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दक्षिण में भी हो रहा है हिन्दी का विस्तार

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ऐसा माना जाता है कि राजभाषा हिन्दी को लेकर दक्षिण राज्यों समेत अन्य गैर हिन्दी भाषी राज्यों में पूर्वाग्रह होता है, लेकिन क्या हकीकत में भी ऐसा ही है? हिन्दी दिवस के अवसर पर वेबदुनिया ने यह जानने का प्रयास किया कि आखिर दक्षिण भारत में हिन्दी की स्थिति क्या है और वहां के लोग भारत की राजभाषा को लेकर क्या सोचते हैं? आइए, जानते हैं चार दक्षिण भारतीय राज्यों में हिन्दी की स्थिति के बारे में....
 
हिन्दी में बात कहना आसान : कर्नाटक में हिन्दी का बहुत अधिक प्रभाव नजर आता है। आप कहीं भी जाएं, यह चाहे सिनेमा हो या सब्जियों का बाजार, मॉल्स हो या रेस्त्रां, टैक्सी बुक करनी हो या फिर कपड़े खरीदने हों, सभी स्थानों पर बातचीत हिन्दी में होती है। हिन्दी सीखने से अपनी बात कहना अधिक आसान हो जाता है। 
 
यहां आप अधिक लोगों को अंग्रेजी या हिन्दी में बातचीत करते सुन सकते हैं, कन्नड में कम बातचीत सुनाई देती है। एफएम भी इसके अपवाद नहीं हैं। राज्य में मनोरंजन के सबसे बड़े साधन माल्स हैं, जहां पर अंग्रेजी, हिन्दी का असर दिखाई देता है।
 
मेरा मानना है कि अपनी संस्कृति को फैलाना हमेशा ही अच्छा होता है क्योंकि इसी से समाज एक पूर्णता प्राप्त करता है। लेकिन इसके बीच में आपको अपनी पहचान नहीं खोनी चाहिए। बेंगलुरू एक कॉस्मोपॉलिटन शहर है जहां पर आपको समूचे देश से आए लोग मिल जाएंगे। अधिक से अधिक भाषाएं सीखना हमेशा ही अच्छा होता है क्योंकि तब ज्यादा लोगों से बातचीत करना सरल हो जाता है। 
 
बेंगलुरु में पालकगण अपने बच्चों से हमेशा ही ज्यादातर अंग्रेजी या हिन्दी में बात करते हैं। जब युवा लोग सार्वजनिक स्थान पर मौज मस्ती कर रहे होते हैं, तब भी हमें हिन्दी या अंग्रेजी ही ज्यादा सुनाई पड़ती है।
 
कर्नाटक और इसकी भाषा, कन्नड़, की एक समृद्ध विरासत, संस्कृति और परंपरा है। इसलिए मेरी विनम्र मत यह है कि वैश्वीकरण को अपनाते समय और अपनी संस्कृति का संरक्षण करने के दौरान एक अच्छा संतुलन बनाकर रखना चाहिए। -राजेश पाटिल
 
तमिलनाडु में हिन्दीभाषियों की संख्‍या बढ़ी : तमिल भारत की एक ऐतिहासिक भाषा है और तमिल लोग अपनी मातृभाषा को बहुत प्यार करते हैं। पर जब हिन्दी की बात आती है तो यह देश भर के लोगों के लिए आम बोलचाल की भाषा है। 1960 के दशक में केन्द्र सरकार ने तमिलनाडु के स्कूलों के पाठ्‍यक्रम में हिन्दी को दूसरी भाषा बनाया लेकिन द्रविड़ मुनेत्र कझगम (डीएमके) इसके बहुत खिलाफ रही है और इसने तब इसका बहुत विरोध भी किया था। तब सार्वजनिक विरोध को देखते हुए उस समय इस योजना को रद्‍द करना पड़ा।
 
पर उन्नीस सौ अस्सी के दशक में निजी स्कूलों में हिन्दी को दूसरी भाषा के तौर पर पढ़ाया जाने लगा। उनका कहना था कि जो लोग हिन्दी नहीं जानते हैं और तमिलनाडु से बाहर रहते हैं तो उनका बने रहना बहुत मुश्किल होगा। हालांकि तमिलनाडु के राजनीतिक दल हिन्दी का विरोध करते हैं लेकिन राज्य के कुछ भागों में छात्र हिन्दी सीखने में रुचि दर्शा रहे हैं। क्योंकि शिक्षा को पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश में जब वे उत्तर भारत की ओर जाते हैं तो उन्हें हिन्दी न जानने के कारण मुश्किलों का अनुभव करना पड़ता है। ऐसे लोग न तो दिमाग में अपनी बात को ठीक से रख पाते हैं और वे हिन्दी समझने में भी असमर्थ होते हैं। 
 
हाल ही में, तमिलनाडु में एक जनमत सर्वेक्षण किया गया कि हिंदी सीखने की क्या जरूरत है?  ज्यादातर छात्रों ने तमिल और अंग्रेजी के बाद हिन्दी को तीसरी भाषा के तौर पर सीखने में रुचि दिखाई। ऐसे सर्वेक्षणों के आधार पर तमिल छात्रों ने महसूस किया कि आजकल हिन्दी भाषा जानना बहुत महत्वपूर्ण है। हिन्दी भाषा को लेकर तमिलनाडु में यह धीरे-धीरे बदलाव हुआ है। इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि तमिलनाडु के छात्र भी 'हिन्दी दिवस' को मनाएं। इस अवसर उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए किसी भी खास अवसर या दिन की जरूरत नहीं है। -एस. बालाकृष्णन 
 
