नई दिल्ली, भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि क्षेत्र की भागीदारी 17.8 प्रतिशत है। देश में होने वाली कुल सालाना बारिश का लगभग 70 प्रतिशत गर्मियों में आने वाला मानसून अपने साथ लाता है।
यही कारण है कि मानसून को भारत में खरीफ फसलों की जीवन-रेखा माना जाता है। ऐसे में, मानसून से जुड़ी अग्रिम एवं सटीक जानकारियां बहुत महत्वपूर्ण हो जाती हैं।
हाई रिजोल्यूशन, सुपर पैरामीटराइजेशन, डाटा एसिमिलेशन जैसी कई नई तकनीकों ने मानसून की दशा-दिशा को समझने में काफी सहायता की है, लेकिन इस राह में कायम कुछ अनिश्चितताएं अभी भी मानसून के मोर्चे पर सुधारों की गुंजाइश की ओर संकेत करती हैं। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए केन्द्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा गठित राष्ट्रीय मानसून मिशन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसका लक्ष्य ही यही है कि राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय शोध समूहों के समन्वय से लघु- मध्यम (1-10 दिन), दीर्घकालिक (10-30) एवं मौसमी ( एक सीजन के लिए) के मानदंडों पर मानसून की बेहतर भविष्यवाणी के लिए आवश्यक आकलन एवं कौशल क्षमताएं विकसित की जा सकें।
मानसून मिशन के अंतर्गत पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा अनेक उत्कृष्ट मौसम एवं जलवायु अनुमान प्रतिरूप (मॉडल) विकसित किये गए हैं जिनमे से कई अब परिचालन की अवस्था में भी है। इन्मने लघु-मध्यम और दीर्घकालिक रेंज के साथ साथ एक सीजन के लिए मौसमी भविष्यवाणी मॉडल शामिल हैं। नेशनल मानसून मिशन (एनएमएम) ने विगत तीन वर्षों के दौरान मौसमी घटनाओं के पूर्वानुमानों एवं आकलन में उल्लेखनीय प्रगति की है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि जलवायु-परिवर्तनजन्य मौसमी परिस्थितियों की उथल पुथल इस समय पूरे विश्व के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। इसके व्यापक कुप्रभाव देखे और महसूस भी किये जा रहे हैं। ऐसे में मिशन का एक उद्देश्य राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के बीच सहयोग बढ़ाकर बेहतर आकलन करने की दिशा में साझेदारी बढ़ाना भी है।
इसमें बेहतर आकलन के लिए उच्च गुणवत्ता वाले डेटा का उपयोग किया जाएगा जिसके आधार पर कई मौसमी आपदाओं का समय से पूर्वानुमान लगाने की बेहतर से बेहतर प्रणाली विकसित हो सके। (इंडिया साइंस वायर)