सूरत/ सिलवासा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को कहा कि उनकी सरकार ऐसा कानून बनाएगी, जिससे डॉक्टरों के लिए सस्ती जैनरिक दवाएं ही पर्ची पर लिखना अनिवार्य हो जाएगा।
उन्होंने लोगों से इस भ्रम को भी दूर करने का आहवान किया कि सस्ती जैनरिक दवाएं उतनी कारगर नहीं होतीं जितनी कि महंगी दवाएं। मोदी ने सिलवासा में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि सरकार ने करीब 800 दवाओं को सस्ता किया है और जगह-जगह सस्ती जैनरिक दवाओं के स्टोर खोले जा रहे हैं। जैनरिक और अन्य दवाओं में कोई फर्क नहीं है। ऐसा नहीं है कि सस्ती होने की वजह से ये खराब हैं। इस तरह के भ्रम के चक्कर मे मत पड़िए। सरकार ऐसी अफवाहों के जरिए गरीब और मध्यमवर्ग को लुटने नहीं देगी।
मोदी ने इससे पहले सूरत में 500 करोड़ की लागत से बने एक निजी अस्पताल के उद्घाटन के बाद कहा कि उनकी सरकार ने लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं दिलाने के लिए सस्ती दवाओं की उपलब्धता और जरूरी दवाओं के मूल्य तय करने समेत कई कदम उठाए हैं। इसी कड़ी में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के 15 साल बाद उनकी सरकार स्वास्थ्य नीति लेकर आई है। देश में स्वास्थ्य क्षेत्र में डॉक्टरों की कमी समेत कई समस्याएं थीं। मध्यम वर्ग के परिवार में एक भी व्यक्ति के बीमार हो जाने से परिवार को पूरा अर्थतंत्र गड़बड़ हो जाता है। मकान खरीदने और बेटी की शादी जैसे अन्य बेहद जरूरी काम रुक जाते हैं।
उन्होंने कहा कि वह समाज के एक ताकतवर तबके की नाराजगी मोल लेकर भी गरीब और मध्यम वर्ग के लिए स्वास्थ्य सुविधा बढ़ाने के प्रयास जारी रखे हुए हैं। उन्होंने 700 जरूरी दवाओं के दाम तय करने तथा हृदय रोग के लिए जरूरी स्टेंट की कीमत घटाने का काम किया है। फिर भी अभी कई डॉक्टर पर्चा लिखते हैं तो इस तरीके से लिख देते हैं कि मरीजों को महंगी दुकान पर जाना पड़ता है। पर जल्द ही वह ऐसा कानून बनाएंगे और व्यवस्था करेंगे कि डॉक्टरों के लिए सस्ती जैनरिक दवाएं लिखना जरूरी होगा।
मोदी ने अपने खास लहजे में कहा कि मै गुजरात में था तो बहुत लोगों को नाराज करता था। अब दिल्ली में गया हूं तो भी लोगों को नाराज करता रहता हूं। रोज एक काम ऐसा करता हूं जिससे कोई ना कोई नाराज हो जाए। अब दवा कंपनियां मुझसे नाराज हैं। उन्होंने अपने स्वच्छता अभियान को भी स्वास्थ्य से सीधे तौर पर जुड़ा बताया।
मोदी ने कहा कि आजादी के बाद से देश में ऐसा माहौल बन गया था कि सब कुछ सरकार को ही करना चाहिए जबकि पुरातन समय से समाज के काम जनशक्ति के जरिए करने की परंपरा थी। एक बार फिर यह भावना जोर पकड़ रही है। (वार्ता)