श्रीनगर। जम्मू कश्मीर में इस साल यानी 2016 में 163 आतंकी मारे गए। पिछले साल यानी 2015 यह संख्या 113 थी। करीब 13 नागरिक भी मारे गए और 84 सुरक्षाकर्मी भी। राज्य में 27 सालों से फैले आतंकवाद में मरने वाले नागरिकों और सुरक्षाबलों का आंकड़ा इस साल बढ़ा है। पिछले साल मनाई गई खुशी अब काफूर है क्योंकि मरने वाले सुरक्षाकर्मियों की संख्या इस बार पिछले साल से दोगुनी है। सुरक्षाबल और सुरक्षा एजेंसियां इससे नाखुश हैं क्योंकि आतंकियों की मौतों के बावजूद आतंकी बनने का आकर्षण अभी भी बरकरार है। यह इसी से स्पष्ट होता है कि इस साल 200 से अधिक युवा आतंकवाद में शामिल हो गए और खतरनाक आतंकी गुट आईएस के साथ कितने जुड़े इसके प्रति अभी सुरक्षा एजेंसियां अंधेरे में टटोल रही हैं।
राज्य में वर्ष 2016 आतंकियों पर ही नहीं बल्कि सुरक्षाकर्मियों पर भी भारी रहा। सीमा व एलओसी पर घुसपैठ कर रहे आतंकियों पर सटीक प्रहारों से देश के दुश्मनों को उनके अंजाम तक पहुंचाया गया। वहीं, बेहतर सुरक्षा ग्रिड की बदौलत सिर्फ नागरिकों की मौतों में भी कमी आई। इस दौरान इस्लामिक स्टेट के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए सुरक्षा ग्रिड को और पुख्ता किया गया।
राज्य में आतंकवाद की पकड़ कमजोर होने के चलते सेना व सीमा सुरक्षा बल ने अपनी शक्ति घुसपैठ कर रहे आतंकियों पर केंद्रित की, जिसकी बदौलत सिर्फ एलओसी पर ही घुसपैठ की 92 कोशिशों को नाकाम बनाया गया। जमात-उल-दावा के हाफिज सईद ने घुसपैठ करवाने के लिए खुद लांचिंग पैडों पर डेरा डाला, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। चालू वर्ष में सेना व सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए 163 आतंकियों में कई आतंकी कमांडर भी शामिल हैं।
इस साल अब तक आतंकी घटनाओं में मारे गए कुल 260 लोगों में से 163 आतंकी, 84 सुरक्षाबल व 13 नागरिक शामिल थे। पिछले वर्ष मारे गए 174 लोगों में 113 आतंकी, 41 सुरक्षाकर्मी व 20 नागरिक शामिल थे। कुल मिलाकर सुरक्षाबलों व लोगों की मौतें कम हुईं और आतंकवाद को आघात लगा। आतंकियों के मंसूबे नाकाम बनाने के लिए कड़ी सुरक्षा की बदौलत इस वर्ष राज्य में 40 आईईडी तलाश कर विस्फोट करने की साजिशें नाकाम हुई। वहीं, 350 हथियार भी बरामद हुए।
दावा यही है कि आतंकवाद में कमी के चलते अलगाववादियों व सीमा पार बैठे उनके आकाओं के हौसले परास्त होने लगे हैं। पाकिस्तान ने साल के दूसरे पखवाड़े में आतंकियों की घुसपैठ करवाने की पूरी कोशिश की और सेना व सुरक्षाबलों ने इसका पूरा फायदा उठाते हुए अधिकतर आतंकियों को मार गिराया। पूरे साल में मारे गए 163 आतंकियों में से अंतिम छह महीनों में 72 मारे गए। वहीं, अंदर घुसने में कामयाब रहे 37 आतंकियों में से नावेद सहित दो आतंकियों को जिंदा पकड़ बड़ी उपलब्धि हासिल की गई।
पर इन कामयाबियों के लेखा-जोखा के बावजूद सुरक्षाधिकारियों के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। यह लकीरें आतंकी बनने का आकर्षण यथावत बरकरार रहने के कारण है। यही नहीं अब तो कश्मीरी युवा दुर्दांत आतंकी गुट आईएसआईएस की ओर भी आकर्षित हो रहे हैं जो सबसे अधिक परेशानी का कारण इसलिए भी है क्योंकि आईएउस के हत्या और आतंक फैलाने के तौर तरीकों से सारी दुनिया दहल रही है।