नई दिल्ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने कम लागत वाली मेंब्रेन प्रौद्योगिकी का विकास किया है, जिसमें खट्टे रसदार फलों और उनके छिलकों जैसे कृषि संसाधनों का इस्तेमाल कर मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली दवा और उम्र वृद्धि के प्रतिकूल यौगिक तैयार किया गया है।
इस प्रौद्योगिकी का विकास आईआईटी गुवाहाटी के पर्यावरण केंद्र के प्रमुख और रासायनिक इंजीनियरिंग के प्रोफेसर मिहिर कुमार पुरकैट ने एम. टेक के छात्र वीएल धाडगे के साथ मिलकर किया है। इसमें किसी रासायनिक पदार्थ का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
पुरकैट ने बताया, मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली दवाएं और उम्र वृद्धि के प्रतिकूल (एंटी एजिंग) यौगिक एंजाइम कार्यकलाप का शुद्धिकरण करते हैं। चिकित्सकीय प्रयोगों के कारण उम्र वृद्धि के प्रतिकूल यौगिक को दवा उद्योग में काफी लोकप्रियता मिली है। ये कम मात्रा में बांस की पत्तियों, अंगूर, सेब और अन्य प्राकृतिक संसाधनों में भी पाए जाते हैं।
उन्होंने कहा, विकसित प्रौद्योगिकी विशेष तौर पर सूक्ष्म कणों वाली है जिन्हें दबाव डालकर मेंब्रेन अलगाव प्रक्रिया से तैयार किया गया है। उपयुक्त मेंब्रेन इकाई के हिस्सों का शीतलन कर पाउडर की तरह उत्पाद तैयार कर लिया जाता है।
प्रोफेसर ने बताया कि जो तकनीक व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हैं वे विभिन्न महंगे जैव विलयक जैसे क्लोरोफॉर्म, एसीटोन, एसीटोनाइट्राइल आदि का प्रयोग करते हैं और इस कारण इन दवा सामग्रियों की कीमत ज्यादा है, जिससे एंटीऑक्सीडेंट की कीमत ज्यादा हो जाती है।
उन्होंने कहा, हमने जो तकनीकी विकसित की है उसमें महंगे जैव विलयकों की जरूरत नहीं है और इसमें केवल पानी का उपयोग किया गया है। इसलिए प्रक्रिया की लागत एवं दवाओं की कीमत वर्तमान तकनीक की तुलना में काफी कम होगी।(भाषा)