नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि 1994 के जासूसी कांड में इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को अनावश्यक रूप से गिरफ्तार करके परेशान किया गया और मानसिक यातना दी गई। 76 वर्षीय नारायणन को 50 लाख रुपए मुआवजा देने का निर्देश दिए। इसके साथ ही न्यायालय ने इस मामले में संलिप्त केरल पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्ययमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चन्द्रचूड़ की पीठ ने केरल सरकार को 8 सप्ताह के भीतर इसरो के पूर्व वैज्ञानिक को मुआवजे की इस राशि का भुगतान करने के आदेश दिए हैं। पीठ ने इसके साथ ही जासूसी कांड में वैज्ञानिक नारायणन को फंसाने की घटना की जांच के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश डीके जैन की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय दल गठित किया है।
नारायणन ने केरल उच्च न्यायालय के उस फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी जिसमें उसने कहा था कि राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक सिबी मैथ्यू और सेवानिवृत्त पुलिस अधीक्षक केके जोशुआ और एस. विजयन के खिलाफ किसी कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है। इस वैज्ञानिक की गैरकानूनी गिरफ्तारी के लिए सीबीआई ने इन अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया था।
इसरो का 1994 का यह जासूसी कांड भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के बारे में चुनिंदा गोपनीय दस्तावेज 2 वैज्ञानिकों और मालदीव की 2 महिलाओं सहित 4 अन्य द्वारा दूसरे देशों को हस्तांतरित करने के आरोपों से संबंधित है। शुरू में इस मामले की जांच राज्य पुलिस ने की थी, परंतु बाद में इसे केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दिया गया था जिसने पाया कि ऐसा कोई जासूसी कांड हुआ ही नहीं था।
यह प्रकरण राजनीतिक खींचतान का नतीजा था जिसमें कांग्रेस के एक वर्ग ने तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. के. करुणाकरण को इस मुद्दे पर अपना निशाना बनाया और जिस वजह से उन्हें बाद में अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
शीर्ष अदालत ने 1998 में इस मामले में आरोपमुक्त किए गए नारायणन और अन्य को 1 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश राज्य सरकर को दिया था। नारायणन ने बाद में इस मामले में उन्हें पहुंची मानसिक यंत्रणा और यातना के लिए राज्य सरकार से मुआवजे की मांग करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में याचिका दायर की थी। आयोग ने नारायणन को मार्च 2001 में 10 लाख रुपए का अंतरिम मुआवजा देने का आदेश दिया था।