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न्याय तक पहुंच के मामले में कर्नाटक अव्वल, शीर्ष 5 में 4 दक्षिणी राज्य

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, मंगलवार, 4 अप्रैल 2023 (18:03 IST)
नई दिल्ली। आम लोगों की न्याय तक पहुंच के मामले में कर्नाटक देश के विभिन्न राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में अव्वल है जबकि दूसरा स्थान तमिलनाडु ने हासिल किया है। 'इंडिया जस्टिस रिपोर्ट' (आईजेआर)-2022 में इस बाबत मंगलवार को घोषणा की गई। आंध्रप्रदेश क्रमश: 4थे और 5वें स्थान पर हैं। वर्ष 2020 के 6ठे स्थान की तुलना में गुजरात ने इस बार 3 पायदान की छलांग लगाई जबकि आंध्रप्रदेश 12वें पायदान से सीधे 5वें स्थान पर पहुंच गया है।
 
रिपोर्ट के अनुसार न्याय तक सुगम पहुंच प्रदान करने वाले 5 शीर्ष राज्यों में 4 दक्षिणी भारत से हैं। 1 करोड़ से अधिक आबादी वाले बड़े राज्यों की इस सूची में तीसरा स्थान तेलंगाना ने हासिल किया है जबकि गुजरात और आंध्रप्रदेश क्रमश: 4थे और 5वें स्थान पर हैं। वर्ष 2020 के 6ठे स्थान की तुलना में गुजरात ने इस बार 3 पायदान की छलांग लगाई जबकि आंध्रप्रदेश 12वें पायदान से सीधे 5वें स्थान पर पहुंच गया है।
 
रिपोर्ट ने हालांकि इस पहलू को भी उजागर किया है कि दिल्ली और चंडीगढ़ को छोड़कर कोई भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश न्यायपालिका पर अपने कुल वार्षिक व्यय का 1 प्रतिशत से अधिक खर्च नहीं करता है। टाटा ट्रस्ट की ओर से 2019 में शुरू की गई आईजेआर के तीसरे संस्करण में यह भी कहा गया है कि 1 करोड़ से कम आबादी वाले 7 छोटे राज्यों की सूची में सिक्किम ने इस मामले में पहला स्थान हासिल किया है।
 
रिपोर्ट के अनुसार इस श्रेणी में अरुणाचल प्रदेश दूसरे और त्रिपुरा तीसरे स्थान पर है। वर्ष 2020 में सिक्किम जहां दूसरे स्थान पर था, वहीं अरुणाचल प्रदेश 5वें स्थान पर था। रिपोर्ट के अनुसार त्रिपुरा हालांकि पहले स्थान से खिसककर तीसरे स्थान पर पहुंच गया है।
 
आईजेआर में न्यायपालिका में रिक्तियों, बजटीय आवंटन, बुनियादी ढांचे, मानव संसाधन, कानूनी सहायता, जेलों की स्थिति, पुलिस और राज्य मानवाधिकार आयोगों के कामकाज जैसे विभिन्न मापदंडों पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है।
 
आईजीआर-2022 के अनुसार देश के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 30 प्रतिशत पद खाली हैं जबकि अधीनस्थ अदालतों में यह आंकड़ा 22 प्रतिशत का है। रिपोर्ट बताती है कि उच्च न्यायालयों में स्टाफ की कमी निर्धारित संख्या का 26 प्रतिशत है।
 
रिपोर्ट में पुलिस बल, अधिकारियों, कारा अधिकारियों, कारा चिकित्सा स्टाफ आदि की निर्धारित पदों पर भी रिक्तियों का लेखा प्रस्तुत किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कारा चिकित्सा अधिकारियों के 48 प्रतिशत पद रिक्त हैं जबकि पुलिस कांस्टेबल के 22 फीसदी तथा पुलिस अधिकारी के 29 फीसदी पद खाली पड़े हैं।
 
आईजेआर के अनुसार कुछ राज्यों ने खाली पदों को भरने के लिए सशक्त प्रयास किए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है तेलंगाना में कांस्टेबुलरी की रिक्तियों को 40 फीसदी से घटाकर 26 फीसदी किया गया है जबकि मध्यप्रदेश में अधिकारियों की रिक्तियां 49 प्रतिशत से 21 प्रतिशत पर लाई गई हैं।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वीकृत क्षमता के सापेक्ष गणना करने पर पाया गया कि दिसंबर 2022 तक देश में प्रत्येक 10 लाख लोगों के लिए 19 न्यायाधीश थे और 4.8 करोड़ मामले लंबित थे जबकि 1987 की शुरुआत में विधि आयोग ने निर्देश दिए थे कि यह संख्या 1 दशक के अंदर 10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीशों की हो जानी चाहिए।
 
रिपोर्ट के अनुसार पुलिस बल में महिलाओं की कुल हिस्सेदारी लगभग 11.75 प्रतिशत है, हालांकि अधिकारी रैंक में यह अब भी कम महज 8 फीसदी है। रिपोर्ट बताती है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में महिलाओं की भागीदारी केवल 13 फीसदी और अधीनस्थ अदालतों में महिला न्यायाधीशों की संख्या 35 प्रतिशत है।
 
रिपोर्ट में बताया गया है कि ज्यादातर राज्यों ने वकीलों के पैनल में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाई है तथा राष्ट्रीय स्तर पर यह हिस्सेदारी 18 प्रतिशत से बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई है। आईजेआर के अनुसार 28 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के उच्च न्यायालयों में हर 4 में से 1 मामला 5 साल से अधिक समय से लंबित है जबकि 11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के जिला अदालतों में प्रत्येक 4 में से 1 मामला 5 वर्ष से अधिक समय से लंबित है।
 
रिपोर्ट में इस पहलू का भी जिक्र किया गया है कि मुफ्त कानूनी सहायता पर भारत का प्रति व्यक्ति खर्च मात्र 3.84 रुपए प्रतिवर्ष है जबकि इसके लिए भारत की 80 प्रतिशत आबादी पात्र है।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta

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