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मनोवैज्ञानिक युद्ध भी लड़ते हैं भारतीय सैनिक

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सुरेश डुग्गर

विश्व के जीवित जंग के मैदानों के रूप में प्रसिद्ध राजौरी तथा पुंछ के जिलों में गोलियां इतनी प्रभावशाली नहीं होतीं जितना कि मानसिक स्तर पर लड़े जाना वाला युद्ध, क्योंकि अगर जवान मानसिक स्तर पर अपने आप पर तथा दुश्मन पर विजय हासिल कर लेता है तो वह आप तो सुरक्षित रहता ही है, अपने साथियों को भी इस आग से बचाए रखता है। इसी मानसिक युद्ध, जिसे मनोवैज्ञानिक युद्ध भी कहा जा सकता है, के कारण ही आज भारतीय सैनिक पाकिस्तानी सेना पर विजय हासिल किए हुए हैं इस सच्चाई के बावजूद कि पाक सेना ने इन दोनों सेक्टरों में अधिकतर ऊंचाई वाले क्षेत्रों पर कब्जा कर रखा है। 
गोलियों की बरसात और पाक सैनिकों द्वारा समय-समय पर परिस्थितियों को भयानक बनाने की कोशिशों के बावजूद भारतीय सैनिक अपना मनोबल नहीं खोते हैं और यह सब इसलिए होता है, क्योंकि वे मनोवैज्ञानिक युद्ध में सफलता के झंडे गाढ़ चुके होते हैं। यही कारण है कि नियंत्रण रेखा पर कई स्थानों पर पाकिस्तानी तथा भारतीय सीमा चौकियों में अंतर 100 फुट से भी कम है लेकिन क्या मजाल पाक सैनिक की कि अपने सामने वाले पर गोलियां दाग सकें।
 
बालाकोट सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर और पाक सैनिकों की सीमा चौकी से मात्र 90 फुट की दूरी पर स्थित एक भारतीय अग्रिम चौकी पर जब इस संवाददाता को जाने का अवसर मिला तो वहां तैनात चौकी कमांडर का कहना था कि गोलियों से अधिक हमको मनोवैज्ञानिक स्तर पर युद्ध को जीतना होता है, क्योंकि हमने सामने वालों (पाक सैनिकों) के दिलों में यह भय पैदा कर दिया है कि अगर वे हम पर गोलियां दागेंगे तो इस ओर से भी जबरदस्त उत्तर मिलेगा। यही कारण है कि अक्सर आमने-सामने स्थित होने पर सैनिक एक-दूसरे पर गोलियां नहीं बरसाते हैं लेकिन कभी-कभार परिस्थितियां ऐसी हो जाती हैं कि वे बंदूकों का प्रयोग कर ही लेते हैं। 

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