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मोदी... मोदी... और सिर्फ मोदी

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हमें फॉलो करें नरेन्द्र मोदी
वर्ष 2014 भारतीय राजनीति के लिए कई मायनों में खास रहा है। इस साल के सत्ता के कई 'किले' धराशायी हुए तो कई निर्मित भी हुए। भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी का राष्ट्रीय राजनीति में उदय हुआ और निर्विवाद रूप से उनका 'आभामंडल' पूरे साल जगमगाता रहा। सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के लिए यह साल काफी बुरा सिद्ध हुआ। इसकी भरपाई में कितना वक्त लगेगा, यह तो भविष्य ही बताएगा। ...लेकिन, भाजपा इस साल पूरे दमखम के साथ उभरी और इस भगवा पार्टी ने ये संकेत भी छोड़े हैं कि उसके 'अश्वमेध का घोड़ा' इसी तरह आगे बढ़ता रहेगा।
लोकसभा चुनाव के साथ ही नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर सितारे की तरह उभरे और उनकी कारगर रणनीति और रैलियों में मतदाताओं को खुद से जोड़ने की कला ने खासा असर डाला और इसका फायदा उन्हें वोट के रूप में भी मिला। हिन्दी भाषी राज्यों में तो भाजपा ने लोकसभा चुनाव में अन्य दलों का लगभग सफाया ही कर दिया। 
 
543 सदस्यीय लोकसभा में अकेले दम पर भाजपा 282 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही। 1984 के बाद के 30 वर्षों में भाजपा ऐसी पहली पार्टी बन गई है जिसने अपने दम पर बहुमत हासिल किया है। 1984 में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 400 से अधिक सीटें जीती थीं। इसके साथ ही स्वतंत्रता के बाद भाजपा ऐसी गैरकांग्रेसी पार्टी भी बनी जिसने पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में सरकार बनाई। 
 
हिन्दी भाषी राज्यों में मोदी की लहर साफ दिखाई दी। उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, दिल्ली, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की कुल 225 सीटों में से 190 पर भाजपा ने काबिज होकर इन राज्यों से न सिर्फ कांग्रेस बल्कि सपा, बसपा, जदयू और राजद जैसे क्षेत्रीय दलों का भी सफाया ही कर दिया। मोदी लहर ने गुजरात के अलावा महाराष्ट्र, कर्नाटक और असम जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में भी असर दिखाया। पिछली लोकसभा में भाजपा के 116 सांसद ही थे।
 
लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत भी बढ़ा। उसे कुल 31 फीसदी वोट मिले। इस चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन इतना खराब रहा कि उसे 44 सीटें ही मिलीं और वह विपक्ष का नेता बनने की पात्रता भी हासिल नहीं कर पाई। इस बार कुल 66.4 फीसदी मतदान हुआ, जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सर्वाधिक है।
 
कांग्रेस देश के 10 फीसदी हिस्से में ‍ही सिमटी... पढ़ें अगले पेज पर....
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इस वर्ष लोकसभा समेत जितने भी विधानसभा चुनाव हुए उनमें सर्वाधिक नुकसान यदि किसी पार्टी को हुआ तो वह कांग्रेस है। आजादी के बाद पहला मौका है, जब कांग्रेस देश के 10 फीसदी हिस्से में सिमट गई। भाजपा की 10 राज्यों में सरकार है। इनमें 9 बड़े राज्य हैं, जबकि एकमात्र गोवा छोटा राज्य है। दूसरी ओर कांग्रेस की स्थिति बेहद खराब है। कांग्रेस की सत्ता सिर्फ 9 राज्यों में है, उनमें 8 छोटे राज्य हैं। बड़े राज्य के नाम पर उसके पास सिर्फ कर्नाटक है। 
 
लोकसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक सफलता का श्रेय भाजपा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही देती है। भाजपा के दावे को मानें तो नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए देशभर में 3 लाख किलोमीटर से अधिक का सफर किया, जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। भाजपा ने इसे भारत के चुनावी इतिहास का सबसे बड़ा जनसंपर्क बताया। मोदी ने 25 राज्यों में 437 जनसभाओं को संबोधित किया। साथ ही 3डी रैलियों के जरिए तकनीक का भी बखूबी इस्तेमाल किया। 
 
जीडीपी की बाद करें तो 46 फीसदी जीडीपी अब भाजपा शासित राज्यों में है। सालभर पहले जीडीपी का 50 फीसदी हिस्सा कांग्रेस के हाथ में था, जो इस साल अब 13.57 फीसदी ही रह गया है। देश की 39 फीसदी आबादी भाजपा शासित राज्यों में है, जबकि कांग्रेस शासित राज्यों में यह आंकड़ा 10 फीसदी ही सिमटकर रह गया है। हालांकि भाजपा लाख कोशिशों के बाद भी देश की मुस्लिम आबादी में अपनी पैठ नहीं बना पाई। 
 
