सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आपसी सहमति से समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। अदालत ने इस मामले में फैसला 17 जुलाई को ही सुरक्षित रख लिया था। जानते हैं संवैधानिक पीठ की ओर से दिए गए फैसले की 14 बड़ी बातें-
1. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सहमति से दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध को एक मत से अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है।
2. अदालत ने भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 377 के एक हिस्से को, जो सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध बताता है, तर्कहीन, बचाव नहीं करने वाला और मनमाना करार दिया।
3. अदालत ने सेक्शन 377 को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया क्योंकि इससे समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है।
4. सेक्शन 377 पर फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि समलैंगिकों के अधिकार भी दूसरे नागरिकों जैसे हैं। उन्होंने कहा कि हमें एक-दूसरे के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए और मानवता दिखानी चाहिए।
5. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पशुओं और बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन क्रिया से संबंधित सेक्शन 377 का हिस्सा पहले जैसा ही लागू रहेगा।
6. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और न्यायाधीश एएम खानविलकर ने कहा कि खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पाना मरने के समान है।
7. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की सेक्शन 377 एलजीबीटी के सदस्यों को परेशान करने का हथियार था, जिसके कारण इससे भेदभाव होता है।
8. सीजेआई दीपक मिश्रा ने कहा कि सामाजिक नैतिकता की आड़ में दूसरों के अधिकारों के हनन की अनुमति नहीं दी जा सकती।
9. प्रधान न्यायाधीश मिश्रा ने कहा कि 'कोई भी अपने अस्तित्व से भाग नहीं सकता। हमारा फैसला कई पहलुओं पर आधारित होगा।
10. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एलजीबीटी समुदाय को अन्य नागरिकों की तरह समान मानवीय और मौलिक अधिकार हैं।
11. समलैंगिकता के अधिकार के लिए वर्ष 2001 में नाज फाउंडेशन संस्था ने दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। सितंबर 2004 को हाईकोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी थी। याचिकाकर्ताओं ने रिव्यू पिटिशन दायर की थी।
12. फरवरी 2012 से सुप्रीम कोर्ट ने रोजाना सुनवाई करते हुए मार्च 2012 में फैसला सुरक्षित किया।
13. अगस्त, 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 'निजता के अधिकार' पर दिए गए फैसले में सेक्स-संबंधी झुकावों को मौलिक अधिकार माना और कहा कि किसी भी व्यक्ति का सेक्स संबंधी झुकाव उसके राइट टू प्राइवेसी का मूलभूत अंग है।
14. 6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया कि समलैंगिक संबंध अपराध नहीं है।