Inside story : राजस्थान में सचिन पायलट क्यों नहीं बन पाए ‘सिंधिया’?
कार्रवाई के बाद नरम पड़े सचिन पायलट के सुर !
राजस्थान की सियासत में अब सबकी निगाहें सचिन पायलट पर लग गई है। बगावती तेवर दिखाने के बाद जिस तरह सचिन पायलट को मंगलवार को गहलोत मंत्रिमंडल और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया गया, उसके बाद अब सचिन पायलट क्या करेंगे सियासी गलियारों में यह चर्चा का विषय बना हुआ है।
राजस्थान में सबसे अधिक लंबे समय तक ( साढ़े छह साल तक) कांग्रेस की कमान संभालने वाले और 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत की पटकथा लिखने वाले सचिन पायलट, सियासत के जादूगर कहे जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पहली नजर में सियासी चौसर पर मात खा गए हैं।
राजस्थान में पिछले एक सप्ताह से जारी सियासी उठापटक के बाद मंगलवार को कांग्रेस हाईकमान की हरी झंड़ी के बाद सचिन पायलट पर कड़ी कार्रवाई की गई थी। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और सियासी संकट के बीच पार्टी के पर्यवेक्षक के तौर पर पहुंचे रणदीप सुरजेवाला और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पायलट पर सीधे भाजपा के साथ मिलकर कांग्रेस सरकार को गिराने के षडयंत्र में शामिल होने का आरोप लगाया था।
कार्रवाई के बाद नरम पड़े पायलट - मंत्रिमंडल और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से बर्खास्त किए जाने के बाद सचिन पायलट ने मीडिया को दिए अपने इंटरव्यू में पार्टी के अंदर अपनी उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री गहलोत ने अफसरों को उनके निर्देश नहीं मानने के आदेश दिए थे। पायलट ने कहा कि मेरे खिलाफ केस दर्ज कराकर मेरे स्वाभिमान को चोट पहुंचाई गई। सचिन पायलट ने भाजपा में शामिल होने की अटकलों के खारिज कर दिया है, उन्होंने कहा कि उनको भाजपा के साथ दिखाना पार्टी आलाकमान की नजर में उनकी छवि खराब करने की कोशिश है।
राजस्थान में पिछले कई दिनों से जारी सियासी ड्रामा कमोबेश ठीक उसकी तरह का हैं जिस तरह मार्च में मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार की विदाई के समय हुआ था। सचिन पायलट की तरह ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ठीक इस तरह के आरोप लगाते हुए अपने समर्थक 22 विधायकों के साथ पार्टी को अलविदा कह दिया था, नतीजन मध्यप्रदेश में 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार गिर गई थी, लेकिन सिंधिया की तरह पार्टी पर अपनी उपेक्षा का आरोप लगाने वाले सचिन पायलट की बगावत के बाद भी अब तक गहलोत सरकार सुरक्षित दिखाई दे रही हैं और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूरी तरह अपनी सरकार के बहुमत में होने का दावा कर रहे हैं।
ऐसे में सवाल यह उठ रहा हैं कि क्या सचिन पायलट सियासी दांवपेंच की लड़ाई में सिंधिया की तरह सफल नहीं हो पाए। मंगलवार तक सचिन पायलट को खुला ऑफर देने वाली और गहलोत सरकार के फ्लोर टेस्ट की मांग करने वाली भाजपा के भी सुर बदले हुए दिखाई दे रहे है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने साफ कर दिया हैं कि वह अविश्वास प्रस्ताव लेकर नहीं लेकर आएंगे।
विधानसभा सदस्यता खत्म करने की तैयारी - भले ही सचिन पायलट के रूख कुछ नरम पड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं, लेकिन कांग्रेस अब सचिन समेत बागी विधायकों की सदस्यता खत्म करने की ओर आगे बढ़ती दिख रही है। सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों की विधानसभा सदस्यता खत्म करने की प्रक्रिया भी शुरु हो गई है। विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने कांग्रेस की शिकायत पर पायलट समेत 19 अंसतुष्ट विधायकों को नोटिस जारी कर पूछा है कि पार्टी विरोधी गतिविधियों और कांग्रेस विधायक दल की बैठक में नहीं शामिल होने पर क्यों न उनको अयोग्य ठहराया जाना चाहिए। ।
सिंधिया की तरह पायलट क्यों नहीं हुए सफल - ऐसे में सवाल ये उठ रहा हैं क्या सचिन पायलट मुख्यमंत्री गहलोत के सामने चूक गए। कांग्रेस की राजनीति को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और राजनीति विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं कि इस पूरे मसले में दो बातें प्रमुख हैं, जिसमें पहला अभी राजस्थान का मामला अभी पूरी तरह खुला नहीं है और अभी परत दर परत खुल रहा है।
'वेबदुनिया' से बातचीत में रशीद किदवई आगे कहते हैं कि सिंधिया का व्यक्तित्व और सिंधिया की दादी राजमाता सिंधिया भाजपा की संस्थापक सदस्य हैं और सिंधिया परिवार का संघ परिवार में बहुत मान सम्मान हैं और उसकी एक ऐतिहासिक पृष्ठिभूमि है, और सिंधिया की दोनों बुआएं भाजपा में बहुत सक्रिय रही है, जिसमें वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की मुख्यमंत्री रही हैं और दूसरी बुआ यशोधरा राजे सिंधिया मध्यप्रदेश में वर्तमान में कैबिनेट मंत्री है, ऐसे में सिंधिया का भाजपा में आना आसान था और भाजपा में शामिल होने से पहले सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान के बीच एक तरह से समझौता हुआ था।
रशीद किदवई आगे कहते हैं कि ऐसे में राजस्थान में वसुंधरा और सचिन पायलट में कोई समझौता हुआ हो ऐसी कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में अगर अब सचिन पायलट का राजनीतिक जीवन कांग्रेस से बाहर हैं तो उनको एक बड़ा राजनीतिक फैसला लेना होगा। ऐसे में देखना होगा कि सचिन पायलट क्या निर्णय लेते है क्या वह भाजपा में शामिल होते है या उसके सहयोगी या एक तीसरे मोर्च के रूप में राजस्थान की सियासत में आगे बढ़ते है।