नई दिल्ली। प्रदूषण और मध्याह्न भोजन में स्वच्छता जैसे लोक महत्व के मामलों में कई राज्य सरकारों के उदासीन रवैये से खिन्न उच्चतम न्यायालय की पीठ ने सोमवार को अप्रसन्नता के साथ सवाल किया, 'यह उच्चतम न्यायालय है या मजाक अदालत।'
प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने नाराजगी भरे लहजे में कहा, 'क्या किसी किस्म की पंचायत यहां चल रही है कि राज्य गंभीर ही नहीं हैं? आप इस तरह से उच्चतम न्यायालय के साथ मजाक क्यों कर रहे हैं? आप इसका महत्व तभी समझेंगे जब हम आपके मुख्य सचिवों को तलब करेंगे।'
पीठ ने सुनवाई के लिए सूचीबद्ध पहली दो जनहित याचिकाओं के अवलोकन के बाद कहा, 'यह महत्वपूर्ण काम है। क्या यहां पर हम किसी प्रकार का खेल खेलते हैं? यदि आप (राज्यों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील) अपने जवाबी हलफनामे दाखिल नहीं करना चाहते हैं तो यह कहिए। हम आपके बयान रिकार्ड कर लेंगे।'
इन याचिकाओं पर नोटिस तामील होने संबंधी रिपोर्ट के अवलोकन के बाद पीठ ने कहा कि यदि वे और समय चाहते हैं तो उन्हें खड़े होकर इसका अनुरोध करना चाहिए।
पीठ ने 2012 में औद्योगिक प्रदूषण को लेकर दायर गुजरात स्थित गैर सरकारी संगठन पर्यावरण सुरक्षा की याचिका पहले सुनवाई के लिए ली और फाइल का अवलोकन करके वह काफी खिन्न हो गई क्योंकि अनेक अवसर दिए जाने के बावजूद कई राज्यों ने अपना जवाब दाखिल नहीं किया था।
इसके बाद न्यायालय ने तमिलनाडु, हरियाणा, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के नाम पुकारे और उनके वकीलों से पूछा कि अभी तक जवाबी हलफनामे क्यों नहीं दाखिल हुये।
न्यायालय ने इस मामले में उसके समक्ष पहली बार पेश होने वाले उन राज्यों को चार सप्ताह का वक्त दिया और इन राज्यों के संबंधित रिकार्ड के साथ पर्यावरण सचिवों को तलब किया जिनमें नोटिस तामील हो चुकी थी परंतु उन्होंने जवाब दाखिल नहीं किया था। न्यायालय ने इस मामले को अंतिम रूप से निबटारे के लिए चार सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया। (भाषा)