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2016 में मोदी ने देखा यह 'हसीन सपना', क्या 2017 में पूरा होगा...

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नृपेंद्र गुप्ता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम करने का अंदाज ही निराला है। वे जो भी करते हैं, शान से करते हैं। लोकसभा चुनाव से पहले कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ते हुए उन्होंने जनता को जो सपने दिखाए थे, उस दिशा में 2016 में उन्होंने कदम बढ़ा ही लिए। मोदी के नोटबंदी रूपी 50 दिवसीय महाअभियान का अंजाम क्या होगा यह तो 2017 में ही पता चलेगा। फिलहाल तो आम आदमी से लेकर आरबीआई तक सभी चकित भाव से बड़ी उम्मीदों के साथ प्रधानमंत्री मोदी के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। 
 
मोदीजी ने 8 नवंबर को अचानक 500 और हजार के नोट बंद कर आम आदमी को स्तब्ध कर दिया। ऐसे दौर में जब कई एटीएम केवल बड़े नोट ही उगल रहे थे, इतना बड़ा फैसला लोगों की समझ से परे था। न तो भाजपा को इसकी भनक थी न बैंकों को इस बारे में पता था। यहां तक की सरकार के बड़े मंत्रियों तक को इस बात का कोई इल्म नहीं था।  
 
उस दिन प्रधानमं‍त्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया तो उस दिन लोगों ने पहली बार सोने-चांदी की दुकानों पर इस कदर भीड़ देखी कि आंखें चौंधियां गई। वहां इस तरह सामान खरीदा जा रहा था मानो कर्फ्यू के दिनों में सब्जी। लोग बस गहने खरीदना चाहते थे, न तो उन्हें भाव से मतलब था न डिजाइन से। इसके बाद जब मोदी सरकार ने मनमाने भाव में सामान बेचने वाले जोहरियों पर शिकंजा कसा तो कई दिनों तक इनकी दुकानों पर ताले लटके नजर आए। 
 
इसी तरह काले धन को सफेद करने के लिए कई तरह के जतन किए गए। रोज नित नए तरीके खोजे गए और सरकार ने इन पर शिकंजा कसने का प्रयास किया। जन-धन खाते खोलने वालों के खातों में लक्ष्मी कृपा हो गई और देखते ही देखते इनमें करोड़ों रुपए आ गए। इन खातों में इतना पैसा बरसा कि सरकार और आरबीआई की भी आंखें खुली की खुली रह गई। सरकार को इन खातों से एक माह में दस हजार से ज्यादा रुपए निकालने पर रोक लगाने का कठोर फैसला करना पड़ा। लगे हाथों मोदीजी ने भी एक सभा में इन खाताधारियों से कह दिया कि पैसे मत निकालना, मैं यह धन आपको दिलाने का कोई रास्ता खोज रहा हूं।
 
इस बीच काले धन वालों ने बैंककर्मियों पर ही डोरे डालना शुरू कर दिया। जिन बैंककर्मियों के हाथों में मोदीजी के अभियान की कमान थी उनमें से कई खुद ही काले धन को सफेद (करेंसी चेंज) करने में जुट गए। कहीं बैंक अधिकारियों ने परिजनों के पैसों को बदला तो कहीं बदले में भारी मुनाफा भी कमाया। एक्सिस बैंक के मैनेजरों ने बदले में सोने की ईंटें ही ले ली। सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े हो गए। देश में जगह-जगह छापेमारी शुरू हो गई और बड़ी संख्या में 2000 और 500 के नए नोट बरामद होने लगे। 
 
हवाई जहाज, रेल, कार, होटल, घर, मंदिर सभी जगहों से भारी मात्रा में नकदी की खबरें आने लगी। कई जगहों से पुराने नोटों को जलाने की भी खबरें मिल रही थी। सरकार ने यह दावा किया कि इस कदम से आतंकवाद, नक्सलवाद और अपराध जगत पर शिकंजा कसा जा रहा है।
 
आम आदमी खुद भी कम परेशान नहीं था। वह कभी बैंकों की लाइन में लगता तो कभी एटीएम पर पैसों की तलाश में भटकता दिखाई दिया। उसे कभी नोटों को बदलने की जल्दी थी तो कभी वह अपने पास मौजूद बड़े नोटों को बैंकों में जमा कर एक बार में ही इस झंझट से मुक्त होने का प्रयास करता दिखाई दिया। देखते ही देखते इतनी बड़ी संख्या में 500 के नोट जमा हुए हैं उनसे सरकार और आरबीआई की नींद उड़ गई है। बैंकों के सामने लगी अनुशासनबद्ध लंबी कतारें इस बात का सबूत है कि लोग इस फैसले में सरकार के साथ है। हालांकि वे इसे लागू करने के तरीके पर जरूर असंतुष्ट दिखाई देते हैं। 
 
मोदी के लिए आने वाले 20 दिन बड़े कठिन है अगर इस दौरान उन्होंने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त कर लिया तो वे हिंदुस्तानियों के दिलों पर राज करेंगे। देश कालाधन, भ्रष्टाचार जैसी तेजी से फैलने वाली बीमारियों से मुक्त हो जाएगा। मोदी की कड़वी दवा अगर काम कर गई तो हिंदुस्तान ही नहीं वे दुनिया के सबसे शक्तिशाली नेता कहलाएंगे और उस समय ट्रंप नहीं मोदी पर सबकी नजरें होगी। हालांकि इस बात का फैसला 50 दिन में नहीं 2017 में होगा। उस समय पता चलेगा कि अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर हुआ है? देश विकास के पथ पर चलेगा या निवेशक सरकार से दूरी बनाने का प्रयास करेंगे इस सवाल का जवाब भी भविष्य के गर्भ में छुपा है।    
 

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