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सस्ते कर्ज की उम्मीदों को झटका

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मुंबई , बुधवार, 7 दिसंबर 2016 (22:34 IST)
मुंबई। दिसंबर कर्ज सस्ता होने की तमाम उम्मीदों को झटका देते हुए रिजर्व बैंक ने बुधवार को नीतिगत दर में कोई बदलाव नहीं किया। हालांकि नोटबंदी के बाद हुई मौद्रिक नीति की इस पहली समीक्षा में केन्द्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष के आर्थिक वृद्धि अनुमान को आधा प्रतिशत घटाकर 7.1 प्रतिशत कर दिया।
उद्योग, व्यापार जगत और कई आर्थिक शोध संस्थाओं ने इस मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दर में 0.25 प्रतिशत कटौती का अनुमान लगाया था। कई बैंकरों ने भी माना था कि केन्द्रीय बैंक रेपो दर में कटौती कर सकता है, लेकिन सभी को निराशा हाथ लगी। केन्द्रीय बैंक ने फौरी नीतिगत दर रेपो को 6.25 प्रतिशत पर बरकरार रखा। इसके साथ ही रिवर्स रेपो दर भी 5.75 प्रतिशत पर बनी रहेगी।
 
चालू वित्त वर्ष की पांचवीं द्वैमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा की घोषणा करते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा कि नोटबंदी का फैसला जल्दबाजी में नहीं लिया गया है और बैंकिंग तंत्र में नए  नोटों की आपूर्ति बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने जनता से भी अपील की है कि वह नए नोटों को अपने पास जमा नहीं करें।
 
गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की दो दिन चली बैठक के अंतिम दिन आज इसकी घोषणा की गई। एमपीसी के तहत होने वाली यह दूसरी मौद्रिक नीति समीक्षा है। पहली समीक्षा अक्टूबर में हुई थी।
 
नोटबंदी के बाद आपूर्ति बाधित होने से चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि नीचे आ सकती है इसे स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि अल्पकालिक घटनाक्रम जिनका परिदृश्य पर असंगत प्रभाव पड़ता है वह मौद्रिक नीति उपायों के मामले में सतर्कता बरतने को कहते हैं। 
 
रिजर्व बैंक ने कहा, स्थिति को देखते हुए यह देखना समझदारीभरा होगा कि ये घटनाक्रम किस प्रकार आगे बढ़ते हैं और परिदृश्य पर इनका क्या असर पड़ता है। इस लिहाज से इस समीक्षा में नीतिगत दर रेपो को यथावत रखा गया है। 
 
हालांकि सामंजस्य बिठाने की हमारी नीति बनी रहेगी। वित्त मंत्रालय ने मौद्रिक नीति समिति के फैसले को ठोस और बढ़िया बताया। मंत्रालय ने कहा कि इससे अनिश्चित वैश्विक परिवेश में विदेशी पूंजी का देश से बाहर निकलना रूकेगा।
 
रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता में छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति ने एकमत से रेपो दर को 6.25 प्रतिशत पर बनाए रखने का फैसला किया है। बहरहाल वित्त मंत्रालय ने समिति के निर्णय से पूरी तरह संतुष्ट दिखाई दिया।
 
देश के उद्योग जगत ने रिजर्व बैंक के फैसले पर निराशा जताई है। उद्योग जगत रेपो दर में 0.5 प्रतिशत तक कटौती की उम्मीद कर रहा था। नोटबंदी के बाद बैंकों में भारी जमा आने से उद्योगों को दरों में कटौती की उम्मीद थी। उनका अनुमान था कि नोटबंदी के प्रभाव से उद्योग और व्यापार में आई गिरावट को दूर करने के लिए  ब्याज दरें कम हो सकतीं हैं।
 
बैकरों का मानना है कि आने वाले दिनों में ब्याज दरों में कमी आ सकती है। रिजर्व बैंक ने बैंकों के 100 प्रतिशत नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को 10 दिसंबर से हटा दिया है। भारतीय स्टेट बैंक की चेयरपर्सन अरंधति भट्टाचार्य ने कहा, सीआरआर की बढ़ी सीमा और बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) की सीमा बढ़ाने से बैंकों को अपनी तरलता को बेहतर ढंग से व्यवस्थित करने में मदद मिलेगी और तंत्र में वित्तीय स्थिरता आए गी।’’
 
