भोपाल। मध्यप्रदेश में कोरोना का नया वैरिएंट एक्सएफजी (XFG) एक्टिव है। खास बात यह है कि जून के तीसरे सप्ताह में मिले कोरोना पॉजिटिव मरीजों मे यह वैरिएंट पाया गया है। यह खुलासा एम्स भोपाल की जीनोमिक रिपोर्ट में हुआ है। वहीं मई माह में कोरोना संक्रमण फैलने के लिए मुख्य रूप से सक्रिय रहा कोरोना का एलएफ.7 वैरिएंट अब मध्यप्रदेश में पूरी तरह खत्म हो गया है। मध्यप्रदेश में इस साल अब तक कोरोना के 271 केस सामने आ चुके है। वहीं वर्तमान में प्रदेश में 91 एक्टिव केस है, जब इस साल कोरोना संक्रमित 4 की मौत हो चुकी है।.
कोरोना के नए वैरिएंट की जद में मध्यप्रदेश- एम्स भोपाल के द्वारा मई के अंतिम सप्ताह से जून के तीसरे सप्ताह के बीच प्रदेश के विभिन्न जिलों से लिए गए 44 सैंपलों की जीनोम सीक्वेंसिंग की गई। जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भोपाल से 14, ग्वालियर से 22, टीकमगढ़ से 2 और इंदौर, खरगोन, छिंदवाड़ा, ललितपुर, सीधी से एक-एक सैंपल लिए गए थे। इन सैंपलों की जीनोम सीक्वेंसिंग मे पता चला कि XFG वेरिएंट अब प्रमुख रूप से फैलने वाला वेरिएंट बन चुका है, जिसे 44 में से 28 सैंपलों (63.6%) में यह वैरिएंट पाया गया। कोरोना का XFG वेरिएंट पूर्व में फैल रहे LF.7 वेरिएंट से उत्पन्न हुआ है। XFG वेरिएंट की शुरुआत मई के अंतिम सप्ताह में हुई, फिर यह जून के पहले और दूसरे सप्ताह में तेजी से फैला और जून के तीसरे सप्ताह तक एकमात्र सक्रिय वेरिएंट बन गया। इसके साथ इस वेरिएंट से विकसित एक उप-वेरिएंट XFG.3 की भी पहचान की गई, जो XFG पॉजिटिव 28 सैंपलों में से 5 में पाया गया।
दूसरी ओर इससे कोरोना संक्रमण के प्रमुख वेरिएंट के रूप में मौजूद LF.7 वेरिएंट मई के अंतिम सप्ताह में 50% सैंपलों में मौजूद था, जून के दौरान धीरे-धीरे कमजोर होता गया और जून के तीसरे सप्ताह तक पूरी तरह समाप्त हो गया।
नए वैरिएंट पर वैक्सीन का असर नहीं- एम्स की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना के XFG और LF.7 वेरिएंट्स में कुछ ऐसे म्यूटेशन हुए हैं, जो वैक्सनेटेड लोगों को भी संक्रमित कर सकता है। यानि ऐसे लोग जो कोविड-19 का टीका लगवा चुके है उन व्यक्तियों को भी यह वैरिएंट संक्रमित कर सकता हैं। हलांकि राहत वाली बात यह है कि कोरोना के XFG वैरिएंट से संक्रमितों में अब तक केवल हल्के या लक्षण रहित संक्रमण ही सामना आया हैं।
WHO की निगरानी सूची में नहीं नया वैरिएंट-इसी कारण से, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इन्हें "चिंता के वेरिएंट" या "निगरानी के वेरिएंट" की श्रेणी में नहीं रखा है। वहीं एम्स की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में WHO द्वारा "निगरानी के वेरिएंट" के रूप में सूचीबद्ध किया गया NB.1 (निम्बस वेरिएंट), एम्स भोपाल द्वारा जांचे गए किसी भी सैंपल में नहीं पाया गया।
क्या कहना एम्स डायरेक्टर का?- भोपाल एम्स के डायरेक्टर डॉ. अजय सिंह ने कहा कि कोई भी नया वायरस वेरिएंट हमारी निगरानी से न छूटे, इसलिए हम लगातार प्रयास कर रहे हैह। XFG जैसे वेरिएंट्स और उनके सब वैरिएंट की समय पर पहचान से हम वायरस के व्यवहार को समझ सकते हैं और समय रहते सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक एहतियाती कदम उठा सकते हैं। वह कहते हैं क निरंतर जीनोमिक सीक्वेंसिंग केवल एक शैक्षणिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि महामारी की तैयारी और प्रतिक्रिया का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।
एम्स भोपाल का मानना है कि राज्य और आस-पास के क्षेत्रों में SARS-CoV-2 की जीनोमिक सीक्वेंसिंग को एक निरंतर और प्राथमिक सार्वजनिक स्वास्थ्य गतिविधि के रूप में अपनाया जाना चाहिए।यह आने वाले समय में संभावित संक्रमणों की शीघ्र चेतावनी, समय पर हस्तक्षेप और बेहतर तैयारी के लिए आवश्यक है।