उत्तराखंड का ऐतिहासिक और प्राचीन शहर जोशीमठ आज अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहा है। पौराणिक शहर जोशीमठ धीरे-धीरे जमीन में धंस रहा है। जोशीमठ की आपदा कोई अचानक आई आपदा नहीं है, प्रकृति के साथ-साथ खुद सरकार के नुमाइंदे भी कई दशक से जोशीमठ में आने वाले बड़े खतरे के प्रति सचेत कर रहे थे।
वेबदुनिया ने उत्तराखंड़ के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ जोशीमठ आपदा और उत्तराखंड की वर्तमान हालात को लेकर लेकर एक विस्तृत बातचीत की।
जोशीमठ आपदा हमारा फेल्यिर- वेबदुनिया से बातचीत में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कहते हैं कि जोशीमठ में प्रकृति लगातार चेतावनी दे रही थी लेकिन यह हम थे कि इंतजार कर रहे थे कोई बड़ा डिजास्टर हो। हरीश रावत साफ कहते हैं कि जोशीमठ में आज की जो स्थिति वह कुछ तो क्लेटिव फ्लेयिर है, किसी न किसी समय थोड़ी गलतियां सभी से हुई है। पिछले 6-7 सालों से भाजपा सरकार कोई कदम नहीं उठाए है बल्कि हमने जो कदम उठाए उसको भी पलट दिया गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत 'वेबदुनिया' से बातचीत मे कहते हैं कि 2014 में मुख्यमंत्री रहते हुए जब मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट मेरे संज्ञान म आई है तब उस रिपोर्ट के आधार पर जोशीमठ के लिए चार अहम निर्देश जारी किए। जिसमें मैंने धौलीगंगा और अलखनंदा के संगम पर कोस्टर बनाने का फैसला किया जो शुरु भी हुआ लेकिन बाद में बंद हो गया। वहीं दूसरे फैसलों में हमने वॉटर डैनेज सिस्टम को पुख्ता करने के साथ प्लास्टिक के वेस्ट डिस्पोजल को निस्तारण और लाइटर मटैरियल का उपयोग किया जाए। लेकिन उनकी सरकार के जाने के बाद भाजपा सरकार ने इन सभी को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
जोशीमठ के विलेन पर सब खमोश- वेबदुनिया से बातचीत में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत बताते हैं कि चार धाम यात्रा सुधार मार्ग में हमारी सरकार में मिनिमम कटिंग मैक्सिमम विड्थ (चौड़ाई) का यह सिद्धांत बनाया गया था और बाद में उस प्रोजेक्ट को ऑल वेदर रोड में बदलकर पहाड़ों पर हैवी मशीनों से कटिंग कर रहे है, अगर आप हैवी मशीन से कटिंग करेंगे और पहाड़ों को काटेंगे तो परिणाम चिंताजनक ही होंगे और चिंताजनक परिणाम आज दिखाई दे रहे हैं।
आज जोशीमठ के नीचे सरकार फोरलेन हाईवे निकाल रही हैं जिसका वहां के लोकल लोग प्रोटेस्ट कर रहे हैं लेकिन उनकी सुनी नहीं जा रही है। सब पैसे का खेल चल रहा है इसको बनाने वाले ठेकेदार पावर सेंटर के नजदीक। एनटीपीसी की टनल जो जोशीमठ की विलेन है लेकिन सत्ता के लोग उसका नाम लेने में डरते हैं, इस हालात में क्या कहा जा सकता है।
राष्ट्रीय आपदा हो घोषित- वेबदुनिया से बातचीत में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कहते हैं कि जोशीमठ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करना चाहिए और हम कांग्रेस लीडरशिप के आभारी हैं कि उन्होंने इसको राष्ट्रीय आपदा के तौर पर लेने की बात कही है। राष्ट्रीय आपदा घोषित होने से केंद्रीय संसाधन मिले सकेंगे, जिससे प्रभावित लोगों का पुर्नवास हो सकेगा।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कहते हैं कि हमको जोशीमठ से सटे इलाके में एक नया जोशीमठ बसाना पड़ेगा। वर्तमान जोशीमठ अद्भुत और देवस्थली होने के साथ पौराणिक और संस्कृतिक स्थल है। जोशीमठ वह नगर है जहां भगवान विष्णु शयन करते हैं और जो सभ्यता के उद्घोषक शंकराचार्य की तपोस्थली है। इसलिए जोशीमठ का फिर सदृढ़ीकरण करना होगा और जोशीमठ को पुराने स्वरूप में लाना होगा।
नहीं चेते तो उत्तराखंड का हर शहर बनेगा जोशीमठ?- उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कहते हैं कि उत्तराखंड में आज बहुत सारे शहर खतरे में हैं, जब तक सरकार बहुत सारे मोर्चे पर एक साथक काम नहीं शुरु करेगी तब तक हर शहर को खतरा है। हम आपदा के इतने करीब खड़े है कि हमारा हर दिन आपदा वाला है। उत्तराखंड में जिस तरह क्लाइमेट चेंज दिखाई दे रहा है, यह प्रकृति की चेतावनी है और हमें सचेत कर रही है लेकिन हम इसके लिए तैयार नहीं है।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कहते हैं कि उत्तराखंड में आज बहुत सारे शहर खतरे में हैं, जब तक सरकार बहुत सारे मोर्चे पर एक साथक काम नहीं शुरु करेगी तब तक हर शहर को खतरा है। उदाहरण के तौर पर देहरादून में सारे नदी और नालों पर आज इमारतें बन रही हैं और 1 दिन रिस्पना और बिंदाल का डिजास्टर भी सुर्खियों में होगा। 6 महीने पहले जो बादल फटा अगर बादल इस छोर की जगह दूसरी छोर पर फटा होता तो देहरादून में बहुत बड़ी ट्रेजडी हो जाती। आज चाहे सत्ता के लोग तुष्टीकरण कर रही है या पुष्टिकरण कर रही हो लेकिन देहरादून के दोनों फेफड़े जिनसे देहरादून सांस लेता था वह बिल्कुल चोक कर दी गई हैं।
सरकार ने नहीं सीखा सबक-पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कहते हैं कि रेनी तपोवन और केदारनाथ त्रासदी से हमने कुछ नहीं सीखा। आज जो कुछ हम बद्रीनाथ में भी कर रहे हैं, उसको भी हम बिना सोचे समझे कर रहे हैं। आज क्लाइमेट चेंज में जब पहाड़ों के अस्तित्व के लिए एक बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है तब बिना पहाड़ों को समझे हुए हम कदम उठा रहे हैं। अगर इस हालात में कुछ कहो तो सरकार हमको विकास विरोधी ठहरा देती है। उत्तराखंड जो पहले सस्टेनेबल डेवलपमेंट के मॉडल पर काम करते हुए दिख रहा था वहां सब चीज अचानक बदल गई हैं और उत्तराखंड लगातार झटके पे झटका खा रहा है।