Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कश्मीर पर नेहरू का संयुक्त राष्ट्र जाना भारी भूल : अमित शाह

हमें फॉलो करें कश्मीर पर नेहरू का संयुक्त राष्ट्र जाना भारी भूल : अमित शाह
, रविवार, 29 सितम्बर 2019 (22:05 IST)
नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को कहा कि कश्मीर घाटी में अब कोई प्रतिबंध नहीं है और समूचे विश्व ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने का समर्थन किया है।
 
शाह ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 5 अगस्त को उठाए गए साहसिक कदम की वजह से जम्मू-कश्मीर अगले 10 साल में देश का सबसे विकसित क्षेत्र होगा। गृह मंत्री ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर 1948 में संयुक्त राष्ट्र जाने को बड़ी भूल बताया।
 
नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी (Nmml) में संकल्प फॉरमर सिविल सर्वेंट्स फॉरम की ओर से आयोजित कार्यक्रम में कहा, 1948 में, भारत संयुक्त राष्ट्र में गया। वह भारी भूल थी। यह भारी भूल से बड़ी थी। गृह मंत्री ने घाटी में पाबंदियों के बारे में ‘दुष्प्रचार’ फैलाने का विपक्ष पर आरोप लगाया।
 
राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए शाह ने कहा, प्रतिबंध कहा हैं? यह सिर्फ आपके दिमाग में हैं। कोई प्रतिबंध नहीं हैं। सिर्फ दुष्प्रचार किया जा रहा हैं। गृह मंत्री ने कहा कि कश्मीर में 196 थाना-क्षेत्रों में से हर जगह से कर्फ्यू हटा लिया गया है और सिर्फ आठ थाना-क्षेत्रों में सीआरपीसी की धारा 144 के तहत पाबंदियां लगाई गई हैं। इस धारा के तहत पांच या इससे ज्यादा लोग एक साथ इकट्ठा नहीं हो सकते हैं।
 
उन्होंने कहा कि लोग कश्मीर में कहीं भी आने के लिए स्वतंत्र हैं। शेष भारत के कई पत्रकार नियमित तौर पर कश्मीर की यात्रा कर रहे हैं। हाल में संपन्न संयुक्त राष्ट्र महासभा का उल्लेख करते हुए शाह ने कहा कि विश्व के सभी नेताओं ने अनुच्छेद 370 पर भारत के कदम का समर्थन किया है। 
 
उन्होंने कहा कि सभी विश्व नेता (न्यूयॉर्क में) सात दिनों के लिए जमा हुए थे। किसी भी एक नेता ने (जम्मू-कश्मीर का) मुद्दा नहीं उठाया। यह प्रधानमंत्री की बड़ी कूटनीतिक की जीत है।
 
शाह ने कहा कि जम्मू कश्मीर में दशकों पुराने आतंकवाद ने 41,800 लोगों की जान ली है लेकिन किसी ने भी जवानों, उनकी विधवाओं या उनके अनाथ बच्चों के मानवाधिकार का मुद्दा नहीं उठाया। उन्होंने कहा, ‘कुछ दिनों से मोबाइल कनेक्शन नहीं चलने को लेकर लोग हल्ला कर रहे हैं। फोन की कमी से मानवाधिकार उल्लंघन नहीं होता है।'
 
शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में 10,000 नए लैंडलाइन कनेक्शन दिए गए हैं, जबकि बीते दो महीने में 6 हजार पीसीओ दिए गए हैं। उन्होंने कहा, ‘अनुच्छेद 370 पर फैसला भारत की एकता और अखंडता को मजबूत करेगा।
 
शाह ने कहा कि जब 1947 में भारत को आज़ादी मिली तब तक भारत में ‘631’ देसी रियासतें थी और उनमें से ‘630’ रियासतों को तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देखा था और एक को नेहरू ने। उन्होंने कहा, 630 रियासतों का भारतीय संघ में विलय हो गया था लेकिन जम्मू-कश्मीर 1947 से ही एक मुद्दा बना हुआ है।
 
गृह मंत्री ने कहा कि 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना कश्मीर पहुंची और पाकिस्तानी हमलावरों को हरा दिया। सेना पीओके की तरफ बढ़ रही थी और जीत हासिल करने की कगार पर थी।
 
उन्होंने कहा, अचानक से तत्कालीन सरकार ने संघर्ष विराम की घोषणा कर दी। जब हम युद्ध जीतने वाले थे तब संघर्षविराम घोषित करने की क्या जरूरत थी। अगर संघर्षविराम की घोषणा नहीं की गई होती थी तो अब पीओके भारत का हिस्सा होता। शाह ने कहा कि अनुच्छेद 370 को लेकर बहुत सारी अफवाहें हैं और दुष्प्रचार हैं और ये अब भी जारी है।
 
उन्होंने कहा, मैं आपसे कहना चाहता हूं कि अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर, भारत में पूरी तरह से एकीकृत नहीं हो सका। अनुच्छेद 370 की वजह से वहां भ्रष्टाचार था।
 
गृह मंत्री ने कहा कि अनुच्छेद 370 की वजह से लोग हमेशा कहते थे कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। जब हम कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात या दिल्ली की बात करते हैं तो हमें यह नहीं कहना पड़ता है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 भूतपूर्व जनसंघ का मुद्दा था और भाजपा के बनने के बाद यह उसका भी मुद्दा रहा है।
 
शाह ने कहा कि हमने इसके खिलाफ 11 आंदोलन किए और यहां तक के जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इसके लिए अपने प्राण दिए। हम तीसरी पीढ़ी के नेता हैं।
 
उन्होंने कहा, जब नेहरू को गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने (पूर्व मुख्यमंत्री) शेख अब्दुल्ला को 11 साल तक जेल में रखा था। अब तो दो महीने ही हुए हैं और लोग इतनी बातें कर रहे हैं। शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के 1987 के विधानसभा चुनाव आतंकवाद का प्रसार का अहम मोड़ था जिसने अबतक 41,800 लोगों की जान ले ली।
 
उन्होंने कहा कि उस चुनाव में विधायक 10 वोटों से जीत गए थे। 1987 के चुनाव जम्मू कश्मीर में आतंकवाद की जड़ है। बहरहाल, शाह ने शिमला समझौता करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने सुनिश्चित किया कि जम्मू-कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा बना रहे।
 
गृह मंत्री ने इस दलील को खारिज किया कि अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने से कश्मीरी संस्कृति ‘खतरे’ में पड़ जाएगी। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय भाषाएं और परम्पराएं अन्य राज्यों में फल-फूल रही हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव : कांग्रेस ने जारी की 51 उम्मीदवारों की पहली सूची