लोकसभा चुनाव में छोटे दलों का सफाया ही हो गया। उत्तरप्रदेश की 80 सीटों में से भाजपा 71 पर जीतने में सफल रही, वहीं सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी मात्र 5 सीटें ही हासिल कर पाई, जबकि बसपा तो 1 सीट भी नहीं जीत पाई। यही हाल बिहार में रहा, जहां सत्तारूढ़ जनता दल यू 2 सीटों पर सिमट गया, जबकि कांग्रेस भी 2 ही सीटें हासिल कर पाई। यहां भाजपा ने सर्वाधिक 22 सीटें जीतीं।
 
इस वर्ष 4 राज्यों से हुई कांग्रेस की विदाई... पढ़ें अगले पेज पर....
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विधानसभा चुनाव की बात करें तो भी कांग्रेस के लिए यह वर्ष काफी बुरा ही साबित हुआ। महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा, साथ ही इन राज्यों में उसे सत्ता गंवानी पड़ी। महाराष्ट्र और हरियाणा में जहां कांग्रेस के मुख्‍यमंत्री थे, वहीं झारखंड और जम्मू-कश्मीर में उसके सहयोग से सरकार चल रही थी।
 
महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए काफी सुखद रहे, क्योंकि दोनों ही राज्यों में पहली बार भाजपा का मुख्‍यमंत्री बना। हालांकि महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ उसका वर्षों पुराना गठबंधन विधानसभा चुनाव के ठीक पहले टूट गया, लेकिन इसका फायदा भी भाजपा को ही मिला। इस चुनाव में शिवसेना अपनी सहयोगी भाजपा को जितनी सीटें देने को तैयार नहीं थी, उससे कहीं ज्यादा सीटें भाजपा ने अपने दम पर जीत लीं। भाजपा 288 सदस्यीय विधानसभा में अपने कुछ सहयोगियों के साथ 123 सीटें जीतीं और भाजपा के देवेन्द्र फडनवीस राज्य के मुख्‍यमंत्री बने। गठबंधन तो यहां कांग्रेस और राकांपा का भी टूटा जिसका खामियाजा दोनों ही दलों को उठाना पड़ा। 
 
हरियाणा में भी मोदी लहर और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की कुशल रणनीति का असर दिखाई दिया। यहां भगवा पार्टी ने 47 सीटें जीतीं और पार्टी ने जाट बहुल इस प्रदेश में गैर जाट मनोहर लाल खट्‍टर को मुख्‍यमंत्री बनाया। यहां कांग्रेस को 90 में से 15 सीटें ही मिलीं। 
 
झारखंड चुनाव में भी भाजपा को बड़ी सफलता मिली। यहां पार्टी ने अपने सहयोगी आजसू के साथ मिलकर 42 सीटें हासिल कीं। यहां भी कांग्रेस का जनाधार खिसका और उसे सिर्फ 6 सीटें ही प्राप्त हुईं। 81 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा का मत प्रतिशत भी बढ़ा। यहां उसे 31.3 प्रतिशत मत मिले और आजसू के सहयोग से यह आंकड़ा 35 फीसदी तक पहुंच गया। सत्तारूढ़ झामुमो को 19 सीटें मिलीं। 
 
जम्मू-कश्मीर चुनाव में भी भाजपा ने दमदार उपस्थिति दर्ज कराई। यहां उसे 25 सीटें मिलीं। पीडीपी (28) के बाद वह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। हालांकि भाजपा को ये सभी सीटें जम्मू इलाके में मिलीं। घाटी में तो उसका खाता भी नहीं खुला। इतना ही नहीं, घाटी में भाजपा का चेहरा मानी जाने वाली हिना बट अपनी जमानत तक नहीं बचा पाईं। लद्दाख क्षेत्र में जहां भाजपा का सांसद है, वहां भी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। वोटिंग प्रतिशत की बात करें तो यहां भाजपा को सर्वाधिक 23 फीसदी वोट मिले, जो सबसे बड़ी पार्टी पीडीपी की तुलना में अधिक हैं। 
 
मोदी सरकार के ये निर्णय रहे सुर्खियों में... पढ़ें अगले पेज पर...
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चुनावी वादे के अनुरूप मोदी सरकार ने आते ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानते हुए कालेधन पर विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन को मंजूरी दे दी। इसके साथ ही मनमोहन सरकार में निर्णय लेने वाली ग्रुप्स ऑफ मिनिस्टर्स (जीओएम) की व्यवस्था खत्म कर दी। मोदी का मानना है कि निर्णय लेने का एक ही केंद्र होना चाहिए। 
 
मोदी सरकार ने पिछले 50 सालों से देश के विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं का ताना-बाना बुनने वाली संस्था योजना आयोग को खत्म कर दिया। जघन्य अपराध के मामलों में नाबालिगों की उम्र सीमा 16 वर्ष तय करने का अधिकार जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को देने का फैसला किया। 
 
