कोच्चि। जानेमाने विधिवेत्ता वीआर कृष्ण अय्यर का आज निधन हो गया। अय्यर ने दबे-कुचलों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में जमानत संबंधी नियमों की पुर्नव्याख्या की।
न्यायमूर्ति अय्यर ने गत 13 नवम्बर को अपने जीवन के 100 वर्ष पूरे किए थे। उनका यहां एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। न्यायमूर्ति के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। उन्हें 24 नवम्बर को एक निजी मेडिकल ट्रस्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अस्पताल के प्रबंध निदेशक पीवी एंटनी और अय्यर का इलाज करने वाले हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. मनु आर वर्मा ने संवाददाताओं को बताया कि न्यायमूर्ति अय्यर का अपरान्ह साढ़े तीन बजे निधन हो गया।
डॉ. मनु वर्मा ने कहा, ‘उनका निधन मस्तिष्काघात, हृदय और गुर्दे के काम करना बंद करने तथा निमोनिया से हुआ।’ न्यायमूर्ति अय्यर का जन्म केरल के पलक्कड़ में एक रूढ़िवादी तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
वह साम्यवाद की ओर आकर्षित हुए और राज्य में दिवंगत ईएमएस नम्बूदिरिपाद के नेतृत्व में विश्व की सबसे पहली लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार में मंत्री बने।
अय्यर के लीक से हटकर फैसलों ने कानून को मानवीय रूप प्रदान किया। वह 70 के दशक में उच्चतम न्यायालय के एक क्रांतिकारी न्यायाधीश थे जब देश राजनीतिक और विधिक उथलपुथल से गुजर रहा था जिसमें आपातकाल का समय भी शामिल था।
वैद्यनाथपुर राम कृष्ण अय्यर ने अपने निष्पक्ष फैसलों, फैसले लिखने के तरीके और अंग्रेजी भाषा में मजबूत पकड़ को लेकर नाम और पहचान हासिल की। वह असामान्य रूप से राजनीति से न्यायपालिका में आए। 1973 में उच्चतम न्यायालय पहुंचने से पहले वह एक विधायक, मंत्री और केरल में न्यायाधीश थे।
अय्यर नागरिकों को अपने ध्यान के केंद्र में रखते थे और उन्हें कानून की इतनी अच्छी जानकारी थी कि भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए एस आनंद उन्हें भारतीय न्यायपालिका का ‘भीष्म पितामह’ बुलाते थे। वह 1980 में उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त हो गए।
अय्यर ने अनुच्छेद 21 जैसे संविधान में प्रदत्त अधिकारों की व्याख्या की। ज्वलंत मुद्दों पर अय्यर के रूख ने जानेमाने विधिवेत्ता फाली एस नरीमन को यह कहने के लिए मजबूर कर दिया कि ‘जब कृष्ण अय्यर बोलते हैं, देश सुनता है।’
अय्यर के कुछ मील के पत्थर फैसलों ने उन्हें अमेरिका के पूर्व प्रधान न्यायाधीश अर्ल वारेन और लार्ड डेनिंग जैसे जानेमाने विधि विद्वानों की श्रेणी में शामिल कर दिया। कैदियों को सामान्य स्थिति में हथकड़ी लगाने पर प्रतिबंध, शमशेर सिंह के मामले में उनका फैसला उनके प्रमुख फैसलों में था, जिसमें उन्होंने राष्ट्रपति की तुलना में कैबिनेट के अधिकारों की व्याख्या की थी।
24 जून 1975 के उनके अंतरिम आदेश की काफी प्रशंसा और आलोचना हुई, जिसमें उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ बिना शर्त स्थगन प्रदान नहीं किया जिसमें लोकसभा के उनके निर्वाचन को निरस्त घोषित कर दिया गया था। उसके अगले दिन ही देश में आपातकाल लागू कर दिया गया था।
‘बेहतर इंसान’’ थे न्यायमूर्ति अय्यर : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अय्यर के निधन पर दु:ख जताया और उन्हें एक प्रबुद्ध दार्शनिक और सबसे बढ़कर ‘बेहतर इंसान’ बताया।
मोदी ने ट्विटर पर लिखा, ‘न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर की आत्मा को शांति मिले। दु:ख की इस घड़ी में मैं उनके परिवार के साथ हूं’। उन्होंने लिखा, ‘वह अनुभवी और सक्षम वकील, प्रमुख न्यायविद्, प्रबुद्ध दार्शनिक और सबसे बढ़कर एक बेहतर इंसान थे। मैं न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर के सम्मान में नमन करता हूं।’
प्रधानमंत्री मोदी ने न्यायमूर्ति अय्यर के साथ अपने ‘विशेष’ संबंध को याद करते हुए कहा कि ‘मुझे हमारे बीच होने वाला विचार-विमर्श और उनके विचारपूर्ण पत्र याद आते हैं जो वह मुझे लिखा करते थे...मैं जब भी उनसे मुलाकात करता था या बात करता था मैं उन्हें उत्साह से भरा हुआ पाता था, वह हमेशा ही भारत की भलाई की बात किया करते थे। उनका असाधारण व्यक्तित्व था।’
माकपा ने भी अय्यर के निधन पर शोक व्यक्त किया और कहा कि देश ने ‘एक ऊंचा व्यक्तित्व खो दिया है, जिनकी समाज के प्रति सेवा को हमेशा ही याद किया जाएगा।’
माकपा महासचिव प्रकाश करात ने अपने शोक संदेश में कहा, ‘कृष्ण अय्यर ने अपने पूरे जीवन काल के दौरान न्याय, समानता और समाजवाद के लिए संघर्ष किया। अपनी नैतिक क्षमता और दबे कुचलों के लिए गहरी करुणा के साथ उन्होंने अपने जीवन के अंत समय तक जनता को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष किया।’ (भाषा)