नई दिल्ली। कोरोनावायरस (Coronavirus) महामारी के दौरान खाद्यान्न के मुफ्त वितरण से पिछड़े प्रदेशों और सबसे निचले पायदान वाले राज्यों में आय असमानता में भारी कमी आई है। एसबीआई की एक रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया है। एसबीआई इकोरैप ने इस परिकल्पना के साथ शोध शुरू किया कि कैसे मुफ्त खाद्यान्न वितरण गरीबों में अत्यंत गरीब आबादी के लिए धन के वितरण को प्रभावित कर रहा है।
एसबीआई के अध्ययन में इसके लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के उस दस्तावेज से संकेत लिया गया, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि कैसे प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेएवाई) ने भारत में अत्यंत गरीबी को महामारी से प्रभावित साल 2020 में 0.8 प्रतिशत के न्यूनतम स्तर पर रखने में भूमिका निभाई है।
एसबीआई के अध्ययन में 20 राज्यों के लिए गिनी गुणांक पर चावल की खरीद की हिस्से के प्रभाव का विश्लेषण किया गया। वहीं नौ राज्यों के लिए गिनी गुणांक पर गेहूं की खरीद के हिस्से के प्रभाव का विश्लेषण किया। यहां उल्लेखनीय है कि चावल अब भी भारत में अधिकांश लोगों के लिए मुख्य भोजन में आता है।
इसमें कहा गया, हमारे नतीजे बताते हैं कि धन के असमान वितरण वाले अलग-अलग आबादी वाले समूहों में चावल और गेहूं की खरीद ने अपेक्षाकृत पिछड़े राज्यों में गिनी गुणांक में कमी के जरिए आय असमानता को कम करने में उल्लेखनीय प्रभाव डाला है। ये राज्य हैं असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऊंची खरीद से मुफ्त अनाज वितरण के जरिए गरीब में अत्यंत गरीबों को फायदा मिल रहा है। इस खरीद की वजह से संभवत: छोटे और सीमान्त किसानों के हाथ में भी पैसा आया है। इससे यह भी पता चलता है कि समय के साथ सरकार की अनाज खरीद विभिन्न राज्यों में अधिक दक्ष और प्रभावी हो सकती है।
पिछले महीने सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) के तहत 81.35 करोड़ गरीबों को एक साल तक मुफ्त राशन देने का फैसला किया था। एनएफएसए जिसे खाद्य कानून भी कहा जाता है, के तहत सरकार वर्तमान में प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलोग्राम खाद्यान्न 2-3 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से प्रदान करती है।
अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) के तहत आने वाले परिवारों को प्रतिमाह 35 किलो अनाज मिलता है।एनएफएसए के तहत गरीब लोगों को चावल तीन रुपए प्रति किलो और गेहूं दो रुपए प्रति किलो की दर से दिया जाता है। दिलचस्प तथ्य यह है कि एनएफएसए के तहत मुफ्त खाद्यान्न की वजह से परिवारों की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए खरीदी गई मात्रा की लागत शून्य हो जाती है।
रिपोर्ट कहती है कि इससे बाजार मूल्य पर अनाज की मांग कम होगी और मंडी में अनाज के दाम घटेंगे। कुल मिलाकर इसका प्रभाव उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खाद्य मुद्रास्फीति पर पड़ेगा।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)