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सैनिकों के लिए सीजफायर के मायने

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सुरेश डुग्गर

लाम सेक्टर (एलओसी)। इस सेक्टर में तैनात सैनिकों के लिए कुछ भी नहीं बदला है। सब कुछ वहीं पर है। मोर्टार, तोपखाने, प्रतिदिन एलओसी के क्षेत्रों में गश्त करना, तलाशी अभियान छेड़ना, सीमा चौकियों और बंकरों की देखभाल करना। रूटीन में कहीं कोई बदलाव नहीं आया है। अगर बदला है तो वह वातावरण है जिसमें अब गोलियों के स्वर नहीं होते और न ही बारूद की गंध।
ऐसा मात्र एक सेक्टर में नहीं है। पाकिस्तान से सटी 1202 किमी लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा, एलओसी तथा सियाचिन हिमखंड में सिर्फ बारूदी गंध से भरा हुआ वातावरण ही बदला है। कदमों की चापें वही हैं। झाड़ियों में अवांछित तत्वों की तलाश में घात लगाकर हमला करने के समय होने वाली आवाजें वही हैं। बंदूकों के ट्रिगरों पर से अंगुलियां भी नहीं हटी हैं। ‘दुश्मन का कोई भरोसा नहीं,’लाम पोस्ट पर तैनात सूबेदार का कहना था।
 
हालांकि जवानों को वातावरण में खामोशी काटने को दौड़ रही थी। कई सैनिक तो ऐसे थे इस पोस्ट पर जिन्होंने तैनाती के बाद पहली बार इतनी खामोशी देखी थी, मगर रूटीन में कोई बदलाव नहीं आने के कारण इन सैनिकों के लिए सीजफायर होने के बावजूद ड्यूटी के मायने नहीं बदले थे। इतना जरूर था कि रूटीन ड्यूटी में अंतर इतना जरूर आया था कि दुश्मन की गोली का जवाब देने की ओर ध्यान देने की बजाय अब उन्हें अपनी आंख और कान को अधिक खुला रखना पड़ रहा है अर्थात जिम्मेदारी बढ़ी है।
 
13 सालों से सीजफायर जारी है तथा सैनिकों को स्पष्ट निर्देश हैं कि सीजफायर हो या न हो, दुश्मन का फायर आए या न आए, चौकसी व सतर्कता में कोई कमी सहन नहीं की जाएगी। ‘दुश्मन सिर्फ पाकिस्तानी सैनिक ही नहीं हैं। उनके द्वारा भिजवाए जाने वाले आतंकवादी भी हैं। वे कब बखेड़ा खड़ा कर देंगे, कोई नहीं जानता,’पोस्ट कमांडर का कहना था। वह इतना जरूर कहता कि आतंकवादियों के लिए कोई सीजफायर नहीं है। जहां दिखें गोली मार दो।
 
वैसे सीजफायर ने सैनिकों को मौका दिया था कि वे अपने बंकरों को रिपेयर कर लें। संघर्षविराम से मिले समय और अवसर का लाभ वे अपनी सीमा चौकियों को और मजबूत करने के लिए भी उठाना चाहते थे, परंतु सतर्कता तथा चौकसी में कमी करने की कीमत पर नहीं। यही कारण था कि गश्त और संतरी की ड्यूटी पर तैनात जवानों की संख्या में कोई कटौती नहीं हुई थी। जो बचे हुए जवान होते थे जिस पोस्ट पर वे ही इन कार्यों को निबटाते थे और रात में देर तक यह कार्य चलता था।
 
वैसे सीजफायर के कारण सैनिकों की संख्या में कोई कटौती भी नहीं हुई थी। ऐसा भी नहीं कि सीजफायर के कारण परिस्थितियों को हल्के तौर पर लेते हुए अधिक संख्या में सैनिकों को छुट्टियां बांटी जा रही हों। सब कुछ पहले जैसा ही था। अंतर अगर कुछ था तो वह सिर्फ गोलियों और गोलों के स्वर का था।
 
इतना जरूर था कि सैनिकों के लिए सीजफायर का मौसम कुछ राहत जरूर लेकर आया था। भयानक सर्दी का मौसम अपने पांव पसार रहा था और अगर ऐसे में उन्हें पाकिस्तानी गोलाबारी का भी जवाब देना पड़े तो कठिनाई थोड़ी बढ़ जाती थी। ऐसा भी नहीं है कि वे पहले सर्दियों में जवाबी कार्रवाई नहीं करते रहे हैं बल्कि कभी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
 
असल में एलओसी पर सारा साल एक ही मौसम, गोलाबारी का मौसम रहा करता था। इस कारण सर्दी और गर्मी का आभास ही सैनिकों को नहीं होता था। गर्मी में भी और सर्दी में भी तोपों की गर्मी रहती थी, लेकिन इस बार सैनिक अभी से सर्दी इसलिए अधिक महसूस करने लगे हैं, क्योंकि तोपखानों की गर्मी नहीं है। मगर ऐसा भी नहीं था कि तोपखाने गर्मी उगलने के लिए तैयार न हों बल्कि किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए वे तैयार थे। दूसरे शब्दों में सीजफायर ने उनके कार्य को और बढ़ा दिया है।

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