एक मुर्गा बचाएगा 100 मुर्गों की जान, लेबोरेटरी में बन रहा नॉनवेज!
आईआईटी के डॉक्टर विमान मंडल की नई खोज..!
- गुवाहाटी से दीपक असीम, संजय वर्मा
आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर डॉक्टर विमान मंडल ने ऐसी खोज की है, जिसकी मदद से चिकन समेत सभी तरह का मांस प्रयोगशाला में बनाया जा सकेगा। लेबोरेटरी में बना यह चिकन पोल्ट्री फार्म के चिकन के मुकाबले सस्ता भी पड़ेगा और पूरी तरह सुरक्षित भी होगा।
इसे आवश्यकतानुसार न सिर्फ अलग-अलग स्वाद का बनाया जा सकेगा, बल्कि यह शरीर के लिए आवश्यक माइक्रोन्यूट्रिएंट्स, मिनरल्स आदि से भरपूर होगा। इसे बनाने के लिए एक चिकन का मसल सेल यानी कोशिका को निकाला जाएगा। यह मसल सेल खुद को दुगना, चौगुना और कई गुना कर लेगा, इस तरह कुछ ही दिनों में एक पूरे चिकन के बराबर मांस तैयार हो जाएगा। इसे बाद में अन्य पशुओं पर भी लागू किया जा सकेगा। जैसे एक बकरे के मसल सेल से 100 बकरे।
डॉक्टर विमान मंडल ने इसके इंडियन पेटेंट के लिए अपना दावा फाइल कर दिया है। पेटेंट फाइल करते ही दुनियाभर में धूम मच गई है। कई फास्ट फूड कंपनियां उन्हें मेल और फोन करके पैसा ऑफर कर रही हैं। उन्हें अमेरिका के रिसर्च इंस्टीट्यूट से ग्रांट के ऑफर भी मिल रहे हैं, मगर उनका कहना है कि यह खोज पैसे के लिए नहीं की गई है।
उनका कहना है कि यह इंसानों की खाद्य समस्या हल कर सकती है। सस्ता प्रोटीन गरीबों को उपलब्ध करा सकती है। हर गरीब की थाली में रोज चिकन-मटन आ सकता है। इस तरह की खोज करने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक कई वर्षों से कोशिश कर रहे हैं और वे कुछ हद तक कामयाब भी हुए, पर उनकी तकनीक के अनुसार मांस बनाने के लिए किसी दूसरे पशु का सीरम डालना आवश्यक था।
उनका कहना है कि यह सीरम बहुत महंगा होता है। यदि इस सीरम का इस्तेमाल सेल के खाद्य के रूप में किया जाए तो बनने वाले मांस की लागत बहुत बढ़ जाती है और पूरी कवायद का कोई फायदा नहीं रह जाता। डॉक्टर विमान मंडल की रिसर्च इस मायने में अलग है कि उन्होंने बगैर सीरम का इस्तेमाल किए रोजमर्रा के खाने-पीने की वस्तुओं के इस्तेमाल से ही सेल को द्विगुणित करने में सफलता हासिल कर ली। इसलिए उनकी तकनीक से मांस बनाना विदेशियों के मुकाबले बहुत सस्ता हो गया है।
आईआईटी गुवाहाटी और उनकी टीम काफी समय से आर्टिफिशियल मानव अंग बनाने में जुटी है। आर्टिफिशियल यानी प्लास्टिक के नहीं बल्कि मानव से कोई सेल लेकर नियंत्रित वातावरण में उस सेल को इस तरह विकसित करना, जिससे उससे बहुत से मानव अंग जैसे लिवर, किडनी, पैंक्रियास बन सकें। विमान आर्टिफिशियल स्किन भी बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो खासतौर से जले हुए मरीजों को लगाने में काम आती है।
उनका कहना है कि यह सब मानव अंग बनाने के प्रयोग करते-करते उनके दिमाग में विचार आया कि यदि इस तकनीक का इस्तेमाल करके मानव अंग बनाए जा सकते हैं तो उसी तकनीक से मांस क्यों नहीं बनाया जा सकता। इस तकनीक से बना मांस पेटेंट संबंधी औपचारिकताओं और सरकारी अनुमति के बाद कुछ ही वर्षों में बाजार में उपलब्ध हो जाएगा।
इसे आप डिजाइनर नॉनवेज फूड भी कह सकते हैं। इसे पूरी तरह शाकाहारी तो नहीं कहा जा सकता मगर यह मांसाहारियों को कुछ हद तक जीव हत्या के अपराध बोध से मुक्ति दिलाने पाने में सहायक भी होगा।