भोपाल। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, प्रसिद्ध वकील एवं राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने रविवार को कहा कि जवाहरलाल नेहरू कभी आजादी नहीं ला पाते और महात्मा गांधी पहले प्रधानमंत्री होते तो वे कभी देश नहीं चला पाते।
हालांकि सिंघवी ने कार्यक्रम के बाद दोपहर में प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में अपनी बात का मतलब स्पष्ट करते हुए कहा कि हर व्यक्ति का अपना अनुभव और क्वालिटी होती है। गांधीजी देश आजाद करा सकते थे, लेकिन राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे। आजादी के समय उनकी उम्र भी 80 वर्ष थी, वहीं नेहरू में शासन करने की क्षमता थी।
सिंघवी ने यहां कैम्पियन स्कूल में मध्यप्रदेश युवा संसद द्वारा आयोजित यूथ कॉन्क्लेव में नेहरू और महात्मा गांधी की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए यह बात कही थी। कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
यूथ कॉन्क्लेव में सिंघवी ने कहा कि हमारा सौभाग्य रहा कि 'गांधी' पहले आए, फिर 'नेहरू'। दोनों का आदर्शवाद अलग था। गांधी के अलावा कोई भी आजादी के लिए सक्षम नहीं था। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद देश में गणतांत्रिक संस्थाएं बनाने का काम नेहरू ने किया।
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद सिंघवी ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता, सोशलिज्म, निष्पक्ष आर्मी, चुनाव आयोग, सीएजी जैसी संस्थाएं बनानी पड़ती हैं, जो काम नेहरू ने किया। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि 1930 से 1960 तक दुनियाभर में आजाद हुए देशों में से कोई भी इतना लोकतांत्रिक नहीं है जितना भारत, क्योंकि हमारी लोकतांत्रिक संस्थाएं मजबूत थीं।
सिंघवी ने अप्रत्यक्ष तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर प्रहार करते हुए कहा कि लोकतंत्र का स्तंभ व्यक्ति नहीं, संस्थाएं होती हैं। उन्होंने कुछ पुरानी नीतियों का जिक्र करते हुए कहा कि अब कोई भी पॉलिसी आती है तो ऐसा बताया जाता है कि 2014 के बाद ही पहली बार ऐसा हुआ है।
नोटबंदी के निर्णय को गलत ठहराते हुए उन्होंने कहा कि इसके दुष्परिणाम जून और दिसंबर 2017 की रिपोर्ट आने पर सामने आएंगे। बेरोजगारी को बड़ी समस्या बताते हुए उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले 3 क्षेत्रों आईटी, कृषि और निर्माण की हालत दयनीय है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने अपने संबोधन में 1975 के आपातकाल के निर्णय को गलत बताते हुए आज की स्थिति से उसकी तुलना की। उन्होंने कहा कि आज भी अघोषित आपातकाल की स्थिति है। उन्होंने संवाद को समाज के लिए जरूरी बताते हुए कहा कि इसके बिना समाज का भला नहीं होगा।
मध्यप्रदेश युवा संसद के यूथ कॉन्क्लेव में कई विशेषज्ञों ने भाग लिया। इसमें उन्होंने अभिव्यक्ति की आजादी, अनेकता में एकता जैसे मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत किए। (वार्ता)