जम्मू। चीन सीमा भारत की स्थिति को 19 नहीं कहा जा सकता बल्कि भारत 21 की स्थिति में है। खबरों के अनुसार, चीनी सेना ने एक साल में 90 प्रतिशत सैनिकों को कई बार वापस बुलाया है और उनके स्थान पर नए सैनिकों को भेजा है पर भारत ने ऐसा नहीं किया है क्योंकि उसने लद्दाख सीमा पर सियाचिन हिमखंड पर तैनात सैनिकों को चीन सीमा पर तैनात कर रखा है, जिनके पास दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धस्थल पर लड़ने का अनुभव भी है।
भारत के पास है सबसे ऊंची हवाई पट्टी : यह पूरी तरह से सच है कि भारत के पास दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी भी है और दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन हिमखंड पर लड़ने का अनुभव भी है। माना यही जाता है कि भारत के पास दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी और सैन्य शिविर के कारण डीबीओ पूरे लद्दाख में भारत की आन-बान और शान का प्रतीक है।
डीबीओ ही वह क्षेत्र है जिससे अक्साई चिन में चीन की हर हरकत पर भारतीय सेनाओं की नजर रहती है। काराकोरम, अक्साई चिन, जियांग, गिलगित बाल्टिस्तान व गुलाम कश्मीर तक चीन के मंसूबों को रोकने और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी सेना के हर दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब देने में डीओबी भारत के लिए तुरुप का पत्ता है। यह सियाचिन में भी भारतीय सेना के लिए एक मजबूत स्तंभ है।
यह मध्य एशिया के साथ भारत के जमीनी संपर्क के लिए बहुत अहम है। काराकोरम की पहाड़ियों के सुदूर पूर्व में स्थित डीओबी अक्साई चिन में भारत-चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा से मात्र 8 किलोमीटर दूर पूर्वोत्तर में है।
चीन को सख्त संदेश : असल में पिछले कई सालों में भारत ने लद्दाख सेक्टर में कई एयरफील्ड को खोलकर चीन को यह संदेश दिया था कि हम किसी से कम नहीं हैं। इतना जरूर था कि दौलत बेग ओल्डी एयरफील्ड को खोलने के बाद से ही चीन की सीमा पर हाई अलर्ट इसलिए जारी किया गया था क्योंकि चीन इस हवाई पट्टी के खुलने के बाद से ही नाराज चल रहा है और इस इलाके को दुबुर्क से मिलाने वाली सड़क के रास्ते में उसकी ताजा घुसपैठ उसकी नाराजगी को दर्शाती है।
लद्दाख सेक्टर में 646 किमी लंबी सीमा पर चीन की ओर से लगातार बढ़ रहे सैन्य दबाव के बीच भारत ने वर्ष 2008 की 31 मई को लद्दाख क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा से महज 23 किलोमीटर दूर अपनी एक और हवाई पट्टी खोली थी। इससे पहले वर्ष 2009 में मई तथा नवम्बर महीने में उसने दो अन्य हवाई पट्टियों को खोलकर चीन को चिढ़ाया जरूर था।
लद्दाख में वायुसेना ने 2013 में तीसरी हवाई पट्टी चालू की थी। इससे पहले दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) और फुकचे में वायुसेना ने अपनी हवाई पट्टी चालू की थी। डीबीओ की हवाई पट्टी काराकोरम रेंज में चीन सीमा से महज 8 किलोमीटर के भीतर है तथा फुकचे की हवाई पट्टी चुशूल के पास है। वायुसेना ने यह कदम ऐसे समय पर उठाया था जब लद्दाख में पहले चीनी हेलीकॉप्टर के अतिक्रमण की घटना सामने आई थी और इसके बाद इसी क्षेत्र के चुमर इलाके में चीन के सैनिक डेढ़ किमी भीतर तक घुस आए थे।
वायु सेना की नियोमा हवाई पट्टी लेह जिले में है और यहां से दूरदराज की चौकियों तक रसद पहुंचाई जा जा रही है। इसको खोलने के पीछे पर्यटन को भी बढ़ावा देना था। इससे पहले की हवाई पट्टियां काराकोरम दर्रे और मध्य लद्दाख के फुकचे में खोली जा चुकी हैं। वायुसेना के सूत्रों ने कहा कि नियोमा हवाई पट्टी का उपयोग पर्यटन और सैन्य दोनों ही उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है।
13300 फुट की ऊंचाई पर एयरफील्ड : दरअसल 13300 फुट की ऊंचाई पर स्थित नियोमा का एयरफील्ड सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यह स्थान मनाली ओर लेह से सड़क मार्ग से जुड़ा है और सुरक्षा तैनाती के हिसाब से भी यह केंद्र में है। दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी को 44 साल बाद वर्ष 31 मई 2008 को चालू किया गया था।
उस समय पश्चिमी कमान के तत्कालीन प्रमुख एयरमार्शल बारबोरा एएन-32 विमान से वहां उतरे थे। तीसरी हवाई पट्टी खोले जाने से ठीक पहले तत्कालीन वायु सेना प्रमुख एयरचीफ मार्शल पीवी नाईक खुद लेह के दौरे पर गए थे। उन्होंने सियाचीन के बेस कैम्प का भी दौरा किया था।