नई दिल्ली। वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोहसिना किदवई ने 27 साल के बाद अपनी आत्मकथा माई लाइफ इन इंडियन पॉलिटिक्स में खुलासा किया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष पीवी नरसिंहराव के खिलाफ विद्रोह कर पार्टी से अलग होने वाले गुट तिवारी कांग्रेस का हिस्सा बनना उनकी भूल थी।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बेहद करीबी रहीं किदवई ने अपनी आत्मकथा के कांग्रेस से अलग होने के अनुभव अध्याय में यह अफसोस भी जताया है कि उन्होंने वरिष्ठ नेता और गांधी परिवार के करीबी समझे जाने वाले माखन लाल फोतेदार की बातों पर यकीन किया और बगैर जांचे-परखे यह कदम उठाया।
किदवई ने यह खुलासा ऐसे समय किया है जब कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से उबरने की कोशिशों में जुटी हुई है और अगले कुछ दिनों में उसका नया अध्यक्ष चुना जाना है।
किदवई ने लिखा है कि जब अर्जुन सिंह, नटवर सिंह और अन्य नेताओं ने 1995 में नरसिंह राव के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया था तब कांग्रेस के तालकटोरा अधिवेशन से पहले फोतेदार उनसे मिलने आए थे। उन्होंने दावा किया था कि सोनिया गांधी राव साहब से खुश नहीं हैं तथा चाहती हैं कि किदवई अर्जुन सिंह और नटवर सिंह गुट का साथ दें। यह वो दौर था जब वह अपने भाई के स्वास्थ्य को लेकर घरेलू समस्याओं में उलझी हुई थीं।
किदवई ने पुस्तक में लिखा है कि मैंने फोतेदार जी की बातों पर भरोसा कर लिया और अफसोस है कि मैंने व्यक्तिगत रूप से सोनिया जी से इस बारे में नहीं पूछा।
उन्होंने लिखा है कि आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं तो मुझे लगता है कि मुझे उस अलग हुए समूह, जिसे कांग्रेस (तिवारी) कहा गया, का हिस्सा नहीं बनना चाहिए था। जो अहम मुद्दे थे, उनके बारे में कई वरिष्ठ नेताओं के साथ अगर हम पार्टी में ही रहकर लड़ते तो शायद भविष्य की राजनीति कांग्रेस के लिए बेहतर और उज्ज्वल होती।
किदवई अपनी आत्मकथा में लिखती हैं कि 1995 में वास्तव में जो हुआ, उसके बारे में सोनिया गांधी ने कभी भी कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की और 1998 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि जो भी धड़े कांग्रेस से अलग हो गए थे, वे वापस उसका हिस्सा बनें।
सोनिया जी ने अध्यक्ष बनने से पहले ही तिवारी कांग्रेस सहित माधवराव सिंधिया और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस बंगरप्पा के नेतृत्व वाले धड़ों की सम्मान के साथ कांग्रेस में वापसी सुनिश्चत की। सोनिया गांधी मार्च 1998 में अध्यक्ष बनी थीं और उनसे पहले सीताराम केसरी पार्टी के अध्यक्ष थे।
Edited by : Nrapendra Gupta