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राजस्थान प्रकरण पर सुनवाई सोमवार तक स्थगित, असंतुष्ट विधायकों को 4 दिन की राहत

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, शुक्रवार, 17 जुलाई 2020 (22:01 IST)
जयपुर। सचिन पायलट और कांग्रेस के 18 अन्य विधायकों को जारी अयोग्यता नोटिस पर विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) की किसी कार्रवाई से शुक्रवार को 4 दिनों की राहत मिल गई। दरअसल, राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर सुनवाई सोमवार के लिए स्थगित कर दी है।

उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने स्पीकर के नोटिस के खिलाफ असंतुष्ट विधायकों की याचिका पर सुनवाई शुक्रवार शाम स्थगित कर दी। अदालत ने अगली सुनवाई सोमवार पूर्वाह्न 10 बजे के लिए निर्धारित की है। स्पीकर के वकील ने अदालत को आश्वासन दिया कि मंगलवार शाम साढ़े पांच बजे तक नोटिस पर कोई आदेश जारी नहीं किया जाएगा।

इससे पहले, स्पीकर सीपी जोशी ने अदालत को पत्र लिखकर कहा था कि नोटिस पर शुक्रवार शाम पांच बजे तक कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। उनके वकील इस समय सीमा को मंगलवार शाम साढ़े पांच बजे तक बढ़ाने के लिए सहमत हो गए क्योंकि याचिका पर आदेश आना अभी बाकी है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी ने वीडियो कॉन्‍फ्रेंस के माध्यम से दलील पेश की। वहीं स्पीकर की ओर से दलील देने वालों में अभिषेक मनु सिंघवी भी शामिल थे। सुनवाई के बाद स्पीकर के एक अन्य वकील ने कहा, यह दलील दी गई है कि स्पीकर की शक्तियां स्वायत्त हैं और उन्होंने कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं।

न्याय पालिका को नोटिसों पर आदेश जारी होने तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। सिंघवी द्वारा दलील सोमवार पूर्वाह्न 10 बजे फिर से शुरू होगी। याचिका में नोटिस को कांग्रेस की एक शिकायत के आधार पर चुनौती दी गई है, जिसमें पार्टी ने कहा था कि पार्टी व्हिप की अवज्ञा करने को लेकर विधायकों को राजस्थान विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महंती और न्यायमूर्ति प्रकाश गुप्ता की पीठ ने कांग्रेस के मुख्य सचेतक महेश जोशी से असंतुष्ट विधायकों की याचिका पर शनिवार तक जवाब दाखिल करने को कहा। जोशी ने स्पीकर के समक्ष शिकायत दी थी। याचिका में जोशी को आज पक्षकार बनाया गया। पायलट खेमे ने दलील दी है कि पार्टी का व्हिप तभी लागू होता है जब विधानसभा का सत्र चल रहा होता है।

स्पीकर को दी गई अपनी शिकायत में कांग्रेस ने पायलट और अन्य बागी विधायकों के खिलाफ संविधान की 10वीं अनुसूची के पैराग्राफ 2(1)(ए) के तहत कार्रवाई करने की मांग की है। विधायक सदन में जिस पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उसकी सदस्यता यदि अपनी मर्जी से त्याग देते हैं तो यह प्रावधान उक्त विधायक को अयोग्य करार देता है।

कांग्रेस का दावा है कि विधायकों के आचरण से यही मतलब निकलता है। लेकिन असंतुष्ट खेमे ने कहा कि पायलट ने पार्टी छोड़ने के इरादे के बारे में कभी संकेत नहीं दिया है। राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत करने के बाद पायलट को उप मुख्यमंत्री पद से और प्रदेश कांग्रेस इकाई प्रमुख पद से बर्खास्त कर दिया गया है।

याचिकाकर्ताओं ने रिट याचिका में कहा है कि वे कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुए हैं और पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा है और दल-बदलकर किसी अन्य पार्टी में नहीं जाना चाहते हैं।
 
याचिका में कहा गया है, तुरंत नोटिस जारी किए जाने के माध्यम से पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे याचिकाकर्ताओं (विधायकों) की आवाज दबाने की कोशिश की जा रही है, जिन्होंने सर्वाधिक लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात रखी और उन्हें इस तरह के नेतृत्व के कामकाज के बारे में उनके ऐतराज जताए जाने के उनके अधिकार छीनने की धमकी दी जा रही है।
 
याचिका में कहा गया है कि तथाकथित शिकायत पर संज्ञान लेने में प्रधिकार द्वारा दिखाई गई जल्दबाजी और शीघ्रता से इस बारे में याचिकाकर्ताओं के मन में जरा भी संदेह नहीं रह जाता है कि यह कदम उन्हें अयोग्य करार देने के पूर्व निर्धारित निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए लक्षित है।
 
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि सरकार के कामकाज के बारे में किसी भी शिकायत को मुख्यमंत्री द्वारा सहन नहीं किया गया।
 
असंतुष्ट विधायकों ने कहा है कि विधायकों के बीच पनप रहे असंतोष को भांपते हुए मुख्यमंत्री ने 13 जुलाई को बगैर कोई खास एजेंडा बताए विधायक दल की एक बैठक बुलाई और उनके खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाए। याचिका में कहा गया है कि इसके बाद उन्हें मुख्य सचेतक ने बैठक में शामिल नहीं होने को लेकर नोटिस जारी किए थे।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री ने राजस्थान पुलिस के विशेष कार्रवाई समूह (एसओजी) द्वारा याचिकर्ताओं की जांच किए जाने का आदेश दिया था। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री का यह आदेश याचिकाकर्ताओं और अन्य विधायकों को पार्टी के अंदर नेतृत्व की अक्षमता के खिलाफ आवाज उठाने को लेकर धमकी के अलावा कुछ और नहीं था।(भाषा) 

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