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रिहा होगा मसर्रत‍, बढ़ाएगा भाजपा-पीडीपी की मुश्किल

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सुरेश डुग्गर

यह वाकई 'तू डाल-डाल, मैं पात-पात' की कहावत को चरितार्थ कर रहा है कि कोर्ट बार-बार अलगाववादी नेता मसर्रत आलम की रिहाई का आदेश देती है और राज्य की गठबंधन सरकार उसे किसी न किसी मामले में आरोपी बनाकर उसकी गिरफ्तारी का आदेश जारी कर देती है। श्रीनगर के मजिस्ट्रेट की अदालत ने गुरुवार मसर्रत आलम को जमानत दे दी, जिससे उसकी रिहाई का रास्ता साफ हो गया है। मसर्रत आलम सरकार विरोधी प्रदर्शनों के चलते साल 2010 से जेल से अंदर-बाहर होता रहा हैं। ऐसे में हालत यह है कि मसर्रत आलम गठबंधन सरकार के लिए गले की फांस बन गया है।
गौरतलब है कि हुर्रियत कॉन्‍फ्रेंस के नेता और मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मसर्रत आलम भट्ट को पीएसए के तहत गिरफ्तार किया गया था, लेकिन हाईकोर्ट ने मसर्रत पर लगे पीएसए को खारिज कर दिया था। फिलहाल मसर्रत आलम बारामुल्ला जेल में बंद है। मुस्लिम लीग के प्रवक्ता ने खबर की पुष्टि करते हुए कहा कि आज अदालत ने मसर्रत आलम को जमानत दे दी है और अब जल्द ही जमानत के कागजात जेल में जमा कराकर उनकी रिहाई करा ली जाएगी।
 
पिछले 26 सालों के अपने अलगाववादी नेता के जीवनकाल में 19 साल जेल में रहने वाले मसर्रत आलम को बीस दिनों के बाद फिर से रिहा करने का आदेश अदालत ने सुनाया है। उसके खिलाफ 50 मामले दर्ज किए गए थे और 34 बार पीएसए अर्थात जन सुरक्षा अधिनियम लागू किया गया था। कोर्ट ने हर बार उसकी रिहाई का आदेश पारित किया। नतीजतन अब यही कहा जा रहा है कि रिहा होने के बाद मसर्रत आलम एक बार फिर गठबंधन सरकार के लिए गले की फांस बनेगा।
 
अदालत ने प्रदेश की भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार को निर्देश दिया कि वह अलगाववादी नेता मसर्रत आलम को तत्काल रिहा करे। मसर्रत आलम को 2010 में कश्मीर घाटी में उत्पात के बाद जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत गिरफ्तार किया गया था। उस पर भारत विरोधी हिंसक प्रदर्शन करने का भी आरोप है। बता दें कि मसर्रत आलम को पहले भी कई बार अदालत से रिहा होकर दोबारा हिरासत में लिया जाता रहा है।
 
राज्य में जन सुरक्षा के लिए खतरा होने और संकट पैदा करने के आरोपों में आलम छह साल से लगातार सलाखों के पीछे था। साल 2010 में कश्मीर घाटी में उत्पात के बाद आलम को जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत गिरफ्तार किया गया था जिसके बाद से उसे जम्मू के पास कठुआ जेल में रखा गया था। इस उपद्रव में 120 से अधिक लोगों की जान चली गई थी।
 
आलम पर आरोप है कि उसके द्वारा भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के साथ लगी सीमा (नियंत्रण रेखा) पर तीन नागरिकों के कथित फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने के बाद भारत विरोधी हिंसक प्रदर्शन का आयोजन किया था। न्यायाधीश मुजफ्फर हुसैन अतर ने आलम के इस बार लगाए गए पीएसए हिरासत आदेश को 20 दिन पहले खारिज कर दिया था और फैसले में कहा गया था कि आलम को अविलंब रिहा किया जाए।
 
मसर्रत आलम को अलगाववादी हुर्रियत नेता सईद अली शाह गिलानी का बेहद करीबी माना जाता है। मसर्रत 2008-10 में राष्ट्रविरोधी प्रदर्शनों को लीड करता रहा है। उस दौरान पत्थरबाजी की घटनाओं में 120 लोगों की मौत हो गई थी। मसर्रत के खिलाफ देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने सहित कई मामले दर्ज थे। उसे चार महीनों की तलाश के बाद अक्टूबर 2010 में दबोचा गया था। मसर्रत पर संवेदनशील इलाकों में भड़काऊ भाषण देने के आरोप भी लग चुके हैं।
 
मसर्रत आलम को अक्‍टूबर 2010 में श्रीनगर के गुलाबबाग इलाके से 4 महीने की मशक्कत के बाद गिरफ्तार किया गया था। गिलानी के करीबी माने जाने वाले मसर्रत आलम पर दस लाख रुपए का इनाम भी रखा गया था। अब रिहाई के बाद आम आदमी के चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई देने लगी हैं। 

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