भाजपा सरकार ने जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लगते ही कानून-व्यवस्था को संभालने के लिए 2 ऐसे अफसरों पर भरोसा जताते हुए उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है जिनका पिछला कार्यकाल बेहद प्रभावी रहा है।
इसमें से बीवीआर सुब्रमण्यम पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के खास अधिकारियों में शुमार थे। उन्हें यूपीए-1 में मनमोहन ने निजी सविच नियुक्त किया था। मनमोहनसिंह ने जब यूपीए-2 में दूसरी बार कमान संभाली तब भी उन्हें 2012 में फिर से संयुक्त सचिव के पद पर बहाल किया गया।
तीन साल तक वर्ल्ड बैंक के साथ सफलतापूर्वक काम करने के बाद सुब्रमण्यम वापस लौटे तो एक बार फिर मनमोहन ने उन पर भरोसा दिखाया और जॉइंट सेक्रेटरी का पद दिया।
यही नहीं सुब्रमण्यम ने मोदी सरकार के साथ भी जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर काम किया और उसके बाद ही उनकी वापसी अपने काडर छत्तीसगढ़ में हुई। छत्तीसगढ़ के गृह सचिव के पद पर रहते हुए उन्होंने नक्सल प्रभावित क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया। खासकर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके में उन्हें विकास कार्यों को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए जाना जाता है।
बस्तर इलाके में बीवीआर सुब्रमण्यम ने मुख्य सचिव रहते हुए सही रणनीति और इच्छाशक्ति के जरिए 700 किमी. लंबी सड़क लाइन बनाने में सफलता हासिल की। 2017 में इस इलाके में 300 नक्सली मारे गए और 1000 से अधिक ने सरेंडर किया।
इसी तरह वहीं राज्यपाल एनएन राव के सलाहकार नियुक्त किए गए पूर्व आईपीएस अधिकारी विजय कुमार जंगल में उग्रवाद निरोधक अभियान चलाने में माहिर माने जाते हैं। उल्लेखनीय है कि कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन को अक्टूबर 2004 में एक मुठभेड़ में मारा गया था, विजय कुमार ने ही उस टीम का नेतृत्व किया था।
तमिलनाडु काडर के 1975 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे कुमार 1998-2001 में बीएसएफ के महानिरीक्षक (आईजी) के तौर पर कश्मीर घाटी में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। उस वक्त बीएसएफ घाटी में आतंकवाद निरोधक अभियानों में काफी सक्रिय था।
साल 2010 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 75 जवानों के शहीद होने के बाद कुमार को इस बल का डीजी बनाया गया था। इसके बाद इलाके में नक्सली गतिविधियों में बड़ी कमी दर्ज की गई थी।