बसंत पंचमी से शुरू हुआ ब्रज का होली महोत्सव आज तब अपने चरम पर पहुंच गया, जब प्रीत और भक्ति के विविध रंगों से गोकुल की गलियां रास-रंग में डूब गईं। बरसाना और नंदगांव में जहां लट्ठमार होली की धूम रही, वहीं गोकुल पहुंचते-पहुंचते लट्ठ छड़ियों में बदल गए।
पूरे जोश और उमंग के साथ हुरियारों की टोली सुबह नंदगांव से ठाकुर जी का डोला लेकर गोकुल के लिए चली तो कृष्ण भक्तों ने छतों से फूल बरसाए और गुलाल-अबीर उड़ाया। गोकुल की गलियों में बाल गोपाल की डोली प्रवेश करते ही गोकुलवासियों में हर्षोल्लास की लहर दौड़ गई। वहीं बाल-गोपाल कृष्ण स्वरूप के डोले को कोरोना के चलते मंदिर से बाहर नहीं लाया गया।
गोकुल में आज सुबह से ही देश-विदेश से आए कान्हा प्रेमी भक्तों ने स्थानीय लोगों के साथ जमकर होली की हुड़दंग में धमाल मचाया। दोपहर के समय जब ठाकुरजी मुरलीघाट पहुंचे तो सोलह श्रृंगार कर उत्साहित गोपियां पहले से ही हाथों में छड़ी लेकर नटखट कान्हा का इंतजार कर रहीं थीं। कान्हा के साथ सजधजकर पारंपरिक पोषाक पहनकर कान्हा के सखा बाल ग्वाल भी आए थे। इसके बाद ठाकुर जी से अनुमति ली गई और शुरू हुई छड़ीमार होली।
होली की मस्ती में सराबोर श्रद्धालुओं को द्वारिकाधीश में अपने आराध्य ठाकुर जी के साथ बगीचे में टेसू केसर के रंगों से होली खेलते भी दिखाई पड़े। श्री द्वारिकाधीश भगवान के मंदिर में होली की अनोखी छटा देखते ही मन बरबस ठाकुर जी के चरणों में नतमस्तक हो जाता है। होली की इस मस्ती में देश-विदेश के भक्ति से सराबोर श्रद्धालुओं का कहना है कि ब्रज मंडल जैसी होली अन्यत्र कहीं नहीं होती है। इसी प्रकार ब्रज के अन्य सभी प्रमुख मंदिरों में भी होली पर्व की धूम मची हुई है और पूरा ब्रज मंडल होली की मस्ती में सराबोर है।
द्वारिकाधीश मंदिर में दर्शन करने आए श्रद्धालुओं से जब बात की तो उन्होंने कहा कि वह होली का आनंद लेने आए हुए है, यहां की होली सभी जगह से अलग है। यहां भगवान के साथ होली खेलने में जमकर रंग और गुलाल के साथ टेसू के फूलों से बना रंग भी उड़ाया गया।
हालांकि इस बार कोरोना के चलते भगवान द्वारिकाधीश को मंदिर से बाहर चौक मैं नहीं लाया गया क्योंकि जिस तरह से बच्चों को कोरोना से सावधान रहना ज्यादा जरूरी है, उसी तरह यहां भी बाल स्वरूप होने के कारण भगवान को बाहर नहीं निकाला गया।
बरसाने और नन्द गांव से शुरू हुई ब्रज की लट्ठमार होली की धूम मची हुई है। दूरदराज से आए भक्त लट्ठमार होली खेलकर अपने को धन्य मान रहे हैं। भक्तों का कहना है कि पूरे साल वह इस लट्ठमार होली का इंतजार करते हैं, यह होली बैरभाव भुलाकर आपस में मिलजुलकर रहने का संदेश देती है।
गोकुल में नन्द बाबा के महल से शुरू हुआ भगवान का डोला जिसमें गोकुलवासी होली की मस्ती में मस्त होकर नाचते-गाते चलते हैं। भगवान का सजा हुआ डोला, जिसमें विराजमान भगवान अपने सखी-सखाओं के साथ नन्द चौक पर होली खेलते हैं, जहां पर गोकुल की महिलाएं उन पर छड़ी से खूब वार करती हैं।
क्योंकि जिस तरह से बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होती है तो उसी तरह गोकुल में छड़ीमार होली होती है। यहां प़र छड़ी इसलिए मारते हैं, क्योंकि गोकुल में भगवान बाल रूप में विराजे होते हैं, इसलिए लट्ठ की मार भगवान सहन नहीं कर सकते हैं, इसलिए गोपियां लट्ठ की जगह छड़ी से मारकर होली खेलती हैं।
नन्द चौक में बनाए गए भगवान के बगीचे में मंदिर के पुजारियों द्वारा भगवान भक्तों के ऊपर टेसू के फूल से बना हुआ रंग डालकर होली का आनंद लेते हैं और यहां प़र आए भक्त भगवान की छड़ीमार होली के दर्शन कर आनंदित हो जाते हैं। भक्तों पर पड़ने वाला रंग महीनों पहले बनना शुरू हो जाता है। ये रंग सेहत के लिए लाभदायक होता है। इसे टूसे के फूलों और प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से तैयार किया जाता है।