पटना। एक तरफ जहां बिहार में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की मांग जोर पकड़ रही है और दूसरी तरफ नीतीश कुमार विकल्प के तौर पर नए मिशन पर काम कर रहे हैं। बिहार में होती कमजोर पकड़ के चलते उन्हें दिल्ली में अपने पैर जमाना ही सुरक्षित जान पड़ रहा है। इसके संकेत पहले राजद नेता लालूप्रसाद यादव ने दिए और कहा कि वे और नीतीश अब बूढ़े हो चले हैं इसलिए आगे-पीछे कुर्सी भी लड़कों को ही संभालनी है।
हालांकि फिलहाल कहा जा सकता है कि इन बातों से नीतीश कुमार पर असर नहीं पड़ने वाला है लेकिन अंदर-अंदर ही राज्य में असुरक्षा की भावना उन्हें दिल्ली कूच करके नया ठिकाना बनाने को प्रेरित कर रही है।
दिल्ली में दखल की जरूरत
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि यूपी में चुनाव अभियान के जोर पकड़ने से पहले तक नीतीश कुमार बहुत सक्रिय रहे हैं और एक दिन अचानक उन्होंने कार्यकर्ताओं को बुला कर कह दिया कि जेडीयू न तो यूपी में उम्मीदवार उतारेगा और न ही वह खुद चुनाव प्रचार करने जाएंगे। अब कयास लगाया जा रहा है कि क्या यूपी चुनाव से दूर रहने का अर्थ यह है कि वे जेडीयू को दिल्ली के एमसीडी चुनावों के लिए तैयार करना चाहते हैं। इसके चलते एक समय पर एक काम पर जोर देते हुए उन्होंने यूपी में अपनी टांग फंसाने की रणनीति को पूरी तरह शीर्षासन करा दिया।
इस दौरान उन्हें एक और सत्य से साक्षात्कार हुआ है कि भाजपा ने बीएमसी और स्थानीय चुनावों के बल पर ही शिवसेना को उसकी ताकत बताने का काम सफलतापूर्वक किया है। महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना को उसकी हवा हवाई ताकत से साक्षात्कार करा दिया है। इस बीच उन्हें दिल्ली में भी अपने लिए संभावनाएं दिखाई देने लगी हैं।
राजधानी दिल्ली में योगेंद्र यादव का 'स्वराज अभियान' अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने की तैयारी में लगा हुआ है। अपने इस प्रयोग के चलते योगेंद्र यादव के दो मकसद हो सकते हैं। इनमे से एक खुद की सियासी ताकत आजमाना और दूसरे पुराने साथी अरविंद केजरीवाल से पिछला हिसाब सूद समेत चुकता करना है।
लेकिन नीतीश के लिए दिल्ली एक बड़ी मुश्किल भी पैदा कर सकती है क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से उनकी राजनीतिक दोस्ती है। इसे देखते हुए ही बिहार चुनाव में भी केजरीवाल ने नीतीश का समर्थन किया था। बाद में भी मोदी विरोधी राजनीति में दोनों अक्सर साथ देखे गए लेकिन सिर्फ नोटबंदी पर जहां नीतीश ने मोदी का समर्थन किया लेकिन बाद में अपने रुख में पलटी मार ली।
दिल्ली का दंगल और कठिन
दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (एमसीडी) में कुल 272 सीटें हैं जिन पर फिलहाल बीजेपी और कांग्रेस का कब्जा है लेकिन जेडीयू ने सभी 272 सीटों पर चुनाव लड़ने की ऐलान कर चुकी है जबकि उसे दिल्ली में अपनी ताकत का अंदाजा है।
फिर भी नीतीश के लिए बीजेपी को टक्कर देने के लिए तो एमसीडी एक बढ़िया मैदान है, लेकिन अगर वे चुनाव मैदान में उतरते हैं तो उन्हें आप के साथ-साथ कांग्रेस से भी टकराव मोल लेना होगा जबकि बिहार में सत्तारुढ़ महागठबंधन में कांग्रेस, नीतीश के साथ रही है।
होली बाद अप्रैल में संभावित एमसीडी चुनाव को केजरीवाल सरकार के लिए जनमत संग्रह के रूप में भी देखा जा सकता है क्योंकि जिस दिल्ली से विधानसभा की 70 में से 67 सीटें केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के पास हैं - उनकी सरकार के दो साल बाद दिल्ली के लोग क्या सोचते हैं, यह एमसीडी चुनाव के नतीजे बताने का सही उपाय होंगे।
लेकिन नीतीश के एमसीडी चुनाव में हिस्सेदारी की खास वजह राजधानी में बिहार और यूपी के लोगों की अच्छी खासी तादाद है। देखा जाए तो नीतीश की पार्टी उन्हीं लोगों से उम्मीद के बूते चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है, हां बोनस के तौर पर वह योगेन्द्र यादव की 'स्वराज अभियान' से तालमेल की संभावना बन सकती है।
ये पूर्वांचल के लोगों का ही प्रभाव है कि एक दौर में केजरीवाल के खिलाफ किरण बेदी को आजमा चुकी बीजेपी मनोज तिवारी को कमान सौंप चुकी है। मनोज तिवारी लोकप्रिय भोजपुरी गायक होने के साथ साथ भोजपुरी फिल्मों में भी काम कर चुके हैं और यूपी के चुनाव प्रचार में भी पूर्वांचल के लोगों का इन दिनों खासा दबदबा रहा है।
यूपी विधानसभा चुनाव के आखिरी दो चरणों में भी आखिरी फैसला उन्हें ही सुनाना है - और उसी से तय होगा कि इस बार होली किस रंग से खेली जाएगी। नीतीश कुमार की भी होली के रंग को लेकर दिलचस्पी जरूर होगी क्योंकि भगवा रंग अब उन्हें ज्यादा सूट नहीं करेगा। (वेबदुुनिया)