बेंंगलुरु। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष डॉ. के. शिवन ने शनिवार को कहा कि लैंडर का नियंत्रण केंद्र से संपर्क टूट जाने के बावजूद चंद्रयान मिशन लगभग शत-प्रतिशत सफल रहा है और गगनयान समेत भविष्य का कोई भी मिशन आज की घटना के कारण प्रभावित नहीं होगा।
डीडी न्यूज को दिए एक विशेष साक्षात्कार में डॉ. शिवन ने कहा कि लैंडर से संपर्क टूटना न तो मिशन की विफलता है और न ही इसरो के लिए कोई झटका। लैंडर विक्रम से संपर्क दुबारा स्थापित करने के प्रयास लगातार जारी रहेंगे और संपर्क होते ही रोवर को सक्रिय कर दिया जायेगा।
इसरो प्रमुख ने बताया कि मिशन में दो तरह के लक्ष्य थे - एक वैज्ञानिक लक्ष्य दो ऑर्बिटर द्वारा पूरे किए जाने हैं और दूसरा प्रौद्योगिकी प्रदर्शन जिनमें लैंडर की चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग तथा रोवर की सतह पर चहलकदमी शामिल है। उन्होंने कहा, 'वैज्ञानिक प्रयोग पूरी तरह सफल रहे हैं जबकि प्रौद्योगिकी प्रदर्शन में हम 95 प्रतिशत तक सफल हुए। इस प्रकार मैं समझता हूं कि चंद्रयान मिशन लगभग शत-प्रतिशत सफल रहा है।”
डॉ. शिवन ने कहा, 'विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग में 30 किलोमीटर की ऊंचाई से सतह तक उतरने में चार चरण थे। इनमें तीन चरण सफलता पूर्वक पूरे किए गए। हम सिर्फ आखिरी चरण पूरा नहीं कर सके। तब तक लैंडर से हमारा संपर्क टूट गया।'
उन्होंने कहा कि ऑर्बिटर बिल्कुल अच्छी तरह काम कर रहा है और इस मामले में हमने जो लक्ष्य तय किए थे, तकरीबन सभी हासिल कर लिए हैं। वैसे तो चंद्रमा की कक्षा में ऑर्बिटर एक साल तक चक्कर लगाना तय किया गया है, लेकिन उसमें साढ़े सात साल के लिए ईंधन है। इस साढ़े सात साल में वह पूरे चंद्रमा की मैपिंग कर सकेगा।
उन्होंने बताया कि ऑर्बिटर पर कुछ बेहद विशिष्ट उपकरण लगे हैं। इनमें एक है डुएल बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार (सार)। यह पहली बार है कि चंद्रमा पर भेजे गए किसी ऑर्बिटर में एल बैंड सार लगाया गया है। चंद्रयान-1 समेत अब तक के सभी मिशन में एस बैंड सार का इस्तेमाल किया गया था। चंद्रयान-2 में दोनों हैं। एल बैंड सार की खासियत यह है कि यह चंद्रमा की सतह से 10 मीटर नीचे तक पानी और बर्फ का पता लगाने में सक्षम है। (वार्ता)