माणिक साहा ने रविवार को त्रिपुरा के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। राज्यपाल सत्यदेव नारायण राय ने राजभवन में उन्हें पद और गोपनियता की शपथ दिलाई। पार्टी पिछले 11 माह में 4 राज्यों में सीएम बदल चुकी है। अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या त्रिपुरा में भाजपा की यह नीति सफल होगी?
डॉ. माणिक साहा को मुख्यमंत्री नियुक्त करने के फैसले को कई लोग इस पूर्वोत्तर राज्य में दोबारा जड़ें जमाने की भाजपा की बड़ी कवायद के तौर पर देख रहे हैं। साहा को साफ छवि का नेता माना जाता है।
पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब समारोह में भाजपा के विधायकों और राज्य के अन्य मंत्रियों के साथ उपस्थित थे। देव के शनिवार शाम अचानक इस्तीफे के बाद साहा शीर्ष पद पर पहुंचे हैं।
उपमुख्यमंत्री जिष्णु देव वर्मा और मंत्री राम प्रसाद पॉल शपथ ग्रहण समारोह समाप्त होने के कुछ समय बाद राजभवन पहुंचे। दोनों ने शनिवार को भाजपा विधायक दल की बैठक के दौरान मुख्यमंत्री के रूप में साहा की नियुक्ति का विरोध किया था।
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के छात्र रह चुके साहा (69) साल 2016 में भाजपा में शामिल होने से पहले विपक्षी दल कांग्रेस के सदस्य थे। 2020 में बिप्लब देब के त्रिपुरा भाजपा का अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद उन्होंने राज्य में पार्टी की कमान संभाली थी।
लंबे समय से पार्टी को फिडबैक मिल रहा था कि राज्य में 2023 में प्रस्तावित विधानसभा चुनावों से पहले संगठन को मजबूती देने के लिए पार्टी और सरकार में बदलाव की जरूरत है।
भाजपा ने जुलाई 2021 में उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत के स्थान पर पुष्कर धामी को मुख्यमंत्री बनाया था। इस माह येदियुरप्पा के स्थान पर बसव राज बोम्मई को सीएम नियुक्त किया गया। सितंबर में विजय रूपाणी की जगह भूपेंद्र भाई पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया। अब त्रिपुरा में साहा को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौपी गई है।
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या मिलनसार स्वभाव वाले साहा भाजपा को बड़ी जीत की ओर ले जाएंगे? या फिर राज्य में दस्तक देने वाली तृणमूल कांग्रेस उसके हाथों से जीत छीनने में कामयाब हो जाएगी?