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कई सवाल खड़े करती है नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी की मुलाकात

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, शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016 (20:10 IST)
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी एक नदी के ऐसे दो किनारे हैं, जो कभी मिल नहीं सकते..लेकिन पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि अचानक नदी के बीच सूखा कि ये दोनों किनारे आपस में मिल लिए, जिसके कारण न जाने कितने सवाल खुद-ब-खुद खड़े होते गए। ये दोनों ही शख्‍सियत एक-दूसरे के धुर विरोधी हैं, मंच पर भी और मंच के नीचे भी लेकिन कौनसी ऐसी बात हुई कि मोदी राहुल की मुलाकात हुई और मोदी ने तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल से यहां तक कह दिया कि 'मिलते रहिएगा... मिलते रहिएगा' के क्या मायने निकाले जाए??? 
प्रधानमंत्री मोदी के निवास पर राहुल गांधी ने कुल 10 मिनट बिताए। यूं तो राहुल किसानों का कर्ज माफ करने की गुहार लेकर गए थे, लेकिन अंदर की बात कुछ और ही लग रही है। राहुल ने सरेआम ये चैलेंज दे दिया था कि मोदी के खिलाफ उनके पास भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा बम है। यह बम फूट गया तो पता नहीं क्या होगा? राहुल की इस चुनौती के बाद प्रधानमंत्री मोदी का उन्हें मिलने का वक्त देना कई सवालों को खड़ा कर रहा है। 
 
क्या वाकई राहुल गांधी के पास मोदी के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई बहुत बड़ा सबूत है? यदि है तो वे इसे सार्वजनिक करने से क्यों कतरा रहे हैं? सबसे पहला प्रश्न तो यही खड़ा होता है कि मोदी, राहुल से क्यों मिले? जब नोटबंदी पर पहली बार पूरा विपक्ष एक मंच पर आकर भाजपा पर एक के बाद एक तीर चला रहा था और संसद के भीतर भाजपा को जवाब देते नहीं बन रहा था, तब राहुल विपक्ष को साथ लेकर मोदी से क्यों नहीं मिले? क्या पूरे विपक्ष को साथ लेकर जाने में कोई अड़चन थी? अपनी पंसद के नेताओं के साथ प्रधानंमी से मिलने का क्या मकसद था? 
क्या सचमुच पूरे देश को लाइन में लगाकर ये दोनों नेता कोई सांठगांठ करने में जुटे हैं? हैरत तो इस बात की है कि मोदी से मुलाकात के बाद खुश-खुश दिखने वाले राहुल गांधी के तेवर गोआ जाते ही बदल जाते हैं और वे मंच पर माइक संभालते ही मोदी के खिलाफ जहर उगलने लगते हैं। यही हाल मोदी का भी होता है और वे भी आमसभा में राहुल के खिलाफ तीखे तीर छोड़ने से गुरेज नहीं करते...आखिर मामला क्या है? क्या देश की जनता को मूर्ख तो नहीं बनाया जा रहा है। 
 
बहरहाल, राष्ट्रपति से मिलने जाने के ठीक पूर्व कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का प्रधानमंत्री मोदी से 10 मिनट तक मिलना इस बात का संकेत है कि दाल में कुछ काला जरूर है वरना महज किसानों का कर्ज माफ करने की गुजारिश लेकर हुई यह मुलाकात वैसी मुलाकात नहीं दिख रही है, जैसी कि दर्शाई और जताई जा रही है। परदे के पीछे कैसा खेल चल रहा है, इसे तो राजनीतिक पंडित भी समझ नहीं पा रहे हैं...

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