जम्मू। अंततः चीनी सेना ने उस मौखिक समझौते को तोड़ते हुए लद्दाख के मोर्चे पर अतिरिक्त ब्रिगेड को तैनात कर तनातनी को बढ़ा दिया है। अनुमानतः एलएसी पर चीनी सैनिकों की संख्या एक लाख के करीब हो गई है। भारत के भी इतने ही सैनिक तैनात हैं। पर हालात के मद्देनजर भारतीय सेना एक और डिवीजन सेना तैनात करने की तैयारी कर रही है।
मिलने वाले समाचारों के मुताबिक, फिंगर फोर की ऊंचाई पर सैनिकों की नई टुकड़ी तैनात करने के लिए पीएलए ने पैंगोंग झील के उत्तरी हिस्से में एक अतिरिक्त ब्रिगेड की तैनाती की है। चीन की मंशा यहां अपने सैनिकों मनोबल ऊंचा रखने की है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पूर्वी लद्दाख के फिंगर-4 इलाके में भारत और चीन दोनों ने करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर अपनी सेना तैनात की है। अब मौसम खराब होने लगा है, इसे देखते हुए पीएलए यहां से अपने 200 नए सैनिकों को पहुंचा रहा है ताकि अग्रिम मोर्चे पर तैनात उसके सैनिक खुद को तरोताजा और प्रेरित महसूस करें।
रक्षाधिकारियों के मुताबिक, चीन पर भरोसा करना खुद को धोखा देने जैसा है। दरअसल, उसकी कथनी-करनी में कोई मेल नहीं है। सीमा पर बने तनावपूर्ण हालात में कमी लाने की बात तो वह करता है, लेकिन सीमा पर उसकी गतिविधियां संदेह प्रकट करती हैं।
पूर्वी लद्दाख सहित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव कम करने के लिए सोमवार को दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच सातवें दौर की बातचीत आरंभ हुई है पर पिछली बातचीत में हुए मौखिक समझौते को तोड़ते हुए उसने तनाव बढ़ाने वाली कार्रवाई की है।
जानकारी के मुताबिक चीन ने पैंगोंग झील के उत्तरी हिस्से में अपनी नई सैन्य टुकड़ियां भेजना शुरू कर दिया है। जाहिर है कि पीएलए की यह गतिविधि दर्शाती है कि उसकी मंशा इस इलाके में फिलहाल पीछे हटने की नहीं है।
भारत का भी मानना है कि सीमा पर सैनिकों की वापसी की पहल एक लंबी प्रक्रिया से गुजरेगी। सेना का मानना है कि भारत यदि अपने सैनिकों को पीछे हटाता है तो उन जगहों पर पीएलए के सैनिक आ जाएंगे। इसलिए भारत अपने नियंत्रण वाले ऊंचाइयों को छोड़ने के पक्ष में नहीं है।
आने वाले कुछ दिनों में यहां भयंकर सर्दी पड़ने लगेगी। पारा शून्य से 40 डिग्री नीचे तक चला जाएगा। यहां खराब मौसम में बने रहने की भारत ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है। चीन के सैनिकों के लिए इतनी ऊंचाई और सर्दी में रहने की आदत नहीं है।
वैसे हिन्द-चीन की सेनाओं के बीच छठे दौर की वार्ता के बेनतीजा रहने के उपरांत से भारत इसके प्रति उम्मीद छोड़ दी थी कि चीनी सैनिक लद्दाख के विवादित क्षेत्रों से पीछे हटेंगे। ऐसे में अब एलएसी पर लंबे समय तक टिके रहने और भयानक सर्दी से बचाव की योजनाएं लागू की जाने लगी हैं।
रक्षा सूत्रों के बकौल, दरअसल चीनी सैनिकों की वापसी का मामला दो बिंदुओं पर ही अटका हुआ है। पहला, पहल कौन करे। इस पर छठे दौर की वार्ता में शामिल भारतीय सेनाधिकारियों का कहना था कि समझौते चीन की सेना ने तोड़े हैं तो पहल भी उसे ही करनी होगी।
दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा जिस पर सहमति नहीं बन पाई कि इस बात की आखिर क्या गारंटी है कि चीनी सेना पुनः लद्दाख के इलाकों में घुसपैठ कर विवाद खड़ा नहीं करेगी। यह भारतीय सेना के अधिकारियों की चिंता का विषय इसलिए भी है क्योंकि पिछले कई सालों से यही हो रहा है कि चीन भी अब पाकिस्तान की ही तरह समझौतों की लाज नहीं रख रहा है।
यह भी सच है कि लद्दाख में चीन अब धोखे वाली रणनीति अपनाते हुए जो चाल चल रहा है वह खतरनाक कही जा सकती है। इससे अब भारतीय सेना अनभिज्ञ नहीं है। यही कारण है कि उसने अब पैंगोंग झील के सभी फिंगरों के अतिरिक्त 8 अन्य विवादित क्षेत्रों पर भी अतिरिक्त सैनिक भिजवाने की पहल आरंभ कर दी है।
अधिकारी कहते हैं कि अगर चीन की रणनीति को समझें तो वह सिर्फ पैंगांग झील के मामले को उछालते हुए भारतीय सेना का ध्यान बंटाते हुए अन्य इलाकों में बढ़त हासिल करने में जुटा है, जिसका परिणाम यह है कि अन्य विवादित क्षेत्रों में भारतीय सेना को अपनी पोजिशन मजबूत करने के लिए अतिरिक्त एक डिवीजन सेना की जरूरत महसूस हो रही है।
रक्षाधिकारी मानते हैं कि भारतीय सेना और चीनी सेना लद्दाख के कई इलाकों में आमने-सामने है और तनाव की स्थिति बनी हुई है, लेकिन सबसे ज्यादा तनाव पैंगोंग झील इलाके में है। अब कुछ रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि हो सकता है कि चीन भारतीय सेना को पैंगोंग झील में उलझा कर रखना चाहता है और उसकी असल नजर लद्दाख के देपसांग इलाके पर है। देपसांग में भी दोनों सेनाओं के बीच स्टैंड ऑफ है, लेकिन गौरतलब है कि देपसांग में मई से भी पहले से चीन की सेना भारतीय सैनिकों को पेट्रोलिंग से रोक रही है।
पर इसकी उम्मीद कम ही लग रही है कि चीन अपने सैनिकों को इन इलाकों से भी हटाएगा। ऐसे में भारतीय सेना रक्षा मंत्रालय से आग्रह कर रही है कि नाजुक परिस्थितियों के चलते विवादित क्षेत्रों में अपनी पोजिशन को मजबूत करने की खातिर कम से कम एक डिवीजन सेना की जरूरत है जो अभी तैनात किए जा चुके एक लाख जवानों के अतिरिक्त होगी।