देहरादून। देहरादून स्थित प्रतिष्ठित वन अनुसंधान संस्थान ने गंगा को अविरल और निर्मल बनाने के लिए 'फॉरेस्ट्री इंटरवेंशन फॉर गंगा' परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) में इसके तट पर स्थित पांचों राज्यों में उनके प्राकृतिक परिदृश्य के आधार पर 32 विभिन्न मॉडल तैयार किए हैं।
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी 'नमामि गंगे' योजना के अंतर्गत वानिकी हस्तक्षेप हेतु बनाई गई इस डीपीआर में संस्थान ने 2,525 किलोमीटर लंबी गंगा पर बढ़ रहे जैविक दबाव को कम करने के लिए उसके उद्गम स्थल उत्तराखंड से पश्चिम बंगाल तक हर जगह के स्थानीय प्राकृतिक परिदृश्य के हिसाब से अलग-अलग मॉडल तैयार किए हैं जिनमें मृदा संरक्षण, जल संरक्षण, खरपतवार नियंत्रण, पौधारोपण और पारिस्थितिकीय पुनर्जीवन जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को भी शामिल किया गया है। उत्तराखंड के गोमुख से निकलने वाली गंगा उत्तरप्रदेश, बिहार और झारखंड से गुजरते हुए पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है और बंगाल की खाड़ी में जाकर विलीन हो जाती है।
वानिकी हस्तक्षेप की 2,293 करोड़ रु. की इस परियोजना की डीपीआर से जुडे वैज्ञानिकों का दावा है कि इस तरह के मॉडल लागू किए जाने से इन राज्यों की कृषि उत्पादकता भी बढ़ेगी। इस डीपीआर में गंगा के किनारे बसे राज्यों में रिवर फ्रंट बनाए जाने पर भी जोर दिया गया है।
डीपीआर में कानपुर तथा अन्य औद्योगिक शहरों में लगे उद्योगों को भी अपने यहां खास प्रजाति के पेड़ लगाने को कहा गया है ताकि उनके जरिए गंगा में होने वाले प्रदूषण पर अंकुश लग सके। इस डीपीआर में नदी तट वन्यजीव प्रबंधन पर भी जोर दिया गया है जिसके तहत लगातार कम होते जा रहे डॉल्फिन जैसे जीवों के संरक्षण पर भी ध्यान दिया जा सके।
इस डीपीआर को लागू करने के लिए मुख्य कार्यदायी संस्था उन राज्यों के वन विभागों को बनाया गया है जिनसे होकर गंगा बहती है। इस परियोजना की निगरानी भी इन्हीं राज्यों के वन विभाग करेंगे। हालांकि संस्थान का कहना है कि किसी भी राज्य द्वारा इस संबंध में मदद मांगे जाने पर संस्थान हर तरह से तैयार है।
इस 2, 293 करोड़ रु. की परियोजना में 5 राज्यों में से सबसे ज्यादा 8,85.91 करोड़ रु. उत्तराखंड में खर्च होंगे जिसमें 54,855.43 हैक्टेयर क्षेत्र वन आच्छादित होगा। दूसरा सबसे बडा क्षेत्र पश्चिम बंगाल का है, जहां 35,432 हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 547.55 करोड़ रु. खर्च किए जाएंगे। वर्ष 2016 की शुरुआत में आरंभ हो चुकी यह परियोजना 5 राज्यों में 110 वन प्रभागों में लागू की जाएगी, वैसे सभी 5 राज्यों में मुख्य काम शुरू होने बाकी हैं।
इस डीपीआर को बनाने के लिए संस्थान ने नदी तट पर स्थित 5 राज्यों में विस्तृत बातचीत प्रक्रिया को अपनाने के अलावा मल्टी डिसिप्लिनेरी एक्सपर्टाइज (विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों) की सहायता भी ली। इसके लिए रिमोट सेंसिंग और जीआईएस तकनीक का भी प्रयोग किया गया ताकि हर जगह की जरूरत के हिसाब से सटीक पौधारोपण मॉडल बनाए जाएं।
इस संबंध में संस्थान की निदेशक डॉ. सविता ने कहा कि डीपीआर के लागू होने से पौधारोपण की प्रक्रिया को एक नया आयाम मिलेगा जिससे स्थानीय समुदाय के हित भी सुरक्षित होंगे। उनका मानना है कि इस परियोजना से मिलने वाली सफलता अन्य नदियों के पुनर्जीवन के लिए भी मॉडल का काम करेगी। (भाषा)