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अस्थिर पाकिस्तान से भारत की बढ़ेगी परेशानी

हमें फॉलो करें अस्थिर पाकिस्तान से भारत की बढ़ेगी परेशानी
, शनिवार, 29 जुलाई 2017 (15:05 IST)
पाकिस्तान में नवाज शरीफ की कुर्सी जाने के बाद पड़ोसी देश की अस्थिरता ने भारत को भी मुसीबत में डाल दिया है क्योंकि बिना प्रधानमंत्री का पाकिस्तान, भारत  समेत सभी देशों के लिए एक अंजाना सा भय लेकर आया है। जब तक कोई नया प्रधानमंत्री नहीं बनता है तब भारत भी उहापोह की स्थिति में बना रहेगा। वैसे भी पीएमएल में अभी तक स्थिति साफ नहीं हुई है कि अंतत: प्रधानमंत्री कौन बनेगा?
 
राजनीतिक जानकारों के गणित के लिहाज से पंजाब के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ को यह कुर्सी मिल सकती है। वहीं कहीं यह भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री कुर्सी के लिए नवाज की पत्नी कुलसुम नवाज सबसे बेहतर विकल्प हैं। उनकी पार्टी के नेताओं को डर है कि अगर शाहबाज को प्रधानमंत्री बनाया जाता है तो सेना और आईएसआई शाहबाज को रोकने के लिए कोई नई तिकड़म भिड़ा सकते हैं। या संभव है ‍कि उनके खिलाफ भी कोई ऐसा सबूत मिल जाए जिसके उनके ‍ख‍िलाफ पुराने दबे पड़े मामलों को खोला जा सके। इसलिए संभव है कि उनके खिलाफ भी कोई कानूनी विवाद रहा हो और जब वे पद पर बैठने की तैयारी करें तो सेना उनके नीचे का आधार ही कहीं न खिसका दे। 
 
पहले तो यह माना जा रहा था कि नवाज के हटते ही उनकी बेटी मरियम नवाज शरीफ देश का नेतृत्व संभाल सकती थीं। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने इस संभावना को खारिज कर दिया क्योंकि कोर्ट ने नवाज के साथ उनके दोनों बेटों हसन और हुसैन नवाज और मरियम को भी अपराधी ठहरा दिया है। इसलिए शाहबाज के उपयुक्त न पाए जाने की सूरत में कुलसुम नवाज को आगे करने का विचार किया जा सकता है। कुलसुम को आगे करने का लाभ भी यह भी होगा कि बहुत दिनों से कुर्सी की ताक में बैठे तहरीक ए इंसाफ पार्टी के प्रमुख इमरान खान को कुर्सी पर आने का मौका दिख सकता है। शायद वे भी सोच रहे होंगे कि अगर चाहें तो सेना के कमांडर और आईएसआई के कर्ता धर्ता उनकी कोशिशों को आगे बढ़ाने का काम कर सकते हैं। 
 
विदित हो कि पहले भी मुशर्रफ पर सख्ती करने के लिए आईएसआई और सेना ने उनकी पार्टी बनवाकर उन्हें प्रधानमंत्री की दौड़ में लाने की कोशिश की थी। लेकिन, जब नवाज शरीफ ने सेना-आईएसआई के ‍खिलाफ जाकर अपनी चलाने की कोशिश नहीं की तो समझा गया कि नवाज तो बिल्कुल ही निरापद जीव हैं और इसकी तुलना में कोई और ज्यादा होशियार भी साबित हो सकता था। इसी शर्त पर उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण में भारत आने की आज्ञा मिली थी लेकिन बाद में इसका अहसास हो गया कि नवाज, मोदी के साथ ज्यादा दोस्ताना बढ़ा रहे हैं तो उनको मिली छूट में कमी कर दी गई।
 
इसके अलावा, उड़ी और पठानकोट आतंकी हमलों में सरकारी रिपोर्ट को भी सेना-आईएसआई ने मानने भी खारिज कर दिया। ऐसे समझदार शरीफ के लिए यह इशारा ही काफी साफ था वे एक साथ भारत और पाक सेना प्रतिष्ठान को खुश नहीं कर सकते हैं। सेना की अगुवाई में बनी छह सदस्यों वाले जांच दल में तीन या इससे ज्यादा सेना के प्रतिनिधि थे जिन्हें अपने बारे में कुछ भी विपरीत सुनना गवारा नहीं था और उन्होंने शरीफ को दोषी ठहराने के लिए सुप्रीम कोर्ट को अपनी मर्जी बता दी। अब इस तरह की स्थितियों में साफ था कि नवाज के खिलाफ सक्रिय होने का समय आ गया था। पाकिस्तान की स्थिति को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि वहां कितना लोकतंत्र रहेगा और और यह भी कब रहेगा क्योंकि सेना को कश्मीर में घुसपैठ करने की खुली छुट ही पाकिस्तान का लोकतंत्र है। इसी तरह इस बात की आशंका जाहिर की जा रही है कि पाक में सेना, आईएसआई को मिली छूट का भरपूर इस्तेमाल करना चाहेगी और सेना प्रमुख कमर बाजवा को अपनी स्थिति को मजबूत करने का मौका मिलेगा।
 
सेना के साथ-साथ उग्रवादी संगठनों को भी छूट मिल सकती है कि वे भारत के खिलाफ जितनी आक्रामक कार्रवाइयां कर सकते हों, करें और इसे बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने की सी हालत समझी जा सकती है, इसलिए आतंकी कार्रवाइयों पर सख्ती करना भी अच्छा नहीं माना जाएगा। सेना और आतंकवादी संगठनों को छूट मिलने से भारत में पाक प्रायोजित अराजकता बढ़ने के आसार हैं। भारत सरकार भी जहां इन तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने में आधे अधूरे मन से काम किया जाता है और सरकारी एजेंसियों की रिपोर्ट मिलने के बाद भी सरकार सैयद अली शाह जिलानी और उनके भक्तों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने से बचना चाहती है। इसी का नतीजा है कि महबूबा मुफ्‍ती ने 'स्वतंत्रता' की मांग को शर्त के साथ आगे बढ़ा दिया है और अन्य कश्मीरी नेताओं की तरह से ब्लैकमेल करने की छूट ली और केन्द्र सरकार को धमकाना शुरू किया है।
 
इसलिए समझा जा सकता है कि यह स्थि‍ति सरकार के पास भी दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव दर्शाती है, जिसका नतीजा यह हुआ है कि 'कभी हां, कभी ना' का घालमेल की स्थिति से जहां केन्द्र में सत्तारूढ़ दल और इसके सहयोगियों के लिए खराब समय की शुरुआत भी हो सकती है। लेकिन भाजपा, जम्मू में अपनी जीत को यूं ही गंवाना नहीं चाहती है और उसे यह भी लग सकता है कि भविष्य में उसे भी उम्मीद है कि यह घाटी में अपने माफिक स्थतियों के होने पर नेकां और अन्य राजनीतिक दलों में सेंध लगाने का काम कर सकती है और फिर समूचे राज्य पर उसका नियंत्रण बन सकता है। इस तरह सरकार और उग्रवादी अपनी-अपनी सोच को लेकर हसीन सपने देखने में मस्त हैं। 

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