रिजर्व बैंक ने 2016-17 की चौथी तिमाही में मुद्रास्फीति के पांच प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, हालांकि इसके उपर जाने का जोखिम भी बताया गया है। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि यह जोखिम अक्तूबर की मौद्रिक समीक्षा से कम होगा।
 
केन्द्रीय बैंक ने कहा है कि सरकारी कर्मचारियों को आवास किराया भत्ते का पूरा प्रभाव इसमें शामिल नहीं किया गया है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों में अभी आवास भत्ते को पूरी तरह अमल में नहीं लाया गया है, इसलिए  मुख्य मुद्रास्फीति में इसे शामिल नहीं किया गया है।
 
नोटबंदी के मुद्दे पर समीक्षा में कहा गया है कि बड़े मूल्यवर्ग के नोटों को हटाए  जाने और नए  नोट लाने का नवंबर दिसंबर के दौरान औद्योगिक गतिविधियों पर कुछ असर पड़ सकता है। इस दौरान वेतन भुगतान और कच्चे माल की खरीद में देरी की वजह से ऐसा हो सकता है। हालांकि इस स्थिति के पूरे आकलन की अभी प्रतीक्षा है। केन्द्रीय बैंक ने इसके साथ ही चालू वित्त वर्ष का आर्थिक वृद्धि अनुमान भी पहले के 7.6 प्रतिशत से घटाकर 7.1 प्रतिशत कर दिया।
 
केन्द्रीय बैंक ने यह भी कहा है कि बंद किए गए  500, 1,000 रुपए के 14.5 लाख करोड़ रुपए के पुराने नोटों में से 12 लाख करोड़ रुपए के नोट बैंकों में जमा किए  जा चुके हैं। सरकार ने 8 नवंबर को 500, 1,000 के पुराने नोट अमान्य कर दिए थे। ऐसे नोटों को 30 दिसंबर को बैंकों में जमा कराने का समय दिया गया है। इससे बैंकों के बाहर तब से लंबी कतारें लगी हुई हैं। लोग पुराने नोट जमा कराने और नए नोट निकालने के लिए  लंबी कतारों में लगे हुए  हैं। इससे आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। 
 
यह पूछे जाने पर कि रिजर्व बैंक का नीतिगत दर को यथावत रखने का फैसला क्या अमेरिका के फेडरल रिजर्व की दरों में वृद्धि की उम्मीदों पर आधारित है? जवाब में पटेल ने कहा, हमारे फैसले का इससे कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने कहा कि वित्तीय बाजारों में फेडरल की पहल को पहले ही खपा लिया गया है। 
 
उन्होंने आगे कहा, हम और आंकड़ों की प्रतीक्षा करेंगे और उसे बाद विचार करेंगे, आने वाले आंकड़ों से यदि टिकाऊ आधार पर हमें लगेगा कि कुछ गुंजाइश है तो हम इस पर गौर करेंगे। वित्त मंत्रालय ने कहा है कि वैश्विक अनिश्चितता के दौर में दरों में कटौती से विदेशी निवेशक अपना पैसा निकालने में और तेजी से कदम उठाएंगे।
 
आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने कहा, अमेरिका फेडरल दर के निर्णय को लेकर शायद अनिश्चतता बनी हुई है, यह जल्द ही हो सकता है। इसलिए अंतररराष्ट्रीय क्षेत्र की अनिश्चितता को ध्यान में रखते हुए रिजर्व बैंक ने प्रतीक्षा करो और देखो की नीति को अपनाया है। 
 
मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने कहा, रिजर्व बैंक का यह ठोस और अच्छा फैसला है। ठोस इसलिए  कि यह लोग जो सोच रहे थे उससे हटकर है। रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा कि यह द्वैमासिक समीक्षा बढ़ी हुई अनिश्चितता के माहौल में हुई है। 
 
अमेरिका में मौद्रिक नीति में सख्ती लाई जाने की पहल को देखते हुए वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव बना हुआ है। नीतिगत दर को स्थिर रखने के रिजर्व बैंक के फैसले से बाजार चकित रह गया है और सेंसेक्स जो कि शुरू में बढ़ रहा था बाद में 156 अंक गिरकर 26,237 अंक रह गया। (भाषा) 

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