मोदी सरकार ने 'प्रधानमंत्री जन-धन योजना' का शुभारंभ किया। इस योजना में खाताधारक को 1 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा भी मुफ्त दिया गया। राजग सरकार ने नेशनल फूड ग्रिड तैयार करने का फैसला किया है जिसमें अत्यधिक पैदावार वाले क्षेत्रों को कम पैदावार वाले क्षेत्रों से जोड़ा जाएगा। 
 
सरकार ने रक्षा क्षेत्र में 49 फीसदी विदेशी निवेश को मंजूरी दी। इससे विदेशी कंपनियां भारत में हथियारों के उत्पादन और उपकरणों के विकास के लिए उद्योग स्थापित करेंगी। रेलवे की खस्ता हाल व्यवस्था को सुधारने के लिए बुनियादी ढांचे के विकास के लिए रेलवे में 49 फीसदी विदेशी निवेश की फैसला किया गया। 
 
इसके साथ ही मोदी सरकार ने पड़ोसी देशों से द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत बनाने और चीन की घेरेबंदी को तोड़ने के लिए कूटनीतिक फैसले भी किए। मोदी नेपाल और भूटान की यात्रा पर गए। दक्षिण एशिया में भारत को घेरने की चीन की रणनीति की काट के लिए मोदी सरकार ने वाजपेयी सरकार के 'लुक ईस्ट' नीति को आगे बढ़ाया। मोदी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को शपथ समारोह में बुलाकर संबंध सुधारने की दिशा में कदम आगे बढ़ाया, लेकिन पाकिस्तान की हरकतों के कारण यह कोशिश आगे नहीं बढ़ पाई और फिर से अबोला हो गया। 
 
मोदी सरकार ने मंत्रालयों में कोई नई कार न खरीदने का आदेश दिया। 1 लाख से अधिक खर्च के लिए पीएमओ से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया। मंत्रियों और सांसदों को अपने रिश्तेदारों को पर्सनल स्टाफ में नहीं रखने का निर्देश दिया। जजों की नियुक्ति को लेकर बने कोलेजियम सिस्टम को खत्म कर दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनने की सहमति दी। 'स्वच्छ भारत अभियान' की शुरुआत हुई। पहली बार हुआ जब पाकिस्तान में आतंकवादी हमले में मारे गए बच्चों के लिए देश के सभी स्कूलों में मौन रखा गया। शिक्षक दिवस पर बच्चों से रूबरू हुए।
 
...और ये मनमानियां भी हुईं... पढ़ें अगले पेज पर...
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मोदी सरकार के आते ही 'लव जिहाद' का मुद्दा काफी सुर्खियों में रहा। उत्तरप्रदेश समेत कई राज्यों में अचानक इस तरह के मामले सुर्खियों में आ गए। मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी भाजपा विधायक संगीत सोम को जेड सुरक्षा मुहैया कराने के मामले में भी मोदी सरकार को काफी आलोचना झेलना पड़ी। सोम को यूपी पुलिस ने दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
 
मोदी की इस बात के लिए काफी आलोचना हुई कि वे पाकिस्तान और चीन के मामले में कुछ खास नहीं कर पाए। पाकिस्तानी की ओर से जहां गोलीबारी जारी रही, वहीं चीन भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। प्रधानमंत्री की सभाओं में गैरभाजपा राज्यों के मुख्यमंत्रियों की हूटिंग के चलते भी काफी विवाद हुआ। इसके चलते कुछ मुख्‍यमंत्रियों ने तो मोदी के साथ मंच ही साझा नहीं किया। 
 
लोकसभा चुनाव के दौरान कालाधन लाने की बातें करने वाले मोदी, सरकार बनने के बाद कुछ खास नहीं कर सके। हालांकि इस मामले में उन्होंने एसआईटी का गठन जरूर किया। इस भाजपा सरकार के तर्क भी यूपीए सरकार जैसे ही सामने आए। रेल किराया बढ़ाकर लोगों को असंतुष्ट किया। पीएम नरेन्द्र मोदी ने ट्राई के पूर्व अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र को अपना प्रधान सचिव नियुक्त करने के लिए एक अध्यादेश के जरिए कानून में संशोधन कर दिया। इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में जमकर हल्ला मचा। ट्राई कानून के तहत पद छोड़ने के बाद उसके अध्यक्ष एवं सदस्य केंद्र या राज्य सरकारों में कोई अन्य नौकरी नहीं कर सकते हैं। 
 
मोदी ने स्मृति ईरानी और अरुण जैसे हरल्ले नेताओं को कैबिनेट में अहम जिम्मेदारियां सौंपी। अमृतसर से हारे अरुण जेटली को वित्तमंत्री बनाया तो अमेठी से चुनाव हारीं स्मृति ईरानी को मानव संसाधन जैसा मंत्रालय दिया। इस सबके बावजूद यदि यह कहा जाए कि राजनीति के क्षेत्र में वर्ष 2014 नरेन्द्र मोदी के नाम रहा तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
 

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