लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद दिलचस्प नजर आ रहे है। एक ओर महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना गठबंधन ने बहुमत का आंकडा आसानी से पार कर लिया है वहीं हरियाणा में भाजपा मैजिक नंबर से दूर नजर आ रही है। हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के चेहरे के सहारे मैदान में उतरी कांग्रेस ने वापसी करते हुए भाजपा के विजयी रथ को रोक लिया है तो महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना फिर से सरकार बनाने जा रही है। ऐसे में यह सवाल खड़ा हो रहा है कि महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव नतीजे इतना अलग क्यों है, ऐसे क्या कारण रहे कि हरियाणा में कांग्रेस सरकार बनाने की हालात में दिख रही है तो महाराष्ट्र में कांग्रेस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा।
1.कांग्रेस के पास चेहरे और नेतृत्व संकट –महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी हार का प्रमुख कारण पार्टी में चेहरे और नेतृत्व का संकट होना है। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद पार्टी में नेतृत्व को लेकर जो संकट खड़ा हुआ उसका लंबा खिंचना और अखिरकार सोनिया गांधी को ही फिर पार्टी की कमान संभालना चुनाव से ठीक कांग्रेस को वह संजीवनी नहीं दे पाया जो जीत के लिए जरुरी थी। कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर जो संकट खड़ा हुआ उसका सीधा असर महाराष्ट्र में भी दिखाई दिया। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना उद्धव ठाकरे के मुकाबले कांग्रेस के पास ऐसा कोई एकलौता चेहरा ही नहीं था जो चुनावी मैदान में मुकाबला कर सके। इसके ठीक उलट हरियाणा में कांग्रेस ने पूरा चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के चेहरे पर लड़ा जो पार्टी के लिए तुरुप का इक्का साबित हुआ।
2.चुनाव प्रचार से कांग्रेस का दूर होना – महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार का बड़ा कारण पार्टी का आधे अधूरे मन से चुनावी मैदान में उतरना है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के बड़े नेताओं ने जिस तरह अपनी दूरी बनाई उसको देखकर यह लगा कि पार्टी ने बिना लड़े ही हार मान ली। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान विपक्षी खेमे में हताशा नजर ही आई। महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष औक गृहमंत्री अमित शाह के साथ ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का 100 से अधिक बड़ी चुनावी रैलियां करना भी भाजपा की जीत का बड़ा कारण रही। वहीं कांग्रेस की तरफ से सभी स्टार प्रचारकों ने चुनावी मैदान से दूरी बना ली है। दूसरी तरह हरियाणा में पूरे चुनाव प्रचार की कमान भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने अपने हाथों में रखी।
3.स्थानीय मुद्दों को उठाने में कांग्रेस मे विफल – महाराष्ट्र में नेतृत्व संकट से जूझ रही कांग्रेस चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के खिलाफ कोई भी मजबूत मुद्दा उठाना में पूरी तरह विफल रही। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस की सहयोगी पार्टी एनसीपी ने स्थानीय मुद्दे पर चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस न तो स्थानीयता का मुद्दा उठा सकी और न हीं उसकी तरफ लोगों का ध्यान खींच पाई। वहीं हरियाणा में कांग्रेस ने पूरा चुनाव प्रचार स्थानीयता और जातिगत आधारों पर लड़ा। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बड़े वोट बैंक जाट को अपनी तरफ खींचने में पूरी तरह सफल दिखाई दिए।
4. महाराष्ट्र में पार्टी में गुटबाजी – महाराष्ट्र में कांग्रेस की बुरी हार का कारण पार्टी के अंदर गुटबाजी का चरम पर होना था। चुनाव से ठीक पहले मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरुपम ने जिस तरह पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोला उसने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का मनोबल बुरी तरह टूट गया। इसके साथ ही पार्टी मे गुटबाजी के चलते चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस नेताओं ने पाला बदलकर भाजपा और शिवसेना में शामिल हो गए। जिसका खासा असर चुनाव में कांग्रेस और उसके कार्यकर्ताओं पर भी पड़ा।
वहीं हरियाणा में चुनाव से पहले बागवती तेवर दिखाने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा को जिस तरह कांग्रेस ने मनाया है और पूरे चुनाव प्रचार की कमान और टिकटों का बंटवारा उनके हाथों में सौंप दिया
5 भाजपा और शिवसेना का गठबंधन – महाराष्ट्र में 2014 की तुलना में इस बार भाजपा और शिवसेना ने गठबंधन में चुनाव लड़ा जिसका फायदा चुनाव परिणाम में भी देखने को मिला। 288 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा और शिवसेना गठबंधन आराम से बहुमत का आकंड़ा छू लिया इसमें कई ऐसी सीटें है जहां चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन ने कांटे की टक्कर दी। अगर चुनाव में भाजपा और शिवसेना अलग – अलग चुनाव मैदान में उतरती है तो नतीजे भाजपा के लिए मुश्किल खड़े करने वाले हो सकते थे।