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घूँघट के पट खोल रे...

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- रोहित कुमार ‘हैप्पी’, न्यूजीलैंड

हिंदी पढ़नी हो तो अंग्रेजी का घूँघट उठाना पड़ता है, कैसे? 
 
अपनी नई दिल्ली में 6 से 14 जनवरी 2017 तक प्रगति मैदान में ‘विश्व पुस्तक मेला’ आयोजित किया जा रहा है।
 
आपको दिखाते हैं अपनी ‘विश्व पुस्तक मेला की वेब साइट’ – विश्व पुस्तक मेला यानी ‘वर्ल्ड बुक फेयर!’ इनकी वेब साइट है:   http://www.newdelhiworldbookfair.gov.in/

ध्यान से देखिए तो आपको यहां हिंदी दिखाई दे सकती है। 
क्या कहा? नहीं, दिखाई दी! 
घूँघट उठाइए, यहां क्लिक करके!
घूँघट खुलते ही आपकी चहेती हिंदी आपके सामने आ जाएगी और आपको दिखेगी निम्न स्क्रीन :
 
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है, न जादू?
राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री का संदेश तो हिंदी में है लेकिन ये पर्दा प्रथा उनकी बात हम तक आने ही नहीं दे रही।
...अब क्योंकि हिंदी का इतना प्रचार किया गया है तो आयोजकों को बधाई तो बनती है! तो, आपकी सुविधा  के लिए उनकी ई-मेल यहाँ दिए देता हूँ। जी, भरकर बधाई दें!
[email protected]
 
‘घूँघट के पट खोल रे...’ मुझे कबीर याद आए पर उनका भजन ‘क्षमा-याचन’ के साथ यूँ पढ़ रहा हूँ:
 
घूँघट के पट खोल रे, 
तोहे हिंदी मिलेगी।। 
 
घट-घट में अंग्रेजी रमती, 
तू हिंदी मत बोल रे॥
 
अंग्रेजी अपनी महारानी, 
हिंदी का क्या मोल रे॥
 
अंग्रेजी को सर पर धरके, 
हिंदी का पीटो ढोल रे॥

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