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गुलबर्ग सोसाइटी केस में 24 दोषी करार, 36 बरी

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अहमदाबाद , गुरुवार, 2 जून 2016 (12:24 IST)
अहमदाबाद। गुजरात में अहमदाबाद की एक विशेष अदालत ने वर्ष 2002 के गुजरात दंगों से जुडे गुलबर्ग सोसायटी मामले में अपना आज फैसला सुनाते हुए 24 आरोपियों को दोषी करार दिया तथा 36 अन्य को दोषमुक्त कर दिया। मामले में 6 जून को सजा का ऐलान होगा।
 
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) की विशेष अदालत के जज पीबी देसाई ने 24 दोषियों में से 11 को हत्या और अन्य आरोपों तथा 13 को दंगा करने का दोषी ठहराया है। अदालत छह जून को दोषियों की  सजा की अवधि के बारे में फैसला सुनायेगी।
 
दोषमुक्त होने वालों में भाजपा के तत्कालीन पार्षद विपिन पटेल तथा मेघाणीनगर के पुलिस इंस्पेक्टर के जी एरडा भी शामिल हैं।
 
एसआईटी के वकील आरसी कोडकर ने बताया कि इस मामले में 66 आरोपी थे जिनमें से नौ पिछले लगभग 14 साल से जेल में हैं। जबकि छह की मौत हो चुकी है। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए अदालत परिसर के आसपास सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे।

दंगे में मारे गए पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने कहा कि वह 34 लोगों को छोड़े जाने के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करेंगी।
 
 



क्या था मामला : 2002 में साबरमती एक्सप्रेस में लगायी गई आग में 59 लोग मारे गए थे। जिसके बाद अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसायटी में गुस्साई भीड़ ने 69 लोगों को जिन्दा जला दिया था। हमले में मारे गए लोगों में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी थे। इस हमले में पूर्व कांग्रेसी सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोगों की हत्या कर दी गई थी।
 
मामले की जांच कर रही एसआईटी ने 73 लोगों को गिरफ्तार किया था। अब तक 73 लोगों में 4 की मौत हो चुकी है जबकि कुछ लोग हमले के वक्त नाबालिग थे। अगर ऐसे लोगों को हटा दिया जाए तो 60 आरोपियों पर फैसला आना है। कुल आरोपियों में से 9 आरोपी पिछले 14 साल से सलाखों के पीछे हैं जबकि बाकी जमानत पर रिहा हैं।
 
गुलबर्ग नरसंहार की जांच समय समय पर अलग-अलग एजेंसियां करती रहीं। लेकिन घटना के 7 साल बाद सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक एसआईटी गठित की गई। एसआईटी को गुजरात दंगों के 9 मामलों की जांच दी गई थी जिसमें से गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड एक है।
 
इस मामले में अबतक अलग-अलग समय पर 11 चार्जशीट दायर की गई है, जबकि मुकदमे की सुनवाई के दौरान 338 गवाहों ने गवाही दी है। कोर्ट ने पिछले साल ही इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा था।  लेकिन सुप्रीम कोर्ट की रोक के चलते फैसला सुनाया नहीं जा सका। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल फरवरी महीने में इस मामले पर फैसले पर लगाई रोक हटा ली थी।
 

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