लोक व्यवहार की भाषा नहीं बन सकी। 
 
डॉ. नंदकुमार कहते हैं कि संस्कृत के क्षेत्र में रोजगार की भी अपार संभावनाएं हैं। हालांकि आम लोगों के बीच ऐसी भी धारणा है कि संस्कृत पढ़ने से क्या लाभ है, संस्कृत पढ़ने से तो सिर्फ शिक्षक बनते हैं, लेकिन यह सत्य नहीं है। संस्कृत विषय लेकर विद्यार्थी आईएएस और राज्य सेवा परीक्षाओं में चयनित हो रहे हैं। मुंबई में एक सज्जन हैं, उन्होंने एमबीए करने के बाद संस्कृत भाषा सीखी और कौटिल्य का अर्थशास्त्र पढ़ा। वह विषय उन्हें बहुत पसंद आया। उन्होंने ‘कॉर्पोरेट चाणक्य’ नामक पुस्तक लिखी और कॉर्पोरेट जगत के लिए प्रबंधन के सूत्र प्रस्तुत किए। यह पुस्तक काफी लोकप्रिय हुई थी।
 
शिक्षण के अलावा आयुर्वेद, योग, चिकित्सा, पर्यावरण, प्रबंधन,गणित, ज्यामिति आदि विषयों में भी संस्कृत काफी उपयोगी है। पतंजलि योग शास्त्र भी तो संस्कृत में ही है। हम 21 जून को विश्व योग दिवस मनाने जा रहे हैं। आईआईएम बेंगलुरु में प्रोफेसर महादेवन गीता के आधार पर प्रबंधन सिखा रहे हैं। आईआईटी और आईआईएम में भी संस्कृत पर काम हो रहा है। 
 
वे इस सवाल से बिलकुल इत्तफाक नहीं रखते कि संस्कृत मृत भाषा है। वे कहते हैं कि भारत का गौरव उसकी संस्कृति और सभ्यता है और संस्कृति का मूल आधार संस्कृत है। यह वैज्ञानिक भाषा है। अन्य भाषाओं की जननी है। संस्कृत की प्रामाणिकता यही है कि इस भाषा में जो बोला जाता है वही लिखा भी जाता है। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi