पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नई पार्टी की घोषणा कर दी है। उनकी नई पार्टी का नाम पंजाब लोक कांग्रेस होगा। इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस से भी इस्तीफा दे दिया है। इस्तीफे के बाद ही उन्होंने बागी तेवर दिखाते हुए उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि वे नवजोत सिंह सिद्धू को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे। आगामी विधानसभा चुनाव में उन्होंने सिद्धू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने की बात भी कही।
माना जा रहा है कि कैप्टन सिंह यदि आगामी विधानसभा चुनावा में भाजपा से गठजोड़ करते हैं तो वे मुकाबले को चतुष्कोणीय बना सकते हैं। चुनाव को लेकर आ रहे विभिन्न सर्वेक्षणों के मुताबिक पंजाब में आम आदमी पार्टी फिलहाल बढ़त बनाए हुए है। इतना ही नहीं कांग्रेस की कलह का भी सीधा फायदा आप को मिल सकता है।
1965 में लड़ी थी पाकिस्तान के खिलाफ जंग : कैप्टन सिंह राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और भारतीय सैन्य अकादमी में जाने के बाद वे वर्ष 1963 में सेना में भर्ती हुए थे, लेकिन वर्ष 1965 में इस्तीफा दे दिया। वर्ष 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध छिड़ने पर वे पुन: सेना में भर्ती हो गए तथा कैप्टन के रूप में सिख रेजीमेंट में युद्ध में भाग लिया।
1980 में शिअद में शामिल हुए : कांग्रेस में शामिल होने के बाद वे वर्ष 1980 में लोकसभा के लिए चुने गए, लेकिन स्वर्ण मंदिर पर सैन्य कार्रवाई 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' होने पर उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। बाद में वे शिरोमणि अकाली दल (शिअद) में शामिल हो गए तथा तलवंडी साबो हलके से चुनाव जीतकर विधायक बने तथा कृषि एवं पंचायत मंत्री बने।
2002 में बने पंजाब के मुख्यमंत्री : वर्ष 1992 में उन्होंने शिअद को भी छोड़ दिया और अलग से शिरोमणि अकाली दल (पंथिक) का गठन किया, लेकिन वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की करारी शिकस्त तथा स्वयं भी पटियाला से चुनाव हारने पर उन्होंने पार्टी का 1998 में कांग्रेस में विलय कर दिया। वह वर्ष 1999 से 2002 तथा 2010 से 2013 तक पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तथा वर्ष 2002 से 2007 तक राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र उन्हें पुन: प्रदेश पार्टी की कमान सौंपी गई तथा उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने गत 11 मार्च को आए विधानसभा चुनाव नतीजों में 77 सीटों पर शानदार जीत दर्ज की तथा 16 मार्च को उन्हें राज्य के 26वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। हालांकि कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।