हिन्दी समृद्ध भाषा, लेकिन... : राजभाषा हिन्दी एक बहुत ही समृद्ध भाषा है, लेकिन तेलुगू भाषी राज्य में इसका प्रचार-प्रसार ठीक नहीं है। राज्य के दैनिक कामों में इसके प्रचार, प्रसार और क्रियान्वयन की यही स्थिति है।
 
देश के लोगों में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक सम्पर्क भाषा के दौरान इसकी आश्चर्यजनक सेवा को सम्मान देते हुए हिन्दी दिवस मनाया जा रहा है। आंध्रप्रदेश और तेलंगाना राज्यों में 1999 से यह दूसरी भाषा के तौर पर पढ़ाई जा रही है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए हिन्दी को सातवीं कक्षा में शुरू किया जाता है। सरकारी स्कूलों में इसे छठवीं कक्षा से ही पढ़ाया जा रहा है। हिन्दी शिक्षण के लिए जो पुस्तकें निर्धारित की गई हैं, उन्हें बहुत ही आकर्षक और प्रभावी बनाया गया है ताकि सीखने वाला इसे आसानी से सीख ले। 
 
माध्यमिक स्तर पर हिंदी की स्थिति अच्छी है, लेकिन उच्चतर माध्यमिक और स्नातक स्तर पर इसे बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। अंग्रेजी के मुकाबले सरकार द्वारा इसे बहुत कम सहायता दी जाती है। इसलिए बहुत सारे लोग और गैर-सरकारी संगठन दक्षिणी क्षेत्र में इसे विकसित करने के प्रयास कर रहे हैं जहां लोगों की इसको लेकर जागरूकता कम है। इस क्षेत्र में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, चेन्नई और हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद हिन्दी को विकसित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।  
 
सार्वजनिक क्षेत्र में राजभाषा के तौर पर हिन्दी का क्रियान्वयन नाममात्र का है क्योंकि यहां जिन अधिकारियों को इसे क्रियान्वित कराना है, उनका इस पर जोर ही नहीं है। विशेषकर बैंकों और केन्द्रीय सरकारी कार्यालयों में एक अधिकारी नियुक्त ‍किया जाता है जो कि इसके प्रचार-प्रसार के लिए उत्तरदायी है, लेकिन यह अधिकारी अपने कर्तव्यों के प्रति सतर्क नहीं हैं। तेलुगू भाषी राज्यों में इसकी यही स्थिति है। -वेंकटेश्वर राव
 
मलयाली लोगों की हिन्दी में रुचि : केरल के लोग संस्कृति के मामलों में एक स्पष्ट दृष्टिकोण रखते हैं और वे विभिन्न प्रकार की परंपराओं, संस्कृतियों को स्वीकार करने और उन्हें अपनाने में बहुत उदार होते हैं। विभिन्न प्रजातियों के प्रति भी वे ऐसा ही जुड़ाव महसूस करते हैं। इस कारण से वे विभिन्न भाषाओं को भी प्यार करते हैं और उनका सम्मान करते हैं। जहां तक हिन्दी की बात आती है तो मलयाली हिन्दी को सीखने और बोलने में बहुत रुचि रखते हैं। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों की तरह से केरल में यह विषय ‍शैक्षिक पाठ्‍यक्रमों में अनिवार्य है।  
 
मलयालय सीखना बहुत कठिन होता है, इसलिए दूसरी भाषाओं को सीखने और अपनाने में मलयाली बहुत कम समय लेते हैं। हम बहुत से केरलवासियों को क्षेत्रीय भाषाओं को बिना किसी अवरोध के बोलते सुन सकते हैं। वे तमिलनाडु में तमिल, तेलुगू आंध्र और तेलंगाना में तथा कर्नाटक में कन्नड़ बोल सकते हैं क्योंकि वे जहां जाते हैं, रहते हैं वहां वे स्वयं को स्थानीय भाषा से आसानी से जोड़ लेते हैं।       
 
14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है और हालांकि तब केरल में त्योहारों का माहौल होता है,  लेकिन तब भी वे इस दिन को विभिन्न तरीकों से हिन्दी के उपयोग को प्रोत्साहित करके मनाते हैं। बहुत सारे स्कूलों में हिंदी आधारित प्रतियोगिताएं होती हैं और केरल हिन्दी प्रचारक सभा विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। इन कार्यक्रमों के तहत मोबाइल्स में हिन्दी बोलने के एप्लीकेशंस, कुछेक चर्च में हिन्दी में प्रार्थना सभाएं भी आयोजित की जाती हैं।
 
मलयालम पर संस्कृत का गहरा प्रभाव है और इस प्रभाव के चलते मलयाली लोगों को राष्ट्रभाषा के प्रति अभ्यस्त होने में सरलता महसूस होती है। और जहां तक 'ईश्वर की अपनी भूमि' के लोगों को प्रेरित करने की बात है तो किसी विशेष दिन या अवसर की आवश्यकता नहीं होती है। -बीजू कुमार    

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