भोपाल। मध्यप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव में लगभग 5 महीने का समय शेष रह जाने के बीच पिछले 14 साल से सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी एक बार लगातार चौथी विजय हासिल करने के लिए पूरी तैयारियों में जुट गई है, वहीं लगभग डेढ़ दशक से सत्ता का वनवास भुगत रही कांग्रेस 'आर या पार' की लड़ाई का मन बना लिया है। प्रदेश की वर्तमान 14वीं विधानसभा का कार्यकाल अगले साल जनवरी में समाप्त होना है।
इसके पहले आगामी नवंबर माह में विधानसभा चुनाव संभावित हैं। इसे देखते हुए दोनों दलों ने कमर कस ली है। भारतीय जनता पार्टी जहां प्रदेश के अपने 14 साल के कार्यकाल के दौरान की सफलताओं को समूचे प्रदेश तक व्यवस्थित तौर पर पहुंचाने को अपनी रणनीति बता रही है, वहीं कांग्रेस ने अपना मुख्य लक्ष्य किसानों, युवाओं और महिलाओं को बनाते हुए इन पर ध्यान केंद्रित रखा है।
भाजपा ने जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ही आगे रखा है, वहीं कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर एक तरह से उनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने की योजना बनाई है। भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर ने कहा कि इन 5 महीनों में पार्टी का लक्ष्य मौजूदा प्रदेश सरकार द्वारा पिछले 14 सालों में और केंद्र सरकार द्वारा पिछले 4 सालों में किए गए कार्यों को व्यवस्थित तौर पर जनता तक पहुंचाना रहेगा।
जनता से बनाया गया यह संवाद स्वत: ही पार्टी की सफलता की राह सुनिश्चित कर देगा, वहीं प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष मानक अग्रवाल ने दावा किया कि भाजपा सरकार से प्रदेश में किसान, महिलाएं और युवाओं समेत हर वर्ग परेशान है। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रदेश में सरकार बनने पर किसानों का कर्ज 10 दिनों में माफ करने की घोषणा भी कर दी है। आने वाले समय के लिए पार्टी के सभी बड़े नेताओं को जिम्मेदारियां सौंप दी गई हैं। सभी अपने अपने कार्यों को जमीनी स्तर पर अंजाम देंगे।
उन्होंने दावा किया कि पार्टी इस बार हर हाल में 230 में से 150 से ज्यादा सीटें हासिल कर प्रदेश में सत्ता में वापसी करेगी। प्रदेश के चुनावी रण में उतरने से पहले दोनों ही दलों ने प्रदेश अध्यक्ष भी बदले हैं। भाजपा ने जहां सांसद नंदकुमार सिंह चौहान से ये जिम्मेदारी वापस लेकर सांसद राकेश सिंह को बागडोर थमाई है, वहीं कांग्रेस ने करीब डेढ़ महीने पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ को प्रदेश की कमान सौंपी है।
हालांकि कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष के पद से पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री अरुण यादव को हटाए जाने से असंतोष के स्वर भी सुनाई दिए, लेकिन पार्टी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और नवागत अध्यक्ष कमलनाथ जैसे दिग्गजों को कई मंचों पर एकसाथ लाकर एकजुटता प्रदर्शित करने के भरसक प्रयासों में जुटी है।
दोनों दलों ने चुनावी तैयारियों के तहत अलग-अलग समितियां बनाई हैं, जो आने वाले समय में जमीनी स्तर पर काम करेंगी। भाजपा में चुनाव प्रबंध समिति समेत 12 समितियों का गठन किया है जिनमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, थावरचंद गेहलोत, फग्गन सिंह कुलस्ते, सांसद प्रहलाद पटेल, पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, उपाध्यक्ष प्रभात झा समेत लगभग सभी आला नेताओं की जिम्मेदारियां तय कर दी हैं।
कांग्रेस ने भी लगभग आधा दर्जन समितियां बनाकर सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, सांसद कांतिलाल भूरिया, सुरेश पचौरी समेत सभी दिग्गज नेताओं को चुनावी रण में सफलता हासिल करने की तैयारियों में शामिल करा दिया है। दोनों दलों के केंद्रीय नेतृत्व ने कई अन्य प्रदेशों के उलटफेरभरे परिणामों को देखते हुए अब मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य पर विशेष ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है।
इसी क्रम में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में मंदसौर के दौरे के दौरान पार्टी की सरकार बनने पर 10 दिन में किसानों की कर्जमाफी की घोषणा की है, दूसरी ओर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी मई के अपने दौरे के बाद एक बार फिर आगामी 12 जून को प्रदेश के जबलपुर दौरे पर आने वाले हैं।
उनके इन दौरों को चुनाव के पहले संगठन में लगातार कसावट लाकर प्रदेश में लगातार चौथी बार सरकार बनाने के लक्ष्य के तौर पर देखा जा रहा है। राज्य में वर्ष 1993 से 2003 तक वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी और नवंबर-दिसंबर 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को विकास के मुद्दे पर भाजपा के हाथों करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था।
इसके बाद 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने लगातार विजय हासिल कर कांग्रेस को सत्ता से लगातार दूर रखा। वर्तमान में प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा में 166 विधायक भाजपा के, 57 कांग्रेस, 4 बहुजन समाज पार्टी और 3 निर्दलीय विधायक हैं। (वार्ता)