Madhya Pradesh High Court's decision in the Women Judicial Officer case : मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह असंतोषजनक कामकाज के लिए 6 महिला न्यायिक अधिकारियों की सेवाएं समाप्त करने संबंधी अपने पहले के फैसले पर कायम रहेगा। उच्चतम न्यायालय ने दो फरवरी को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय को इस बारे में तीन सप्ताह के अंदर फैसला करने को कहा था कि क्या यह 6 महिला न्यायाधीशों के असंतोषजनक कामकाज को लेकर सेवाएं समाप्त करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकता है।
उच्च न्यायालय का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ को फैसले के बारे में सूचित किया। पीठ छह पूर्व न्यायिक अधिकारियों में से तीन द्वारा उनकी सेवाओं को समाप्त किए जाने के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के बाद शुरू की गई स्वत: संज्ञान याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 30 अप्रैल तय की।
न्यायालय ने बर्खास्त न्यायिक अधिकारियों को भी नोटिस जारी किए : उच्चतम न्यायालय ने असंतोषजनक कामकाज के कारण मध्य प्रदेश सरकार द्वारा छह महिला दीवानी न्यायाधीशों की सेवाएं समाप्त कर दिए जाने का 12 जनवरी को संज्ञान लिया था और संबंधित उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी करके जवाब-तलब किया था। न्यायालय ने बर्खास्त न्यायिक अधिकारियों को भी नोटिस जारी किए थे और उन्हें अपना पक्ष रिकॉर्ड पर रखने को कहा था।
वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल इस मामले में न्याय मित्र के रूप में शीर्ष अदालत की सहायता कर रहे हैं। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान पूर्व न्यायिक अधिकारियों में से एक की ओर से वकील तन्वी दुबे पेश हुईं। अग्रवाल ने पहले शीर्ष अदालत को बताया था कि उच्च न्यायालय की प्रशासनिक समिति द्वारा इन पूर्व न्यायिक अधिकारियों के प्रदर्शन के बारे में कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की गई थी।
बर्खास्तगी के खिलाफ मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर : उन्होंने कहा था कि पिछले साल छह न्यायिक अधिकारियों को बर्खास्त किया गया था, जिनमें से तीन ने शीर्ष अदालत को अपनी अर्जी भेजी, लेकिन इन्होंने अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की हैं, जो अभी लंबित हैं।
उन्होंने उच्चतम न्यायालय को बताया था कि तीन पूर्व न्यायिक अधिकारियों ने पिछले वर्ष रिट याचिका दायर की थी, लेकिन बाद में उन्होंने इसे वापस ले लिया था। शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किए गए इस मामले की 11 जनवरी की कार्यालय रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश राज्य न्यायिक सेवा के तीन पूर्व सिविल न्यायाधीशों, संवर्ग-2 (जूनियर डिवीजन) ने शीर्ष अदालत को अर्जी भेजी है।
याचिकाओं का निपटारा नहीं होने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया : उन्होंने कहा कि बर्खास्तगी इस तथ्य के बावजूद हुई कि कोविड-19 के प्रकोप के कारण उनके काम का मात्रात्मक मूल्यांकन नहीं किया जा सका। कार्यालय रिपोर्ट में कहा गया था, अर्जी में कहा गया है कि इन न्यायिक अधिकारियों को तीन अन्य महिला (न्यायिक) अधिकारियों के साथ मध्य प्रदेश न्यायिक सेवाओं में नियुक्त किया गया था। आरोप है कि उन्हें निर्धारित मानकों के अनुरूप याचिकाओं का निपटारा नहीं होने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है।
राज्य के कानून विभाग द्वारा एक प्रशासनिक समिति और एक पूर्ण अदालत की बैठक में परिवीक्षा अवधि के दौरान उनके प्रदर्शन को असंतोषजनक पाए जाने के बाद जून 2023 में बर्खास्तगी आदेश पारित किए गए थे। पूर्व न्यायाधीशों में से एक ने मामले में पक्षकार बनाए जाने की अर्जी अधिवक्ता चारू माथुर के माध्यम से दायर की है, जिसमें कहा गया है कि चार साल का बेदाग सेवा रिकॉर्ड होने और किसी भी प्रतिकूल टिप्पणी का सामना नहीं करने के बावजूद, उन्हें कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना बर्खास्त कर दिया गया। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour