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मोदी मैजिक और लोकप्रियता ढलान पर

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, मंगलवार, 16 सितम्बर 2014 (12:01 IST)
बिहार और कर्नाटक के उप चुनावों के बाद उत्तर प्रदेश और गुजरात और अन्य राज्यों  के उप चुनावों ने यह बात स्पष्ट कर दी है ‍कि जब देश के लिए आम चुनावों और राज्यों के लिए चुनावों की बात आती है तो मतदाताओं का निर्णय बहुत परिपक्व और अलग  होता है और वह लम्बे समय तक किसी एक पार्टी या इसके नेता के जादू के मोहपाश में बंधा नहीं रहता है। आम चुनावों में पूरे देश में जहां भाजपा को भारी सफलता मिली थी लेकिन तीन सप्ताह पहले बिहार और कर्नाटक के उप चुनावों ने यह बात स्पष्ट कर दी है कि भाजपा के विरोधी दलों की उम्मीदें पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई हैं और वे अपनी खोई जमीन फिर से वापस पा सकते हैं। कुछ दिनों पहले 33 विधानसभा और तीन लोकसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए मतदान हुआ था और मंगलवार को इनके नतीजे से देश की सबसे बड़ी पार्टी, भाजपा, को तगड़ा झटका है।   
 
दस राज्यों में लोकसभा की तीन और विधानसभा की 33 सीटों पर हुए उपचुनावों की मतगणना मंगलवार सुबह आठ बजे शुरू हुई। मतगणना के बाद के चुनाव रुझानों से पता लगता है कि 33 विधानसभा सीटों में से 10 पर भाजपा, 9 पर कांग्रेस और 9 पर सपा को बढ़त मिल रही है। इसका अर्थ है कि कांग्रेस और सपा को खोया जनाधार फिर से हासिल होने लगा है। इन नतीजों से यह भी साफ हो गया है कि भाजपा को उत्तरप्रदेश और गुजरात में झटका लगना तय है। उत्तरप्रदेश में सपा को 8 और भाजपा को 3 सीट पर बढ़त हासिल है जबकि पिछली बार सभी 11 सीटों पर भाजपा का कब्जा था। इससे यह निष्कर्ष निकलता नजर आ रहा है कि मोदी की लोकप्रियता और उनका चुनावी जादू फीका पड़ने लगा है। 
 
गुजरात में भाजपा 6 और कांग्रेस 3 सीटों पर आगे है और इसका सीधा सा अर्थ है कि गुजरात में कांग्रेस को फिर से जमीन मिलने लगी है और मोदी का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना उनके अपने ही गृह राज्य से टूटने लगा है। इसी तरह राजस्थान में प्रचंड बहुमत हासिल कर सत्ता में आई भाजपा की राजे सरकार का कामकाज लोगों को प्रभावित नहीं कर सका है और राज्य की 4 में से 3 पर कांग्रेस और 1 पर ही भाजपा  को बढ़त हासिल है। यानी राज्य में कांग्रेस का प्रभाव बढा है और राजे सरकार से लोग खुश नहीं हैं।  
 
गुजरात में मणिनगर सीट पर भाजपा को बढ़त हासिल है और पार्टी यह सीट जीत ही लेगी लेकिन विचारणीय है कि यह सीट प्रधानमंत्री मोदी के इस्तीफा देने से खाली हुई थी। इसी तरह अगर वडोदरा लोकसभा सीट पर भाजपा को बढ़त मिली हुई है और पार्टी यह सीट जीत भी सकती है लेकिन यह मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का गृह राज्य है और इसे एक लम्बे समय से भाजपा का मजबूत गढ़ समझा जाता रहा है। मेडक लोकसभा सीट पर टीआरएस आगे है और पार्टी अगर जीत भी जाती है तो यह लोगों की स्वाभा‍विक प्रतिक्रिया है। मैनपुरी में मुलायम के पोते तेजप्रताप यादव आगे चल रहे हैं और यह स्थिति बतलाती है कि मुलायम सिंह की अपने निर्वाचन क्षेत्र पर पकड़ बरकरार है और उत्तर प्रदेश से जातिवादी राजनीति को समाप्त करना भाजपा के बस की बात नहीं है। उत्तर प्रदेश के मतदाताओं की नजर में यह अब भी साम्प्रदायिक पार्टी की छवि से मुक्त नहीं हो सकी है।  
 
इन उपचुनावों में भाजपा को 'मोदी मैजिक' चलने की उम्मीद रही है लेकिन चुनावों से यह साफ हो गया है कि बिहार और उत्तरप्रदेश की जातिवादी राजनीति के सामने भाजपा लव जिहाद और महंत आदित्यनाथ, साक्ष‍ी महाराज जैसे सांसदों के बयानों से लाभ लेने  की हालत में नहीं आ सकती है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में बिहार और उत्तराखंड के उपचुनावों में भी भाजपा को करारा झटका लगा था। उत्तराखंड में कांग्रेस ने जहां तीनों सीटों पर जीत दर्ज की थी, वहीं बिहार में आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस का 'महागठबंधन' बीजेपी और एलजेपी के गठजोड़ पर भारी पड़ा था। 
 
मोदी म‍ैजिक में कमी का सबसे बड़ा उदाहरण वडोदरा संसदीय सीट है जहां पर मोदी ने मात्र तीन माह पहले ही 5,70,000 वोटों से जीत हासिल की थी और तब वहां मतदान का प्रतिशत 71 था लेकिन शनिवार को हुए मतदान में यह आंकड़ा केवल 45.3 प्रतिशत रह गया है। हालांकि इस चुनाव में शहर के उप महापौर और भाजपा प्रत्याशी रंजन भट्‍ट चुनाव जीत भी जाते हैं लेकिन उनकी जीत का अंतर काफी कम होगा। राज्य विधानसभा की नौ सीटों में से भाजपा केवल छह सीटें ही जीत सकी है और राज्य में कांग्रेस को तीन सीटें मिलना यह दर्शाता है कि लोगों का भाजपा से मोहभंग होना शुरू हो गया है। इन चुनावों से यह भी साफ है ‍कि शहरी क्षेत्रों में भले ही भाजपा का असर बना हुआ हो लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के मतदाताओं ने कांग्रेस, सपा और अन्य दलों की उम्मीदों को नए पंख दिए हैं। 
 
उत्तर प्रदेश के परिणाम भाजपा के लिए और भी खराब हो सकते थे अगर इस मुकाबले में मायावती की बसपा भी होती। जो दलित वोट भाजपा को मिले हैं, वे बसपा की झोली में जा सकते थे। राज्य में बसपा का 20 फीसदी कोर वोट बैंक के ज्यादातर वोट भाजपा को मिले हैं और तब भी इसकी हालत ठीक नहीं है। हालांकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अभी भी सपा और भाजपा का विकल्प बनने की स्थिति में नहीं है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि कांग्रेसियों की विभाजनकारी राजनीति के पाप अभी भी उस पर भारी पड़ रहे हैं वरना उसे कमंडल (भाजपा) के सामने मंडल मतों का लाभ मिल सकता था। 
 
तीसरी लोकसभा सीट टीआरएस के नेता के. चंद्रशेखर राव के इस्तीफा देने से खाली हुई थी और इस बार भी सीट उन्हीं की पार्टी के पास रहना तय है। यह तय है कि टीआरएस के प्रत्याशी की जीत का अंतर उतना नहीं होगा जितना कि चंद्रशेखर राव का था। विदित हो कि यह सीट राव ने चार लाख के भारी अंतर से जीती थी। बंगाल के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने एक सीट जीतकर साबित कर दिया है कि यह राज्य में माकपा और वामपंथियों के खाली स्थान को भरने के लिए तैयारी कर रही है। दूसरी सीट पर तृणमूल कांग्रेस की जीत से माना जा सकता है कि ममता दीदी पर लोगों का विश्वास बना हुआ है। बंगाल में भाजपा का चुनावी लाभ यह भी संदेश देता है कि इसे लोकसभा चुनावों में अगर 16 फीसदी वोट मिले थे तो यह तीर में तुक्का नहीं था वरन यह राज्य में अपनी जड़ें जमा रही है। 

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