नई दिल्ली। गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने हिन्दी को अन्य क्षेत्रीय भाषाओं पर थोपे जाने के आरोप को खारिज करते हुए शुक्रवार को कहा है कि हिन्दी देश की राष्ट्रीय नहीं आधिकारिक भाषा है। उन्होंने कहा कि आठवीं अनुसूची में किन भाषाओं को शामिल किया जाए इसे तय करने के संदर्भ में हमारा सक्रिय प्रयास है कि न्याय हो, लेकिन ऐसा करते हुए कोई जटिलता न उत्पन्न हो।
रिजिजू ने आज राज्यसभा में कांग्रेस सदस्य बीके हरिप्रसाद द्वारा पेश निजी विधेयक पर चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने के लिए 38 भारतीय भाषाओं की मांग लंबित है। इस मुद्दे का सर्वमान्य हल निकालने के लिए वर्ष 1996 में पाहवा समिति और 2003 में महापात्र समिति गठित की गई थी।
उन्होंने कहा कि इन समितियों की सिफारिशें क्षेत्रीय भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के मानक तय करने का मकसद पूरा करने में नाकाम रहीं, लेकिन मौजूदा सरकार ने इस संवेदनशील मामले को सुलझाने के लिए गृह मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव की अगुवाई में एक समिति बनाई है ताकि कोई ठोस समाधान निकाला जा सके।
उन्होंने कहा कि हिन्दी सरकारी कामकाज की भाषा है, न कि राष्ट्रभाषा। उन्होंने कहा कि देश में किसी भी भाषा को दूसरी भाषा पर थोपा नहीं जाएगा। उन्होंने कहा कि आठवीं अनुसूची में किन भाषाओं को शामिल किया जाए इसे तय करने के संदर्भ में हमारा सक्रिय प्रयास है कि न्याय हो, लेकिन ऐसा करते हुए कोई जटिलता न उत्पन्न हो।
उन्होंने कहा कि लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखकर सरकार ने एक आंतरिक व्यवस्था बनाई है और अतिरिक्त सचिव की अगुवाई में एक समिति बनाई है जिसकी अनुशंसाओं और विभिन्न विचारों को समावेश करते हुए एक मानदंड तय किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार जल्द से जल्द कोई रास्ता निकालना चाहती है ताकि लंबित भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जा सके। (भाषा)