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नजरें दुश्मन की मोर्चाबंदी पर, अंगुलियां ट्रिगर पर

हमें फॉलो करें नजरें दुश्मन की मोर्चाबंदी पर, अंगुलियां ट्रिगर पर

सुरेश डुग्गर

, शनिवार, 24 सितम्बर 2016 (12:22 IST)
भारत-पाक सीमा से (जम्मू फ्रंटियर)। 'पूरी नजर रखी जाए और पल-पल की खबर दी जाए। दुश्मन जैसा हथियार इस्तेमाल करे, वैसा ही जवाब दिया जाए। ओवर एंड आउट।' सतर्कता बरतने की चेतावनी देने के बाद वायरलेस सेट से आवाज आनी बंद हो गई थी। 
 
सीमा सुरक्षा बल के जवानों को चौकियों पर तैनात फौजी अधिकारियों ने वे कुछ निर्देश देने आरंभ कर दिए थे, जो होते तो जंग की स्थिति में महत्वपूर्ण लेकिन उन्हें शांति में ही इसलिए देने पड़े, क्योंकि युद्ध की रणभेरी तो नहीं बजी थी, परंतु युद्ध की परिस्थिति इस सीमा पर अवश्य पैदा हो गई थी।
 
रेत के बोरे से बने बंकरों, गहरी खाइयों में मोर्चा संभाले और कहीं-कहीं अस्थायी चौकियों में तैनात जवानों की नजरें सीधी थीं दुश्मन की मोर्चाबंदी पर और अंगुलियां ट्रिगरों पर इस प्रकार टिकी हुई हैं जिन्हें बस पलभर के इशारा देना ही काफी कहा जा सकता है। यही नहीं, मोर्टार फिट किए बैठे जवानों के लिए भी बस इशारे का इंतजार था।
 
सीमा पर शांति भंग होने लगी है। युद्ध के नजदीक की स्थिति है। यही कारण है कि नियमित सेना के जवान सज-धजकर तैयार खड़े होने लगे हैं दुश्मन से मोर्चा लेने के लिए। सैनिक साजो-सामान फिलहाल रक्षा खाई से पीछे है। भारत ऐसा इसलिए कर रहा है, क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय कानूनों की इज्जत करना चाहता है। लेकिन कहीं-कहीं सीमा चौकियों पर नियमित सेना की भी तैनाती आरंभ हो चुकी है। 
 
सीमापार की खबरें कहती हैं कि पाक रेंजर अब आंतरिक सुरक्षा की ड्यूटी में जुटने लगे हैं और उनका स्थान पाक सेना के नियमित जवान लेने लगे हैं। तभी तो हथियारों के इस्तेमाल में अंतर आया है, एक सेनाधिकारी कहता है। परंतु उस पार ऐसा नहीं है। कहीं-कहीं छोटी तोपें तो नंगी आंखों से देखी जा सकती हैं तो टैंक और बड़े तोपखाने फिलहाल दूरबीन के सहारे ही नजर आ रहे थे।
 
ये सब एलओसी के नहीं, बल्कि इंटरनेशनल बॉर्डर के दृश्य हैं। फिलहाल यह विवाद का विषय है कि पाकिस्तान इसे वर्किंग बाउंड्री मानता है तो भारत अंतरराष्ट्रीय सीमा। नतीजतन एक ओर अंतरराष्ट्रीय सीमा का सम्मान हो रहा है तो दूसरी ओर उल्लंघन। ऐसे में घरों को त्यागने के लिए तैयार बैठे सीमावासियों का सवाल था कि 'आखिर कब तक हम नियम-कानूनों में बंधे रहेंगे। कब इस समस्या को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे।'
 
तैयारी दोनों ओर से बराबर की है। हथियारों की सफाई और सेना के वाहनों की गड़गड़ाहट दोनों ओर से है। लेकिन सैनिक इसे घबराने वाली बात नहीं बताते, क्योंकि अगर सीमा के पार आक्रामक तैयारियां हैं तो इस ओर रक्षात्मक। हमने कभी भी पहल नहीं की है इसलिए हम रक्षात्मक तैयारियों में ही जुटे हैं। सैनिक अधिकारियों के इस कथन पर नागरिकों को गुस्सा भी है। वे चाहते हैं कि 'अगर शत्रु शत्रुतापूर्ण व्यवहार का त्याग नहीं करता तो हम क्यों लचीलापन दिखाते हैं?'
 
परिस्थितियों का आलम यह है कि युद्ध का साया मंडरा रहा है सीमा पर। युद्ध होगा या नहीं? इसके प्रति कोई भविष्यवाणी करने में अपने आपको समर्थ तो नहीं पाता, परंतु इतना अवश्य है कि मिनी युद्धों की भविष्यवाणी अवश्य की जा रही है। मिनी युद्धों का रूप छोटी-मोटी झड़पें भी हो सकता है और कारगिल जैसा हमला भी।
 
यही कारण है कि अधिकतम सतर्कता की स्थिति में सेना के जवान अपनी मोर्चाबंदी में जरा-सी भी ढील नहीं देना चाहते। वे जानते हैं कि दुश्मन के इरादे अच्छे नहीं हैं। वे उसकी दोस्ती और दुश्मनी के स्वाद को कई बार चख चुके हैं। इस बार वे पाकिस्तान का नाम दुनिया के नक्शे से मिटा देने के इच्छुक हैं। उन्हें भी इंतजार है उस घड़ी का, जब उन्हें ऐसा करने के लिए बस हरी झंडी दिखलाई जाएगी।

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