नई दिल्ली। उत्तरप्रदेश के पूर्व काबीना मंत्री गायत्री प्रजापति की जमानत के लिए 10 करोड़ रुपए का सौदा हुआ था। यह जमानत उन्हें रेप के आरोप से जुड़े एक मामले में 25 अप्रैल को मिली थी। अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक रिपोर्ट के हवाले से दावा किया है कि प्रजापति को साजिश के तहत जमानत दिलाई गई थी जिसमें एक वरिष्ठ जज भी शामिल थे।
इस खुलासे के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दिलीप बी. भोसले ने प्रजापति को जमानत मिलने की जांच के आदेश दिए थे। जांच में संवेदनशील मामलों की सुनवाई करने वाली अदालतों में जजों की पोस्टिंग में हाई लेवल करप्शन की बात सामने आई है। इस तरह की अदालतें रेप और हत्या जैसे जघन्य अपराधों के मामलों की सुनाई करती हैं।
जस्टिस भोसले ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अतिरिक्त जिला और सेसन जज ओपी मिश्रा को 7 अप्रैल को उनके रिटायर होने से ठीक 3 सप्ताह पहले ही पोक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस) जज के रूप में तैनात किया गया था। जज ओपी मिश्रा ने ही गायत्री प्रजापति को 25 अप्रैल को रेप के मामले में जमानत दी थी।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जमानत देने के बदले 10 करोड़ रुपए का लेन-देन किया गया था। इस रकम में से 5 करोड़ रुपए उन 3 वकीलों को दिए गए, जो मामले में बिचौलिए की भूमिका निभा रहे थे, बाकी के 5 करोड़ रुपए पोक्सो जज (ओपी मिश्रा) और उनकी पोस्टिंग संवेदनशील मामलों की सुनवाई करने वाली कोर्ट में करने वाले जिला जज राजेंद्र सिंह को दिए गए थे।
ओपी मिश्रा की नियुक्ति नियमों की अनदेखी करते हुए और अपने काम को बीते 1 साल से 'उचित रूप से करने वाले' एक जज को हटाकर हुई थी। इंटेलिजेंस ब्यूरो ने जज की पोक्सो पोस्टिंग में घूसखोरी की बात कही है। घूस की रकम मामले में बिचौलिए की भूमिका निभा रहे थे 3 वकीलों, पोक्सो जज (ओपी मिश्रा) और जिला जज राजेंद्र सिंह के बीच बांटी गई थी।
जिला जज राजेंद्र सिंह से पूछताछ की जा चुकी है। राजेंद्र सिंह को पदोन्नत कर हाईकोर्ट में तैनात किया जाना था लेकिन इस मामले के सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनका नाम वापस ले लिया है और आगे की प्रक्रिया लंबित है। (एजेंसी)